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समलैंगिकों के लिए रक्तदान पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से LGBTQI+ समुदाय को भी रक्तदान करने की इजाजत देने की मांग की गई है. CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस पर मंगलवार 30 जुलाई को सुनवाई करेगी. याचिका में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के 2017 में बनाए नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
रक्तदान पर प्रतिबंध समानता की राह में रोड़ा
याचिकाकर्ता शरीफ रंगनेकर ने कहा है कि 2017 के नियम ट्रांसजेंडर्स, महिला यौनकर्मियों और समलैंगिक पुरुषों को रक्तदान करने और रक्तदाता होने से पूरी तरह प्रतिबंधित करते हैं. याचिकाकर्ता का कहना है कि इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 21 के तहत संरक्षित समानता, सम्मान और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. लिहाजा कोर्ट ये प्रतिबंध हटाने का आदेश जारी कर सबको समान अधिकार दे. उन्होंने इस प्रतिबंध को समानता के अधिकार की राह में रोड़ा बताया है.
ट्रांसजेंडर महिलाएं कर सकती हैं रक्तदान
हालांकि दिसंबर 2015 से ट्रांसजेंडर महिलाएं रक्तदान कर सकती हैं. ट्रांसजेंडर पुरुषों और अन्य संभावित दाताओं का मूल्यांकन भी समान पात्रता मानदंडों के आधार पर किया जाता है. अगर वे उन मानदंडों को पूरा करते हैं, तो वे रक्तदान कर सकते हैं. नए "व्यक्तिगत दाता मूल्यांकन" के तहत, दाताओं से अब लिंग के आधार पर सवाल नहीं पूछे जाते. इसके बजाय, दाताओं से व्यक्तिगत जोखिम मूल्यांकन के आधार पर सवाल पूछे जाते हैं. इसमें नए या कई भागीदारों के साथ हाल ही में (3 महीने) हुई सेक्सुअल हिस्ट्री शामिल है.
साल 2017 में लगाया गया था प्रतिबंध
भारत सरकार ने साल 2017 में एक कानून बनाया था, जिसके तहत ट्रांसजेंडर लोगों के रक्तदान पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. एक LGBTQ+ कार्यकर्ता ने 2021 में देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें रक्तदान नीति के दो खंडों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. सरकार ने अपने दिशानिर्देशों का बचाव करते हुए कहा कि वे वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित थे.