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'संसद का पहला काम बहस और चर्चा से सरकार को जवाबदेह बनाना', बोले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि धनखड़ ने कहा कि हमें सबसे पुराने और सबसे जीवंत लोकतंत्र होने पर गर्व है, जिसे अक्सर लोकतंत्र की जननी कहा जाता है. दुनिया के किसी अन्य देश में सभी स्तरों पर संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र नहीं है. संसद का पहला काम संवाद, बहस और चर्चा के जरिए से सरकार को जवाबदेह बनाना है.

उपराष्ट्रपति जददीप धनखड़.(Photo source @Social Media) उपराष्ट्रपति जददीप धनखड़.(Photo source @Social Media)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता के एस चौहान की किताब Parliament: Powers, Functions & Privileges; a Comparative Constitutional Perspective के शुभारंभ के अवसर पर बोलते हुए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए संसद के कामकाज के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर संसद इसी तरह बाधित होती रही और ये अप्रासंगिक हो गई तो देश में सार्वजनिक अशांति फैल सकती है.

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धनखड़ ने कहा कि हमें सबसे पुराने और सबसे जीवंत लोकतंत्र होने पर गर्व है, जिसे अक्सर लोकतंत्र की जननी कहा जाता है. दुनिया के किसी अन्य देश में सभी स्तरों पर संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र नहीं है. संसद का पहला काम संवाद, बहस और चर्चा के जरिए से सरकार को जवाबदेह बनाना है. उन्होंने चेतावनी दी कि गैर-कार्यात्मक संसद से जवाबदेही की कमी होगी जो लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करेगी. 

'लोगों ने चखा विकास का स्वाद'

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में लोगों ने विकास का स्वाद चखा है. लोगों को बैंकिंग समावेशन, घर में शौचालय, घर में गैस कनेक्शन, किफायती आवास के कारण अपना खुद का घर, गांवों में कनेक्टिविटी, सड़क संपर्क, स्कूली शिक्षा, पीने योग्य पानी मिला है. इसके बाद डिजिटलीकरण के कारण पारदर्शी और जवाबदेह तंत्र स्थापित हुआ है तो देश में आकांक्षाओं का माहौल है. पिछले 10 सालों में जो विकास हुआ है, वह पहले कभी नहीं हुआ था. अब लोग और विकास चाहते हैं, इस आकांक्षापूर्ण इच्छा को सांसदों द्वारा नीतियों के विकास में तेजी से शामिल करके संतुष्ट किया जाना चाहिए और यह तभी संभव है जब संसद काम करे.
 

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'महत्वपूर्ण है निर्वाचन सिस्टम'

संसद लोगों का प्रतिनिधि मंच है. संसद लोगों की भावनाओं को मुताबिक काम करती है और ये सबसे  पवित्र मंच के रूप में कार्य करती है, जहां लोगों के कई विचार होते हैं. जिससे कार्यपालिका का निर्माण होता है. कार्यपालिका संसद पर निर्भर करती है और उसे लोकसभा द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए. इसलिए निर्वाचन सिस्टम महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये संसद में प्रतिनिधित्व की क्वालिटी निर्धारित करती है. अगर संसद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करती है. तो ये सब एक वैक्यूम में बदल जाएगा. इसके बाद कई अन्य लोगों आगे आ जाएंगे, लोग आंदोलन करेंगे. लोग कोई रास्ता निकाल लेंगे. इसलिए अगर संसद काम नहीं करती है, तो ये धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जाएगी जो कि लोकतंत्र के लिए खतरा है. 

'चुनौतियों को अवसरों में बदलने का खोजना होगा सिस्टम'


उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद का एक और काम ये है कि यह समय से आगे की सोच रखने का मंच है. हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जब तकनीक के दलदल में, एक और औद्योगिक क्रांति, विध्वंसकारी तकनीकें, हर पल चीजें बदल रही हैं. हमें विनियमन की नीतियां विकसित करनी होंगी. हमें चुनौतियों को अवसरों में बदलने के लिए सिस्टम खोजना होगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम प्रगति का विरोध कर रहे हैं, लेकिन हमारी प्रगति को अब तुलनात्मक शर्तों में मापा जाना चाहिए. जब हम आशा और संभावना के पारिस्थितिक तंत्र से प्रेरित होते हैं, तो हमारे युवा दिमाग और अधिक काम करना चाहते हैं और इसके लिए संसद एक मंच है. संसद सूचनाओं के निर्बाध आदान-प्रदान की जगह नहीं है. यह हिसाब बराबर करने का मंच नहीं है.

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'ये सदी हमारी है'

उन्होंने ये भी कहा कि इतिहास के इस दौर में, इतिहास के इस मोड़ पर, सौभाग्य से हम सभी के लिए, भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में मान्यता मिली है. यह सदी हमारी है. हम इसके असली हकदार हैं. हम सही रास्ते पर हैं, लेकिन अगर कुछ असंगत स्थितियां हैं तो उन नुकीली जगहों को समतल करने का एकमात्र स्थान संसद है.

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