Advertisement

G-20 के डिनर में साड़ी ने बिखेरी चमक, वेदों से लेकर आज तक क्या है इस परिधान का इतिहास

जी-20 समिट अपनी शुरुआत के साथ भारतीय परंपरा और विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने का मंच बना हुआ है. इसी कड़ी में एक नया नाम साड़ी का भी जुड़ गया है. जहां भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु साड़ी पहने हुए इस आयोजन की मेजबानी कर रही हैं तो वहीं, बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना साड़ी पहने हुए इस आयोजन में शिरकत करने पहुंची.

G-20 डिनर में छाई साड़ी G-20 डिनर में छाई साड़ी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:15 PM IST

राजधानी दिल्ली इस वक्त  G-20 समिट की रौनक से जगमगा रही है. दिनभर चले बैठकों के दौर के बाद शाम का वक्त स्पेशल डिनर के नाम है. भारतमंडपम में राष्ट्रपति की ओर से दिया जा रहा ये डिनर बेहद खास है. लेकिन, इसी बीच वैश्विक मंच पर जिसकी रौनक सबसे ज्यादा देखते बन रही है वह है भारतीय परिधान साड़ी. जी-20 के इस खास डिनर प्रोग्राम के दौरान कई राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रतिनिधियों की पत्नियों ने इस मुकद्दस मौके पर साड़ी को परिधान के तौर पर अपनाया. 

Advertisement

G-20 डिनर में छाई साड़ी
जी-20 समिट अपनी शुरुआत के साथ भारतीय परंपरा और विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने का मंच बना हुआ है. इसी कड़ी में एक नया नाम साड़ी का भी जुड़ गया है. जहां भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु साड़ी पहने हुए इस आयोजन की मेजबानी कर रही हैं तो वहीं, बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना साड़ी पहने हुए इस आयोजन में शिरकत करने पहुंची. जापान के पीएम किशिदा की पत्नी ने भी साड़ी को अपनाया. 

वैदिक काल से है साड़ी की पहचान
साड़ी वह परिधान माना जाता है, जो वैदिक काल के साथ ही भारतीय महिलाओं के लिए खास रहा है. कई फैशन आए-गए लेकिन 10 हजार साल पहले भी साड़ी जैसी थी, आज भी वैसी ही है. 5-6 मीटर लंबे इस कपड़े के चादर नुमा टुकड़े को महिलाएं तबसे अपने शरीर पर लपेटती आ रही हैं, जब इंसानों ने चमड़े, पत्ते और पेड़ों की छाल से तन ढंकना शुरू किया तो भी महिलाओं के तन ढंकने का तरीका बिल्कुल साड़ी नुमा ही था. जब कपड़ा पहली बार सामने आया था तो महिलाओं और पुरुषों ने कमोबेश एक ही तरीके से इसे पहना था.

Advertisement

ऋग्वेद से है साड़ी का चलन
ऋग्वेद और यजुर्वेद की परंपरा में भी साड़ी का जिक्र हुआ है जहां संस्कृत में इसे शाटिका कहा गया था. धीरे-धीरे यह परिधान ही महिलाओं के लिए उनके सम्मान का प्रतीक बन गया. रामायण-महाभारत की कहानियों में तो साड़ियां भी एक कैरेक्टर हैं. एक पौराणिक कहानी नल-दमयंती की भी है, जहां राजा नल को अपनी पत्नी की साड़ी पहननी पड़ जाती है. साड़ी का उल्लेख यजुर्वेद में सबसे पहले मिलना माना जाता है. वहीं, ऋग्वेद में जहां ऋचाओं और यज्ञ हवन के नियम बताए गए हैं, उसमें हवन के समय स्त्री को साड़ी पहनने का विधान भी है. साड़ी विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में एक है. 

जब बहन की साड़ी पहनकर घर लौटा एक सम्राट
मौर्य काल और गुप्त काल में साड़ी सम्मान और सभ्यता की प्रतीक थी. राजा एक-दूसरे के राज्यों में मित्रता के लिए फल-पान और मिठाई के साथ साड़ी भेजते थे. इसका मतलब होता था कि आपकी सुविधा और सम्मान अब हमारा भी हुआ. राजा हर्षवर्धन ने जब कुंभ में सब कुछ दान कर दिया था उन्हें अपनी बहन की साड़ी पहनकर घर लौटना पड़ा था. 

आक्रमणकारी दौर में भी साड़ी भारतीयता की रही है पहचान
भारत में आक्रमणकारियों के दौर में भी साड़ी महिलाओं के लिए सभ्यता की प्रतीक रही है. मुगलिया दौर को इतिहासकार कल्चर के तौर पर काफी समृद्ध मानते हैं. इस दौर तक साड़ी की रंगत काफी खिल गई थी. बनारसी, चंदेरी, कांजीवरम, राजस्थान की बंधेज ने लोगों को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया था. राजा रवि वर्मा की पेंटिंग में भी साड़ी खूब चमकी है. उन्होंने देवी सरस्वती, अहिल्या, उर्वशी, मेनका जैसे कई पौराणिक किरदारों को कैनवस पर उतारा तो उनकी कूची ने साड़ी को और गहरी रंगत दी. अंग्रेजों शासनकाल में खुद अंग्रेजी महिलाओं ने साड़ी को हाई सोसायटी की तरह अपनाया. उन्होंने ही भारतीय चोली को ब्लाउज जैसा विस्तार दिया था.

Advertisement

साड़ी सिर्फ पहनावा नहीं क्रांति भी
साड़ी सिर्फ एक परिधान नहीं, क्रांति की प्रतीक भी रही है. जब द्रौपदी की साड़ी खींची गई तो महाभारत हुई. रानी लक्ष्मी बाई ने साड़ी में अपने बेटे को बांधा और अंग्रेजों के खिलाफ रण में कूद पड़ीं. चेनम्मा ने कित्तूर की लड़ाई लड़ी और देश के साथ साड़ी की लाज भी रख ली. पद्मावती ने पति के नाम की साड़ी पहनकर जौहर कर लिया और दुर्गावती की साड़ी को दुश्मन छू भी न पाए, इसलिए वो आग में कूद गई.

साड़ी ही वो परिधान था, जिसे पहन सरला ठकराल ने प्लेन उड़ाया. साड़ी पहनीं इंदिरा गांधी आयरन लेडी कहलाईं और उन्होंने इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल दिया. हिंदुस्तानी परिवेश में महिलाएं आज भी साड़ी को अपने फेवरिट कैजुअल के तौर पर अपनाती हैं तो बल्कि यह डीसेंट फॉर्मल लुक भी देती है. जी-20 में साड़ी का यूं लहराना और कुछ नहीं भारतीय गौरव के लहराते परचम का प्रतीक ही है. 


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement