
दो हफ़्ते पहले यूपी के मुख्यमंत्री का एक बयान आया था. उन्होंने कहा था कि देश को 5 ट्रिलियन की इकॉनमी बनाने में यूपी का 1 ट्रिलियन का योगदान होगा. अब एक सर्वे की सुनिये. इंडिया टुडे-एमडीआरए के एक सर्वे के मुताबिक यूपी इकॉनमी में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों की लिस्ट में यूपी लास्ट से तीसरे नम्बर पर है. इस लिस्ट में पहले पर गुजरात, दूसरे पर तमिलनाडु फिर कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा केरल और उत्तराखंड हैं. सबसे फिसड्डी राज्य झारखंड और बिहार हैं. आश्चर्य यूपी की स्थिति पर इसलिए भी है कि आबादी से लेकर संसद में प्रतिनिधित्व तक सबसे बड़ा राज्य अर्थव्यवस्था के मामले में पिछड़ा हुआ है. उन राज्यों ने जिन्होंने सबसे ज्यादा इंप्रूवमेंट की है उसमें सबसे अव्वल है हरियाणा,मध्यप्रदेश. गुजरात बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में टॉप पर है- क्या कारण , फ़ैक्टर्स हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
कॉरपोरेट की दुनिया मे हैं या कभी रहे हैं तो मून लाइटिंग शब्द से आपका वास्ता पड़ा ही होगा. मतलब यही है कि मौजूदा कम्पनी जिसमें आप काम करते है उसे बताए बिना अपने काम करने घंटो के बाद दूसरी कंपनियों के लिए काम कर पैसा कमाना. भारत मे इसकी इजाजत नहीं है. आम तौर पर कम्पनियां नौकरी देते वक्त ही सिग्नेचर कराती हैं कि ऐसा नहीं करना है. इस पर ही बहस सोमवार को पार्लियामेंट तक पहुंची लेकिन केंद्र सरकार ने क्लियर कह दिया कि फिलहाल वो ऐसा करने के मूड में नहीं. केंद्रीय लेबर एंड एम्पलयोयमेंट विभाग के राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने एक सवाल के जवाब में कहा कि हम कम्पनियों से ये अधिकार नहीं छीन सकते, मुन लाइटिंग को लीगल करना जायज नहीं लगता. हर एम्प्लॉयर को ये अधिकार है कि वो एम्प्लॉयीज को मून लाइटिंग की छूट दे या न दे. लेकिन कानूनी रूप से प्रावधान क्या हैं? क्या संविधान में भी ऐसा ही कुछ है जो लोगों को मूनलाइटिंग करने से रोकता है या फिर ये कम्पनियों तक ही सीमित है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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भारत के पड़ोसी देश इन दिनों राजनीतिक तौर पर उथल पुथल के दौर से गुजर रहे हैं. इसी फेहरिस्त में नेपाल भी शामिल है. पिछले ही महीने वहाँ चुनाव हुए थे लेकिन अब तक सरकार बनाने की राह साफ नहीं हुई. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने अल्टीमेटम दे दिया है और कहा है कि एक हफ्ते का और समय है नई सरकार बनाने के लिए. शेर बहादुर देउबा जो अभी प्रधानमंत्री हैं उनकी नेपाली कांग्रेस को इस चुनाव में 136 सीटें मिली हैं जबकि बहुमत के लिए 138 सीटें चाहिए. इन दो सीटों के लिए पेंच फंस रहा है. लेकिन बात इतनी सी ही नहीं. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी को 76 सीटें हासिल हुई हैं और उनके गठबंधन के पास कुल 104 सीटें हैं. दूसरी तरफ पुष्प कमल दहाल 'प्रचंड' की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल माओवादी केंद्र को इस चुनाव में कुल 32 सीटें हैं. ऐसे में सबके अपने दावे हैं और चाहत. 2008 में नेपाल में राजशाही हटने के बाद अब तक करीब दस बार सरकारें बदल चुकी है. मौजूदा स्थिति क्या है और क्या इस राजनीतिक ऊहापोह को हल मिलता दिख रहा है और क्या है नेपाल की इस राजनीतिक अस्थिरता का कारण? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.