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दलित उत्पीड़न के हर मामले में चार्जशीट दाखिल करना जरूरी नहीं: इलाहाबाद HC

हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए ऐसा स्पष्ट आदेश दिया है कि अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में दर्ज हर केस में जांच अधिकारी को आरोप पत्र दाखिल करना जरूरी नहीं है. अब साक्ष्यों के आधार पर ही आरोप पत्र दाखिल किया जाए.

इलाहाबाद हाई कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट
संतोष शर्मा
  • इलाहाबाद,
  • 04 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST

दलित उत्पीड़न के हर मामले में अब चार्जशीट लगाना जरूरी नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए ऐसा स्पष्ट आदेश दिया है कि अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में दर्ज हर केस में जांच अधिकारी को आरोप पत्र दाखिल करना जरूरी नहीं है. अब साक्ष्यों के आधार पर ही आरोप पत्र दाखिल किया जाए.

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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है. ज्ञानेंद्र वर्मा की तरफ से दाखिल की गई याचिका में कहा गया कि अधिनियम की धारा 4(2) और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियम के नियम 7(2) को असंवैधानिक घोषित किया जाए. याची ने कहा कि दोनों प्रावधानों में आरोपपत्र शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यानी विवेचना अधिकारी अभियुक्त के विरुद्ध आरोपपत्र भी दाखिल कर सकता है. विवेचना के दौरान अभियुक्त के खिलाफ साक्ष्य ना पाए जाने पर भी वह अंतिम रिपोर्ट नहीं लगा सकता. 

कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है और कहा कि एक्ट की मंशा ऐसी नहीं कि केस दर्ज हो जाने पर चार्जशीट फाइल ही करनी होगी. हाईकोर्ट की डबल बेंच में जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस संजय कुमार पचौरी की बेंच ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा है उक्त प्रावधानों को तर्कसंगत तरीके से पढ़े जाने की जरूरत है. अतार्किक तरीके से कानूनी प्रावधानों को नहीं पढ़ा जा सकता बेंच ने साफ कहा कि जांच में मिले साक्ष्यों के आधार पर ही आरोप पत्र दाखिल किया जाए.अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों में दर्ज हर मामले में आरोप पत्र दाखिल करना जरूरी नहीं है.

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