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370 हटने के बाद कितनी बदली कश्मीर की सियासी फिजा? आजतक के सर्वे में दिखे ये 5 बड़े फैक्टर

MOTN सर्वे के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में सबसे बड़े मुद्दों में बेरोजगारी हावी है. यहां 47 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी को बड़ी समस्या बताया है. उसके बाद 17 फीसदी लोगों ने महंगाई से परेशान होना बताया है. 11 फीसदी विकास कार्य चाहते हैं. 4 फीसदी ने माना कि राज्य की सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार है.

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव आ गए हैं. जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव आ गए हैं.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:57 PM IST

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इस बीच, आजतक ने सी-वोटर के साथ मिलकर देश का मिजाज (Mood of the Nation Survey) जाना है. इस सर्वे में 1 लाख 36 हजार 463 का सैंपल साइज लिया गया है. ये सर्वे 15 जुलाई से 10 अगस्त के बीच किया गया है. जम्मू और कश्मीर में जनता की राय क्या है? सर्वे में 5 बड़े फैक्टर भी निकलकर आए हैं. जम्मू कश्मीर में लोग अब आतंक की बात नहीं करते हैं, बल्कि विकास चाहते हैं और मुख्यधारा से जुड़ने के लिए खासे उत्साहित हैं. यहां पिछले 5 साल में हालात पूरी तरह से बदल गए हैं. अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर की सियासी फिजा भी बदल रही है.

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इस केंद्र शासित प्रदेश में सबसे बड़े मुद्दों में बेरोजगारी हावी है. यहां 47 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी को बड़ी समस्या बताया है. उसके बाद 17 फीसदी लोगों ने महंगाई से परेशान होना बताया है. 11 फीसदी विकास कार्य चाहते हैं. 4 फीसदी ने माना कि राज्य की सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार है. कानून व्यवस्था और किसानों के मुद्दे को एक-एक फीसदी लोगों ने समस्या के रूप में गिनाया है. यानी पूरे विधानसभा चुनाव में यही पांच बड़े फैक्टर असर डालेंगे और राजनीतिक माहौल में छाए रहने की उम्मीद है.

क्या बदल सकता है जम्मू कश्मीर का गणित?

हाल ही में जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव हुए हैं. यहां लोकसभा की कुल 5 सीटें हैं. बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2-2 सीटें जीती हैं. एक सीट बारामूला में अवामी इत्तेहाद पार्टी प्रमुख राशिद इंजीनियर ने जीत हासिल की. उन्होंने उमर अब्दुल्ला को हराया है. MOTN सर्वे के मुताबिक, अगर आज चुनाव हुए तो बीजेपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस पिछला प्रदर्शन दोहरा सकती है. हालांकि, राशिद इंजीनियर को झटका लग सकता है और ये सीट पीडीपी के हाथ आ सकती है. कांग्रेस को फिर सफलता मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है.

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कितनी विधानसभा क्षेत्रों में किसे बढ़त?

2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर प्रदर्शन देखें तो 29 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी ने बढ़त बनाई. 34 विधानसभा क्षेत्रों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और ​​7 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने बढ़त बनाई है. 5 विधानसभा क्षेत्र में पीडीपी, 14 विधानसभा क्षेत्रों में इंजीनियर राशिद और 1 विधानसभा सीट में सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने बढ़त बनाई.

वो पांच बड़े नेता कौन हैं, जो बदल सकते हैं गणित

जम्मू कश्मीर में राशिद इंजीनियर की अवामी इत्तेहाद पार्टी, मोहम्मद अल्ताफ बुखारी की जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी (JKAP), गुलाम नबी आजादी की डेमोक्रेटिक प्रगतिशील आजाद पार्टी, सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकती है. इसके अलावा नेशनल कांफ्रेंस भी यहां की पॉलिटिक्स में खासा दखल रखती है. राज्य में तीन बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस और बसपा भी सक्रिय है. इस बार चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का अलायंस हो गया है.

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस इस बार मजबूती से उतरने की तैयारी में है. इस अलायंस की सीधे तौर पर बीजेपी और पीडीपी से लड़ाई देखने को मिल सकती है. पीडीपी समेत अन्य क्षेत्रीय दल भी जोर लगा रहे हैं और चुनावी समीकरण बदलने की क्षमता रखते हैं. क्षेत्रीय दलों को गेमचेंजर के तौर पर देखा जा रहा है. राज्य में कुल 90 सीटें हैं. क्षेत्रीय दल अलग-अलग संभागों में प्रभावशाली हैं. क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन ही नई सरकार में उनकी भूमिका तय करेगा.

