
इलेक्टोरल बॉन्ड पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध करार देते हुए कहा कि इससे सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है. इतना ही नहीं अदालत ने यह भी कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 के बाद से लेकर अब तक के बॉन्ड की चुनाव आयोग को देनी होगी. SBI को बताना होगा कि किसने इन बॉन्ड्स को खरीदा है. इसके बाद चुनाव आयोग इस जानकारी को सार्वजनिक करेगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी पर जमकर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा,'नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है. भाजपा ने इलेक्टोरल बॉन्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था. आज इस बात पर मुहर लग गई है.
SC के फैसले का स्वागत: खड़गे
राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी बीजेपी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा,'चुनावी बॉन्ड योजना की लॉन्चिंग के दिन ही कांग्रेस पार्टी ने इसे अपारदर्शी और अलोकतांत्रिक बताया था. इसके बाद कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणापत्र में मोदी सरकार की संदिग्ध योजना को खत्म करने का वादा किया था. उन्होंने कहा,'हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, जिसने मोदी सरकार की इस 'काला धन रूपांतरण' योजना को 'असंवैधानिक' बताते हुए रद्द कर दिया है.
कोर्ट का बात सुनी जाने की उम्मीद
खड़गे ने आगे कहा,'हमें याद है कि कैसे मोदी सरकार, पीएमओ और वित्त मंत्री ने बीजेपी का खजाना भरने के लिए हर संस्थान आरबीआई, चुनाव आयोग, संसद और विपक्ष पर बुलडोजर चला दिया था. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस योजना के तहत 95% फंडिंग बीजेपी को मिली है. उन्होंने आगे कहा कि हमें उम्मीद है कि मोदी सरकार भविष्य में ऐसी चीजों का सहारा लेना बंद कर देगी और सुप्रीम कोर्ट की बात सुनेगी, ताकि लोकतंत्र, पारदर्शिता और समान अवसर कायम रहे.'
अक्टूबर 2023 में शुरू हुई थी सुनवाई
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी. इस दौरान कोर्ट ने 3 दिन लगातार इस मामले पर सुनवाई की थी. मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की. इस संविधान पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा थे. कोर्ट ने 31 अक्टूबर से दो नवंबर तक सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.