
इंडिया टुडे के 'ग्रॉस डोमेस्टिक बिहेवियर' सर्वे में सार्वजनिक सुरक्षा को लेकर अलग-अलग तरह की व्यापक चुनौतियां सामने आई हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि अपनी सामान्य दिनचर्या में और कहीं भी आते-जाते खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं. हम खुद को कितना सुरक्षित मान रहे हैं, यही जानने को इंडिया टुडे ने सकल घरेलू व्यवहार (जीडीबी) सर्वे कराया. इसमें छेड़छाड़ की घटनाओं और सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं, हिंसक अपराधों की शिकायत करने की मंशा से लेकर आसपास के सुरक्षित माहौल तक छह सवालों के जरिए लोगों की राय जानने की कोशिश की गई.
महिलाएं कर रही उत्पीड़न का सामना
नतीजे दर्शाते हैं, 0.662 के प्रभावशाली सूचकांक के साथ केरल सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में देश में अव्वल है. इसके बाद हिमाचल प्रदेश और ओडिशा का नंबर आता है. उत्तर प्रदेश 0.132 अंक के साथ सबसे निचले स्थान पर है. सर्वे बताता है कि सुरक्षा धारणाओं में क्षेत्रीय विविधताएं काफी मायने रखती हैं. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली जानकारी सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के अनुभव से सामने आई. 62 फीसद का दावा है कि उनके क्षेत्रों में छेड़छाड़ कोई बड़ा मुद्दा नहीं. मगर करीब 44 फीसद महिलाओं ने माना कि उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.
अच्छे व्यवहार में तमिलनाडु अव्वल
तमिलनाडु सबसे अच्छा व्यवहार करने वालों का राज्य बनकर उभरा. कर्नाटक की स्थिति सबसे खराब रही, जहां 79 फीसद उत्तरदाताओं ने अक्सर उत्पीड़न की बात कही. सार्वजनिक परिवहन 86 फीसद भारतीयों को सुरक्षित लगता है, जिसमें महाराष्ट्र 89 फीसद के साथ सबसे आगे और पंजाब 73 फीसद के साथ पीछे रहा. आस-पड़ोस में सुरक्षित माहौल की धारणा में भौगोलिक विविधता का अंतर स्पष्ट दिखा. केरल के 73 फीसद निवासियों ने बताया कि कोई असुरक्षित क्षेत्र नहीं, जबकि उत्तर प्रदेश के 30 फीसद निवासियों ने ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित किया जहां वे असुरक्षित महसूस करते हैं.
यातायात नियमों के पालन में भी भिन्नता
यातायात अनुशासन के मामले में विभिन्न क्षेत्रों में गजब की भिन्नता दिखती है. यातायात नियमों के पालन में असम (68 फीसद ने माना, ठीक से अनुपालन होता है) की स्थिति कर्नाटक (89 फीसद ने उल्लंघन होने की बात बताई) से बिल्कुल अलग है. सर्वे में आवारा कुत्तों को लेकर अप्रत्याशित क्षेत्रीय विभाजन सामने आया. 2024 में कुत्ता काटने की 3,16,000 घटनाओं के बीच केरल के 96 फीसद निवासी उनकी उपस्थिति नहीं चाहते, जबकि उत्तराखंड के 64 फीसद लोग कुत्तों के साथ सहजता महसूस करते हैं. ये निष्कर्ष आंकड़ों की बानगी भर नहीं बल्कि यह भी बताते हैं कि सार्वजनिक सुरक्षा मोर्चे पर किस-किस तरह की चुनौतियां हैं.