
मणिपुर में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है. इस बार हिंसा मैतेई समुदाय के मार्च निकालने के बाद भड़की है. बताया जा रहा है कि हजारों प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर में बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों के बीच बफर जोन में बैरिकेड्स की तरफ मार्च निकाला. इस मार्च के बाद सुरक्षा बलों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े और रबर की गोलियां भी चलानी पड़ीं. इस घटना में 50 लोग घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
प्रदर्शनकारी 6 सितंबर को मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ इखाई में इकट्ठा हुए थे. भीड़ का उद्देश्य चुराचांदपुर से कुछ किलोमीटर दूर बिष्णुपुर के टोरबुंग में सुनसान घरों तक पहुंचने था. इसके लिए वह फौगाकचाओ इखाई में सेना के बैरिकेड को पीछे धकेल रहे थे. भीड़ में मौजूद लोग मैतेई समूह सीओसीओएमआई के आह्वान के बाद मैतेई-बहुल घाटी में कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए बाहर आ गए.
अपील के बाद भी निकाला मार्च
सीओसीओएमआई ने कहा कि वे सरकार की ऐसा न करने की अपील के बावजूद चिन-कुकी-बहुल चुराचांदपुर तक मार्च करेंगे. उन्होंने बैरिकेड्स हटाने की मांग की. COCOMI समन्वयक जीतेंद्र निंगोम्बा ने कहा कि मैतेई लोग अपनी जमीन पर फिर से बसना चाहते हैं.
मणिपुर में कब भड़की थी हिंसा?
मणिपुर में 3 मई को सबसे पहले जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी. मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया था. तब पहली बार मणिपुर में जातीय झड़पें हुईं. हिंसा में अब तक 150 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. कुकी और नागा समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है. ये लोग पहाड़ी जिलों में रहते हैं.