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बंकरों में हथियार थामकर खड़े हैं पढ़ने-लिखने वाले लड़के, पढ़ें Manipur के बफर जोन से ग्राउंड रिपोर्ट

घुप अंधेरा, चारों तरफ सन्नाटे की चादर, छोटे-छोटे बंकर और उनमें हथियार थामकर खड़े 18 से 25 साल के लड़के. यह मंजर है मणिपुर के हिंसा प्रभावित इलाके का. आसपास फूंकी जा चुकी बसों के ढांचे पड़े हैं. आजतक की टीम ने यहां पहुंचकर सच्चाई को करीब से देखा. इस ग्राउंड रिपोर्ट में पढ़िए मणिपुर की भयावह कहानी.

मणिपुर के कांगपोकपी से लगे गांव में इस तरह युवक बंदूक थामे खड़े रहते हैं. मणिपुर के कांगपोकपी से लगे गांव में इस तरह युवक बंदूक थामे खड़े रहते हैं.
आशुतोष मिश्रा
  • कांगपोकपी (मणिपुर),
  • 27 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 8:25 AM IST

मणिपुर की राजधानी इंफाल और यहां से 45 किलोमीटर दूर बसा है कांगपोकपी शहर. कांगपोकपी से जब इंफाल की तरफ आगे बढ़ते हैं तो वह क्षेत्र आता है, जहां से घाटी शुरू होती है. इस इलाके से ही मैतेई और कुकी आबादी के क्षेत्र एक-दूसरे से अलग होते हैं. हिंसा के बाद इस इलाके को बफर जोन में तब्दील कर दिया गया है.

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मणिपुर में हिंसा की भयावहता के बारे में जानने के लिए आजतक की टीम सीधे कांगपोकपी और इंफाल के बीच स्थित उस स्थान पर पहुंची. जहां अब भी हिंसा के निशान दिखाई दिए. जिन बसों को लोगों ने आग के हवाले कर दिया था, उनका ढांचा अब भी जस का तस खड़ा है. पहली बार में देखने पर यह इलाका किसी युद्ध क्षेत्र से कम नहीं लगता.

किसी ने ट्रक फूंके तो किसी ने बसें

आगजनी के बाद कबाड़ में तब्दील हो चुकी बसों के बारे में जब स्थानीय लोगों से पूछा गया तो उन्होंने बताया, 'कुकी समाज के लिए रसोई गैस की सप्लाई लेकर आ रहे ट्रकों को स्थानीय लोगों ने आग के हवाले कर दिया था. इसका बदला लेने के लिए कुकी समुदाय ने इंफाल की तरफ आने वाली दो बसों को रात के अंधेरे में फूंक दिया.'

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'अपनी जमीन छोड़कर कहां जाएं?'

आजतक की टीम यहां से मोंगटुक गांव की तरफ आगे बढ़ी. अंधेरा होते ही यहां पूरे इलाके में सन्नाटे की चादर पसर गई. यह गांव भी बफर जोन के करीब ही है. घरों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि यहां रहने वाले लोग फायरिंग करने वालों की रडार पर हैं. बात करने पर युवा बताते हैं, 'दहशत के साए में जी रहे हैं, लेकिन अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहते. फायरिंग में जान जाने का डर भी है, लेकिन अपनी जमीन छोड़कर जाएं भी तो कहां?'

किसी भी वक्त हो सकती है गोलीबारी

आगे बढ़ने पर गांव के बुजुर्ग प्रधान मिलते हैं. वह चाहते हैं कि जल्द से जल्द स्थिति बेहतर हो जाए, लेकिन हालात ऐसे दिखाई नहीं पड़ते. उन्हें डर है कि गांव का कोई भी शख्स किसी भी वक्त गोलीबारी का शिकार हो सकता है. यहां से आगे बढ़कर आजतक की टीम ठीक उस जगह पहुंच जाती है, जहां बफर जोन पर बंदूक थामे गांव के युवा तैनात हैं.

'अपनी जमीन की हिफाजत कर रहे हैं'

गांव के युवक मोंकू बताते हैं कि अब उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है. इसलिए हालात बिगड़ते ही अपनी जमीन बचाने के लिए उन्होंने हथियार उठा लिया है. यहां से ही कुकी समुदाय के गांव की सीमा शुरू होती है. गांव के लोगों ने यहां बंकर बना रखे हैं. इन बंकरों में हथियारों से लैस गांव के युवा बंदूक थामे अपनी जमीन की 'हिफाजत' कर रहे हैं. बंकरों में हथियार तानकर खड़े कई युवक कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र हैं, लेकिन फिलहाल सभी काम छोड़कर बंदूक थाम रखी है. इस इलाके में ऐसे अनगिनत बंकर बने हुए हैं.

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कदमों की आहट पर हो जाते हैं चौकन्ने

18 साल का मोंकू कॉलेज का छात्र है. जिस बंदूक को उसने थाम रखा है, सिर्फ एक बार ही चलाया है. आजतक की टीम मोंकू से बात कर ही रही थी कि अचानक रात के सन्नाटे में किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है. बंकरों में मौजूद सभी युवक चौकन्ने हो जाते हैं कि कहीं उनका दुश्मन सामने से गोलियां ना चला दे. मोंकू बताते हैं कि गोलीबारी में अब तक इस इलाके में रहने वाले उनके समाज के 20 युवा घायल हो चुके हैं.

गांव के चारों तरफ की जाती है पेट्रोलिंग

यहां गांव के आखिरी किनारे को लोग बॉर्डर मानते हैं. इस बॉर्डर पर हाथियार और बुलेट्स लेकर अनगिनत युवा तैनात हैं. बंकर में मौजूद युवाओं से जब आजतक की टीम ने पूछा कि यहां कितने लड़के कॉलेज पढ़ने जाते हैं तो करीब 7 से 8 लड़कों ने हाथ उठाकर हां में जवाब दिया. बंकर से बाहर निकलने पर गांव के अलग-अलग हिस्सों में हथियारबंद युवा पेट्रोलिंग करते नजर आते हैं. 

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