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- राशिद इंजीनियर (शेख अब्दुल राशिद): राशिद इंजीनियर को इंजीनियर राशिद के नाम से भी जाना जाता है. कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा जिले में मजबूत आधार रखते हैं. उनके नेतृत्व वाली 'आवामी इत्तेहाद पार्टी' (AIP) ने पहले भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की है और उनका समर्थन क्षेत्रीय मुद्दों पर आधारित है. राशिद इंजीनियर को युवाओं और गैर-पारंपरिक वोटरों का समर्थन मिलता है, जो मुख्यधारा के दलों से निराश माने जाते हैं.
- अल्ताफ बुखारी: अल्ताफ बुखारी ने हाल ही में 'जम्मू और कश्मीर अपना दल' (JKAP) नाम की पार्टी बनाई है. बुखारी के पास प्रशासनिक अनुभव है और उन्होंने पहले पीडीपी के साथ भी काम किया है. बुखारी की पार्टी का दृष्टिकोण मध्यमार्गी है, जो उन्हें ना सिर्फ कश्मीर घाटी में, बल्कि जम्मू क्षेत्र में भी वोटरों को आकर्षित करने में मदद कर सकता है. उनकी पार्टी आर्थिक विकास, रोजगार और शांति के मुद्दों पर केंद्रित है.
- गुलाम नबी आजाद: गुलाम नबी आजाद अनुभवी नेता हैं. वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं. उन्होंने हाल ही में अपनी पार्टी 'डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी' (DAP) बनाई है. आजाद का राजनीतिक अनुभव और उनकी प्रतिष्ठा उन्हें एक मजबूत बनाती है. आजाद की पार्टी का दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्ष और समावेशी है, जो उन्हें जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों में वोटरों का समर्थन दिला सकता है. उनके पास जम्मू क्षेत्र में भी मजबूत आधार है, जिससे वे चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं.

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क्या क्षेत्रीय मुद्दे चर्चा में हैं?

अनुच्छेद 370 की बहाली: जम्मू कश्मीर में कई नेता अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य के विशेष दर्जे पर अपने-अपने दृष्टिकोण रखते आ रहे हैं, जो कश्मीर घाटी में महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा हो सकता है. आर्थिक विकास, शांति और स्थिरता के मुद्दों पर राज्य के नेता जोर दे रहे हैं और उनके लिए यह एक महत्वपूर्ण विकल्प बन सकता है. खासकर उन वोटरों के लिए जो मुख्यधारा की पार्टियों से निराश हैं.
वोटर्स का ध्रुवीकरण: इन नेताओं की पार्टियां मुख्यधारा की पार्टियों से वोटर्स को विभाजित कर सकती हैं, जिससे चुनावी गणित और समीकरण बदल सकते हैं. अगर इन पार्टियों ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया तो वे चुनावों में और भी बड़ी भूमिका निभा सकती हैं.

जानिए किस पार्टी-नेता का क्या प्रभाव?

फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला: फारूक नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख हैं और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला पार्टी के उपाध्यक्ष हैं. दोनों नेताओं का कश्मीर घाटी में मजबूत समर्थन है. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद इनकी भूमिका और इनके रुख से कश्मीरी लोगों में इनकी स्वीकार्यता और भविष्य की राजनीति में इनका प्रभाव देखने को मिल सकता है.
महबूबा मुफ्ती (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी): महबूबा की पार्टी PDP घाटी के दक्षिणी हिस्सों में प्रभावशाली है. अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पीडीपी की पार्टी की आक्रामकता और केंद्र सरकार के खिलाफ बयानबाजी उन्हें कश्मीरी अलगाववादी विचारधारा के करीब लाती है, जिससे उनके समर्थकों का आधार बना रहता है.
सज्‍जाद लोन (पीपुल्स कॉन्फ्रेंस): सज्जाद लोन कश्मीर के उत्तर में प्रभावी नेता हैं और उनकी पार्टी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अच्छी पकड़ रखती है. वे पारंपरिक राजनीतिक दलों के खिलाफ एक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं और उनकी भूमिका अगले चुनावों में महत्वपूर्ण हो सकती है.

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बीजेपी का विस्तार और हिंदू वोट बैंक

बीजेपी जम्मू क्षेत्र में मजबूत है और इस क्षेत्र के हिंदू मतदाताओं को अपना मजबूत समर्थन देती है. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद बीजेपी ने कश्मीर घाटी में भी अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है. चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर के चुनावी समीकरण को बदल सकता है. परिसीमन के बाद जम्मू संभाग में छह और सीटें जुड़ जाने से राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. जम्मू में कुल सीटों की संख्या 43 हो गई है. पहले इस क्षेत्र में 37 सीटें थीं. इसी तरह कश्मीर संभाग में पहले 46 सीटें थीं, जो अब बढ़कर 47 हो गईं हैं. बीजेपी इस समायोजन का श्रेय ले रही है.

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में जम्मू में 29 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने वाली बीजेपी आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी संख्या बढ़ाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. बीजेपी का फोकस खासतौर पर राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में है. यहां पहाड़ी समुदाय को हाल ही में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने और हाल ही में गुज्जर नेता चौधरी जुल्फकार अली को पार्टी में शामिल किए जाने से पार्टी की संभावनाओं में इजाफा होने की उम्मीद है. बीजेपी का टारगेट इन जिलों की आठ विधानसभा सीटों में से कम से कम पांच पर जीत हासिल करना है.

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कांग्रेस को क्या उम्मीदें?

