
पंजाब और हरियाणा सीमा पर किसानों का विरोध प्रदर्शन 13वें दिन में प्रवेश कर गया है. कृषि संघ किसानों से शांत रहने और शांति के साथ एमएसपी कानून के लिए लड़ाई जारी रखने की अपील कर रहे हैं. किसान यूनियनों ने शंभू और खनौरी सीमा पर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन को लेकर आज एक सेमीनार आयोजित किए थे. इस दौरान यह चर्चा की गई कि वैश्विक संगठन 'किस तरह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में एमएसपी की अवधारणा को प्रभावित कर रहा है.'
इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में बीकेयू एकता सिधुपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल ने बताया कि कैसे डब्ल्यूटीओ की नीतियां भारतीय किसानों के लिए एक मजबूत फंदा बन रही हैं. किसान नेता ने कहा, हमें केंद्र सरकार से पांचवीं बार हमारी मांगों पर बात करने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. उन्होंने बताया, "हम देखेंगे कि वे क्या प्रस्ताव देते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसके आने से पहले इस पर चर्चा करना सही है."
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भारत में सिर्फ 27-28 हजार दिए जाते हैं सब्सिडी
डब्ल्यूटीओ की नीतियां भारतीय किसानों के लिए अनुकूल नहीं हैं. एमएसपी की गारंटी के बिना किसानों का जीवित रहना संभव नहीं है. डल्लेवाल ने बताया कि डब्ल्यूटीओ ने हमेशा भारत जैसे विकासशील देशों पर एमएसपी व्यवस्था को रोकने के लिए दबाव डाला है. एमएसपी और सब्सिडी के बिना हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं हैं. कुछ देश प्रति किसान लगभग 80 लाख रुपये की सब्सिडी देते हैं लेकिन भारत में केवल 27-28 हजार रुपये दिए जाते हैं.
'हरियाणा के किसान भी कर रहे प्रदर्शन'
किसान नेता ने खीरी चोपता-हिसार घटना पर कहा कि यह सही नहीं है, लेकिन इससे साबित हो गया कि यह विरोध केवल पंजाब के किसानों का है, लेकिन हरियाणा के किसान भी आंदोलन के लिए लड़ रहे हैं. किसान नेताओं के खिलाफ कथित रूप से एजेंसी की साजिश पर उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति सरकार के लिए समस्या बन जाता है और सरकार के हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं करता है, तो वे उसे खरीदने की कोशिश करते हैं. अगर वह सरकार के साथ सहमत नहीं होता है तो वे उन्हें खत्म करने की कोशिश करते हैं.
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'गुटों के बीच वैचारिक मतभेद'
एसकेएम अराजनीतिक और राजनीतिक गुट के बीच दरार के बारे में पूछे जाने पर डल्लेवाल ने कहा, "हमारे बीच वैचारिक मतभेद हैं लेकिन वे हमें अलग-अलग तरीकों से दोषी ठहराते हैं. जब हमने अपने रास्ते अलग कर लिए हैं तो पूछने और दूसरों को लूप में रखने का कोई रास्ता नहीं है.