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क्या दूसरी जाति और धर्म में जीवनसाथी चुनने की आजादी मिलनी चाहिए? GDB सर्वे में 61 फीसद लोगों ने कहा- हां

रूढ़िवादी सोच के बीच चंडीगढ़ एक बड़ा अपवाद बनकर उभरा. पितृसत्ता प्रभावित उत्तरी क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद चंडीगढ़ ने अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाह के प्रति खुला नजरिया दिखाया. सर्वे में यह भी सामने आया कि चंडीगढ़ के लोग विभिन्न धार्मिक समुदायों के साथ रहने में भी सहज हैं.

अंतरजातीय विवाह पर अलग-अलग हैं लोगों की राय अंतरजातीय विवाह पर अलग-अलग हैं लोगों की राय
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

इंडिया टुडे के 'ग्रॉस डोमेस्टिक बिहेवियर' सर्वे में अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाह को लेकर भारतीयों की सोच पर गहरी रूढ़िवादिता उजागर हुई है. सर्वे में पूछा गया कि क्या लोगों को दूसरे धर्म या जाति का जीवनसाथी चुनने की आजादी होनी चाहिए. नतीजों में पाया गया कि 61 फीसद लोग अंतर-धार्मिक और 56 फीसद लोग अंतर-जातीय विवाह के खिलाफ हैं. महिलाएं इस मामले में पुरुषों से ज्यादा सतर्क दिखीं, शायद इसलिए कि सामाजिक दबाव और इसके नतीजों का सबसे ज्यादा असर उन पर पड़ता है.
  
हालांकि, इस रूढ़िवादी सोच के बीच चंडीगढ़ एक बड़ा अपवाद बनकर उभरा. पितृसत्ता प्रभावित उत्तरी क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद चंडीगढ़ ने अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाह के प्रति खुला नजरिया दिखाया. सर्वे में यह भी सामने आया कि चंडीगढ़ के लोग विभिन्न धार्मिक समुदायों के साथ रहने में भी सहज हैं. यह उदारता शायद शहर की मिश्रित संस्कृति और शहरीकरण का नतीजा है.
  
दूसरी ओर, गुजरात जैसे राज्य, जो रोजगार में धर्म आधारित भेदभाव के खिलाफ उदार दिखा, विवाह के मामले में रूढ़िवादी बना रहा. उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी यही ट्रेंड देखने को मिला. सर्वे में यह विरोधाभास भी उभरा कि हरियाणा, जहां अल्पसंख्यक आबादी कम है, वहां धर्म आधारित भेदभाव कम है, लेकिन विवाह जैसे निजी मामलों में लोग रूढ़ियां छोड़ने को तैयार नहीं हैं.  

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सर्वे के नतीजे बताते हैं कि भारत में विविधता को स्वीकार करने की बात रोजमर्रा के जीवन तक तो ठीक है, लेकिन शादी-ब्याह जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जाति और धर्म की दीवारें अभी भी मजबूत हैं. सूचकांक में केरल, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र उदार राज्यों में शीर्ष पर रहे, जबकि मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य रूढ़िवादिता के कारण नीचे रहे. यह सर्वे सीमित नमूने पर आधारित है, लेकिन यह संकेत देता है कि सामाजिक बदलाव की राह अभी लंबी है. 
 

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