
कोई शख्स हो या जमीन टुकड़ा हो, हर चीज के लिए चीनियों के अपने नाम हैं. उन्होंने जिन स्थानों पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लिया, उनके नाम भी बदल दिए. उन्होंने इस्लामिक नामों पर प्रतिबंध लगा दिया, ताकि मुसलमानों की अलग पहचान खत्म कर उन्हें चीनी संस्कृति में मिला दिया जाए. उन्होंने धार्मिक ग्रंथों को भी अपने मकसद के मुताबिक बदल दिया.
यहां तक कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नामों को भी चीनी मीडिया और प्रेस रिलीज में अपने हिसाब से लिखा जाता है- सु जिएशेंग (Su Jiesheng) और तंग-ना-डे तेलांग्पु (Tangnade Telangpu). ये उनके वास्तविक नामों का ट्रांसलिटरेशन (लिप्यंतरण) है.
चीन के कब्जे वाले क्षेत्रों को उनका इतिहास बदलने के लिए नए नाम दिए गए. यह 1950 और 1960 के दशक में तिब्बत के मामले में देखा गया, जिसका नाम बदलकर Xizang (Western Tsang) यानि क्सिजांग (पश्चिमी त्सांग) कर दिया गया. इसी तरह पूर्वी तुर्केस्तान का नाम बदलनकर शिनजियांग (न्यू फ्रंटियर) कर दिया गया.
तिब्बत का नाम चीन की ओर से कब्जा किए जाने के 13 साल बाद बदला गया. क्सिजांग नाम का इस्तेमाल चीनियों की ओर से अक्सर फोनेटिक्स को बदल कर तिब्बतियों के लिए किया जाता है. इस तरह के उच्चारण से अपमानजनक शब्द का आभास होता है- यानि ‘पश्चिमी गर्द’.
एक क्षेत्र का नाम बदलने के बाद, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) वहां की जमीन पर अपने बेतुके दावों को बढ़ावा देने के लिए प्रोपेगेंडा करती है. चीनी कूटनीतिक समुदाय के माध्यम से भारत में सुनाई देने वाले सबसे हास्यास्पद दावों में से एक ये है कि तिब्बती बौद्ध धर्म की उत्पत्ति अंदरूनी मंगोलिया में हुई.
इतिहास को बदल कर उसे अपने हिसाब से लिखने के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के इरादे साफ हैं. उसकी कोशिश है कि चीन के कब्जे वाली जमीन पर तिब्बती लोग भारतीय संस्कृति के प्रभाव से दूर हो जाएं.
इस्लामी नामों पर प्रतिबंध लगाना
चीन ने ईस्ट तुर्केस्तान (चीनी नाम शिनजियांग) के इलाकों से इस्लाम का असर मिटाने के लिए 23 इस्लामी नामों को बदल दिया. चीन ने शिनजियांग से लगे पूर्वी तुर्किस्तान के संयमित क्षेत्रों से इस्लाम के प्रभाव को मिटाने के लिए देश में 29 इस्लामी नामों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन नामों के तहत न तो किसी भी जन्म को रजिस्टर्ड किया जा सकता है और न ही किसी मौत की सूचना दी जा सकती है. ऐसे में पैतृक संपत्ति पर किसी भी तरह का दावा असंभव हो जाता है.
प्रतिबंधित नाम वाले छात्रों को स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए अपना नाम बदलना पड़ता है. इस तरह के नाम वाले लोग न तो सरकारी जॉब के लिए आवेदन कर सकते हैं और न ही अर्ध-सरकारी प्रतिष्ठानो में आधिकारिक रिक्तियों के लिए. इस तरह के अतिवादी कदमों का उईगुर समुदाय पर पूरी तरह आधिपत्य जमाना है.
इंटरनेट का इस्तेमाल
1.42 अरब की चीन की आबादी दुनिया की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने इंटरनेट की शक्ति को समझा है, जिसकी दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश को नियंत्रित पहुंच देकर कारगर ढंग से राय को प्रभावित किया जा सके.
CCP की ओर से चीन की विदेश नीतियों के पक्ष में घरेलू और वैश्विक मोर्चों पर राय को प्रभावित करने के लिए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की साइबरक्राइम यूनिट का काफी प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जाता है. इसका नाम यूनिट 61398 है.
PLA जनरल स्टाफ डिपार्टमेंट का तीसरा विभाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सिग्नल्स इंटेलिजेंस और इन्फॉर्मेटाइजेशन का इस्तेमाल करता है जिससे कि ग्लोबल साइबर स्पेस पर अगर कब्जा नहीं तो बढ़त बनाई जा सके.
शास्त्र और धर्म ग्रंथों का अनुवाद
चीन ने तथाकथित थिओलॉजिकल इंस्टीट्यूट्स में में सभी बौद्ध धर्मग्रंथों का अनुवाद करना शुरू कर दिया है ताकि तिब्बती लोगों को चीनी भाषा में धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए मजबूर किया जा सके.
फरवरी 2018 में ल्हासा के जोखांग मंदिर को जलाना तिब्बती बौद्ध धर्म के सभी पुराने बौद्ध धर्मग्रंथों को जलाने का एक प्रयास था. ये जगह तिब्बती बौद्धों के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है.
पुराने धर्मग्रंथ नष्ट होने और चीनी भाषा में प्रकाशित नई पुस्तकों के साथ, चीन के कब्जे वाले तिब्बत में भिक्षुओं की नई पीढ़ी खुद को बीजिंग के करीब और सीसीपी के प्रभाव में पाती है.
चीन इस तरह के कृत्यों के साथ, समुदायों और अपने कब्जे वाली जमीन की विशिष्ट पहचान पर हमला कर रहा है. मकसद साफ है कि हान समाज और झोंग गुओ के मध्य साम्राज्य के अलावा बाकी हर पहचान को मिटा दिया जाए.