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हर तरफ तबाही, हजारों मौतें और प्रेग्नेंट महिला... समुद्री तांडव के बीच जन्मे 'सुनामी' की कहानी, मां की जुबानी

आज से 20 साल पहले तमिलनाडु में 'सुनामी' लेकर आई समुद्री लहरों ने जो आतंक मचाया था, वह लोग आज भी नहीं भूले हैं. इसी तबाही की एक पीड़िता 26 साल की नमिता राय अंडमान निकोबार के हट बे आईलैंड में रहती थी. यहां प्रलय के बीच उसने किस तरह अपने बेटे को जन्म दिया उसकी कहानी बताकर वे आज भी सिहर उठती हैं.

समुद्री तांडव के बीच जन्मे 'सुनामी' की कहानी समुद्री तांडव के बीच जन्मे 'सुनामी' की कहानी
aajtak.in
  • हुगली,
  • 26 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:09 AM IST

26 दिसंबर 2004 यानी आज से ठीक 20 साल पहले तमिलनाडु में 'सुनामी' लेकर आई समुद्री लहरों ने जो आतंक मचाया था, वह लोग आज भी नहीं भूले हैं. हजारों लोगों की जान लेनी वाली सुनामी ने जो दर्द दिया वह अब भी ताजा है. यह भूकंप अब तक का दूसरा सबसे शक्तिशाली भूकंप था और इसमें लगभग 230,000 लोगों की मौत हुई थी, जिससे यह आपदा अब तक की 10 सबसे भयानक आपदाओं में से एक बन गई.

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समुद्र तट से आई लहरों ने पूरे शहर और राज्य में जो उत्पात मचाया, उसने न जाने कितने परिवारों को खत्म कर दिया. जिंदगियों का हिसाब लगाने में तो महीनों लग गए. 20 साल पहले आई सुनामी के चलते हुए विनाश के सदमे से  कई लोग आज भी नहीं उबर पाए हैं. जबकि तमाम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने मुश्किल हालात के आगे हार नहीं मानी और खुद को मजबूत रखते हुए संकट से मात दी.  

सांपों से भरे जंगल में बेटे का जन्म

इन्हीं में से एक थी  26 साल की नमिता राय जो अंडमान निकोबार के हट बे आईलैंड में रहती थी. लेकिन इस प्रलय में उनका घर तबाह कर दिया तो उनके परिवार को सांपों से भरे जंगल में पनाह लेनी पड़ी. उस समये गर्भवती रही नमिता ने उन्हीं हालातों में बेटे को जन्म दिया और उसका नाम रखा सुनामी.

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'अचानक दिखी समुद्री लहरों की एक विशाल दीवार'

बीस साल बाद, वह उस दिन को याद करके सिहर उठती है. न्यूज एजेंसी से बातचीत में उन्होंने कहा,'मैं उस काले दिन को याद नहीं करना चाहती. मैं गर्भवती थी और रोज के कामों में लगी थी. अचानक, मैंने एक भयानक सन्नाटा महसूस किया और समुद्र को हमारे किनारे से मीलों दूर खिसकता देख हैरान रह गई. पक्षी अजीब सी आवाजें करने  लगे थे. कुछ सेकंड बाद, एक डरावनी सरसराहट की आवाज आई और दिखा कि समुद्री लहरों की एक विशाल दीवार हट बे आइलैंड की ओर बढ़ रही थी, जिसके बाद तेज झटके आए. मैंने देखा कि लोग चिल्ला रहे थे और एक पहाड़ी की ओर भाग रहे थे. मुझे पैनिक अटैक आया और मैं बेहोश हो गई.

'लगभग सारे घर तबाह हो चुके थे'

उसने बताया 'कुछ घंटों बाद, मुझे होश आया और मैंने खुद को एक पहाड़ी जंगल के अंदर हजारों स्थानीय लोगों के बीच पाया. मुझे अपने पति और अपने बड़े बेटे को देखकर राहत मिली. हमारे आइलैंड का बड़ा हिस्सा सुनामी की लहरों ने निगल लिया था . आंखों में आंसू लिए नमिता ने कहा- लगभग सारे घर तबाह हो चुके थे.

'लेबर पेन हुआ तो चट्टान पर लेट गई'

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उन्होंने आगे कहा- रात 11.49 बजे, मुझे प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन आसपास कोई डॉक्टर नहीं था. मैं एक चट्टान पर लेट गई और मदद के लिए चिल्लाई. मेरे पति ने पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई मेडिकल हेल्प नहीं मिल सकी. फिर उन्होंने कुछ महिलाओं से गुहार लगाई तो उनकी मदद से, मैंने बहुत तकलीफों के बीच सुनामी को जन्म दिया.

'खून बहने से हालत बिगड़ी पर बच्चे को दूध पिलाया'

हमारे पास कोई खाना नहीं था और समुद्र के डर से मुझमें जंगल से बाहर आने की हिम्मत नहीं थी. इस बीच, अत्यधिक खून बहने के कारण मेरी हालत बिगड़ने लगी. किसी तरह, मैंने अपने नवजात शिशु को जीवित रखने के लिए उसे दूध पिलाया क्योंकि वह प्रीमेच्योर था. अन्य पीड़ित नारियल पानी पर जीवित थे. हमने हट बे में लाल टिकरी हिल्स में चार रातें बिताईं और बाद में रक्षा कर्मियों द्वारा मुझे आगे के इलाज के लिए पोर्ट ब्लेयर के जीबी पंत अस्पताल ले जाया गया.
 
अपने पति लक्ष्मीनारायण की COVID-19 महामारी के दौरान मृत्यु हो जाने के बाद वह अब अपने दो बेटों सौरभ और सुनामी के साथ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में रहती हैं. रॉय का बड़ा बेटा सौरभ एक निजी शिपिंग कंपनी में काम करता है, जबकि अब बड़ा हो चुका सुनामी अंडमान और निकोबार प्रशासन की सेवा के लिए समुद्र विज्ञानी बनना चाहता है.

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'ओशियनोग्राफर बनना चाहता है सुनामी'

सुनामी रॉय ने एजेंसी से कहा 'मेरी मां मेरे लिए सब कुछ हैं. मैंने जिंदगी में उससे मजबूत औरत नहीं देखी. मेरे पिता के निधन के बाद, उन्होंने हमें खिलाने के लिए कड़ी मेहनत की और अपनी फूड डिलीवरी सर्विस चलायी, जिसे उन्होंने गर्व से 'सुनामी किचन' नाम दिया. मैं  एक ओशियनोग्राफर यानी समुद्र विज्ञानी बनना चाहता हूं.'

अधिकारियों ने कहा कि 2004 में बड़े पैमाने पर तबाही और जानमाल के नुकसान को टाला जा सकता था लेकिन तब कोई प्रभावी अलर्ट सिस्टम नहीं था. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'वर्तमान में, दुनिया भर में 1,400 से अधिक चेतावनी स्टेशन हैं और अब हम ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.'

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