जम्मू कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ हुआ करता था, लेकिन 2014 के बाद से कांग्रेस ने अपनी जमीन खो दी है. खासकर हिंदू-बहुल इलाकों में. 2014 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में 12 सीटें जीतीं. लेकिन जम्मू के हिंदू-बहुल सीटों पर कांग्रेस के किसी भी हिंदू उम्मीदवार को जीत नहीं मिली. हालांकि, हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों ने कांग्रेस को नई उम्मीदें दी हैं. पार्टी ने सात विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की है, जिनमें से दो हिंदू बहुल हैं और दो अन्य हिंदू बहुल सीटों पर बीजेपी से काफी पीछे है. इससे पार्टी को यह विश्वास हो गया है कि वो जम्मू में बीजेपी को 20 से कम सीटों पर सीमित कर सकती है.

जम्मू की 43 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें या तो हिंदू बहुल हैं या फिर ऐसी हैं जहां हिंदू वोट निर्णायक हैं. बीजेपी का लक्ष्य इन सभी 34 सीटों और राजौरी और पुंछ की कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल करना है, जिससे जम्मू संभाग में कुल 40 सीटें जीतने का लक्ष्य है. हालांकि, बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जो इनमें से कई हिंदू-बहुल सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही है.

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कितनी बदल गई कश्मीर की सियासी फिजा?

2019 में अनुच्छेद 370 को हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. इस निर्णय ने राजनीतिक माहौल को पूरी तरह बदल दिया है. लोग विभिन्न राजनीतिक दलों से अपनी स्थिति पर स्पष्टता चाहते हैं और यह आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) जैसी मुख्यधारा की पार्टियों ने अपना राजनीतिक प्रभाव काफी हद तक खो दिया है. इन पार्टियों ने विरोध प्रदर्शनों और चुनावों के बहिष्कार का मार्ग अपनाया, जिससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी अपने आधार को मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वहीं, नई पार्टियां और नेता उभर रहे हैं, जो बदलते राजनीतिक समीकरणों में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं. जैसे अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी (JKAP) और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (DAP). इन नई पार्टियों ने विकास और शांति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके जनता का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की है.

वहीं, बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू और कश्मीर में अपना राजनीतिक दायरा बढ़ाने की कोशिश की है. बीजेपी नेता राज्य के पुनर्गठन और केंद्र शासित प्रदेश बनाने के अपने कदम को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में गिना रहे हैं, खासकर जम्मू क्षेत्र में. बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे उनका राजनीतिक आधार मजबूत हुआ है. हिंदू मतदाताओं में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी है, जो राज्य के पुनर्गठन को सकारात्मक रूप से देख रहे हैं. बीजेपी का चुनावी अभियान जम्मू क्षेत्र में हिंदू मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. जबकि कश्मीर घाटी में उनकी उपस्थिति अपेक्षाकृत कम है.

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से सुरक्षा स्थिति में भी बदलाव देखा गया है. हालांकि, आतंकवादी गतिविधियों में पूरी तरह से कमी नहीं आई है, लेकिन सेना और सुरक्षा बलों की उपस्थिति बढ़ाई गई है. इसके साथ ही कश्मीर घाटी में लोगों के बीच असंतोष और विरोध प्रदर्शन भी देखे गए हैं. हालांकि, समय के साथ यह कम हो गए हैं.

सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. निवेश को प्रोत्साहित करने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं. हालांकि, आर्थिक विकास के मामले में अब भी चुनौतियां बनी हुई हैं और व्यापार और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में सुधार की गुंजाइश है. अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू और कश्मीर में धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण भी बढ़ा है. सामाजिक रूप से राज्य में नागरिकता, भूमि स्वामित्व और सरकारी नौकरियों जैसे मुद्दों पर ध्रुवीकरण बढ़ा है. कश्मीर घाटी में लोग इस फैसले को अपनी स्वायत्तता और पहचान पर हमले के रूप में देखते हैं. जबकि जम्मू क्षेत्र में इसे विकास और समानता के दृष्टिकोण से समर्थन मिला है.

जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव

जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. 2014 में आखिरी बार चुनाव हुए थे और पीडीपी-बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी. उसके बाद 2019 में केंद्र ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया और विशेषाधिकार समाप्त हो गए. इसके साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए. राज्य का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा रहा है. 

कांग्रेस ने कब बनाई सरकार?

राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस एकमात्र ऐसा दल रहा है, जिसने जम्मू कश्मीर में तीन बार सरकार बनाई है. 1964 में एक साल के लिए गुलाम मोहम्मद सदीक कांग्रेस की सरकार में पहले सीएम बने. उनका दूसरा कार्यकाल 6 साल से ज्यादा का रहा. उसके बाद 2005 में गुलाम नबी आजाद कांग्रेस की सरकार में सीएम बने. वे दो साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे. लेकिन आज हालात बिल्कुल अलग हैं. गुलाम नबी आजाद जैसे सीनियर नेताओं ने पार्टी से दूरी बना ली है. संगठन में पुराने और अनुभवी चेहरों की कमी है.

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