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पब्लिक प्लेस पर छेड़छाड़ और उत्पीड़न... महिलाओं के साथ होने वाले अपराध पर क्या कहते हैं आंकड़े

अपने टेक-हब होने के दर्जे के नाते कर्नाटक को भारत के ज्यादा तरक्कीपसंद राज्यों में माना जाता है, मगर इस मोर्चे पर भी सर्वेक्षण का सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आता है: पांच में से करीब चार उत्तरदाता (79 फीसद) स्वीकार करते हैं कि राज्य की महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर उत्पीड़न झेलना पड़ता है.

सार्वजनिक स्थलों पर उत्पीड़न और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ पर GDB सर्वे क्या कहता है सार्वजनिक स्थलों पर उत्पीड़न और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ पर GDB सर्वे क्या कहता है
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 9:20 PM IST

इंडिया टुडे ग्रुप की तरफ से हाउ इंडिया लिव्ज के साथ मिलकर किया गया पहला सकल घरेलू व्यवहार (जीडीबी) सर्वेक्षण महिलाओं के साथ होने वाले अपराध, खास तौर पर छेड़छाड़ की असली स्थिति को सामने रखता है. महिलाओं के साथ देशभर में ये समस्या बनी हुई है. ये जरूर है कि इसका प्रतिशत कहीं बहुत अधिक है तो कहीं कम, लेकिन यह  समस्या तो बनी ही हुई है. 

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महिलाओं के साथ अभद्रता बड़ी समस्या
सर्वे में सभी उत्तरदाताओं में से 42 फीसद ने माना कि उनके इलाके में छेड़छाड़ होती है, वहीं केवल महिलाओं की राय पूछें तो यह आंकड़ा बढ़कर 44 फीसद हो जाता है. यह बेहद कम अंतर सामाजिक रूप से ओझल मसले को उजागर करता है. यह खुलासा करता है कि किस तरह जन धारणा सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के साथ हो रही रोजमर्रा की अभद्रताओं को देखने से चूक जाती है. 

अपने टेक-हब होने के दर्जे के नाते कर्नाटक को भारत के ज्यादा तरक्कीपसंद राज्यों में माना जाता है, मगर इस मोर्चे पर भी सर्वेक्षण का सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आता है: पांच में से करीब चार उत्तरदाता (79 फीसद) स्वीकार करते हैं कि राज्य की महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर उत्पीड़न झेलना पड़ता है. इसके विपरीत पड़ोसी तमिलनाडु के केवल 17 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं का उत्पीड़न एक समस्या है. 

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धारणा का भी असर
तकरीबन समान सामाजिक-आर्थिक सूचकांक वाले दो पड़ोसी दक्षिणी राज्यों के बीच इस असंगति की आखिर क्या वजह है? शायद वह वजह है एक राज्य में उपेक्षा और चुप्पियों के विपरीत, दूसरे राज्य में जन सतर्कता और सामुदायिक प्रवर्तन की अघोषित जिम्मेदारी का होना. मगर शायद यह धारणा का प्रभाव भी है, और हर नीति-निर्माता जानता है कि धारणा हकीकत जितनी ही दमनकारी हो सकती है.

शहरी भारत में जिंदगी का आधार सार्वजनिक परिवहन सुरक्षा के परिदृश्य में विरले उजले लक्षण के रूप में उभरा. देशभर के 86 फीसद उत्तरदाताओं ने बसों, मेट्रो और लोकल ट्रेनों में सफर करते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करने की बात कही. महाराष्ट्र इस श्रेणी में अगुआ है, जहां 89 फीसद उत्तरदाताओं ने माना कि वे सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षित महसूस करते हैं, जो शायद मुंबई के आमतौर पर अच्छी तरह से नियम-कायदों से बंधे परिवहन नेटवर्क का प्रमाण है. यहां तक कि इस श्रेणी में फिसड्डी पंजाब में भी सुरक्षा धारणा दर सम्मानजनक ढंग से 73 फीसद है.

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