
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद लगातार कड़े और बड़े फैसले ले रहे हैं. इनमें कुछ देशों पर टैरिफ लगाने का फैसला भी शामिल है. इसके अलावा अमेरिका में रहने वाले अवैध अप्रवासियों को भी वापस उनके मुल्क भेजा जा रहा है. इन फैसलों का दुनिया और खासतौर पर भारत पर क्या असर होगा, इस पर चर्चा के लिए इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में 'टैरिफ, ट्रैफ़िक और ट्रंप' सेशन रखा गया, जिसमें द एशिया ग्रुप के पार्टनर अशोक मलिक, अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह और पूर्व वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने शिरकत की.
ट्रेड एग्रीमेंट और टैरिफ एक साथ नहीं
क्या अमेरिका के टैरिफ लगाने वाले फैसले पर भारत ने चुप्पी साध रखी है? इस सवाल के जवाब में पूर्व राजदूत अरुण सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि भारत एकदम चुप है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका विजिट के बाद दोनों देश कुछ व्यापारिक समझौते करने जा रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि टैरिफ का फैसला पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले लिया गया लेकिन वह सिर्फ भारत को लेकर नहीं था, वह कई देशों के लिए है. दोनों देश 200 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2030 तक कारोबार को 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने के लिए तैयार हुए हैं.
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उन्होंने कहा कि जब दोनों देश फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर रहे हैं और व्यापार को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो टैरिफ बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि हाल में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका होकर आए हैं और भारत हर फैसले पर बारीकी से नजर बनाए हुए है. अरुण सिंह ने कहा कि ट्रंप ने पहले कार्यकाल में भी भारत पर कुछ टैरिफ लगाए थे जिसके जवाब में दिल्ली की तरफ से भी रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए गए थे.
ट्रंप अब पहले से ज्यादा तैयार
पूर्व वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने कहा कि अभी तक भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर कुछ भी साफ नहीं है. वहीं अमेरिका ने मैक्सिको और कनाडा पर जो टैरिफ लगाए हैं उनकी स्थिति साफ है लेकिन भारत के बारे में अभी कुछ तय नहीं है. उन्होंने कहा कि ट्रेड बढ़ाने का मकसद साथ लेकर टैरिफ नहीं लगाए जा सकते, ऐसे में उन्हें किनारे रखना ही होगा. अनूप वधावन ने कहा कि मुझे उम्मीद है दोनों पक्ष इस बारे में खुलकर बात करेंगे और एक-दूसरे की चिंताओं के बारे में अवगत कराएंगे.
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द एशिया ग्रुप के पार्टनर अशोक मलिक ने कहा कि इस बार ट्रंप तैयार होकर आए हैं क्योंकि उनके पास पूरे चार साल का वक्त था. जब वह पहली बार चुने गए थे तब किसी को पता नहीं था ट्रंप सत्ता में आ जाएंगे. इस बार टैरिफ एक अहम मुद्दा है और अगर दोनों देश अक्टूबर तक ट्रेड डील पक्की करते हैं तो हमारे पास टैरिफ से निपटने का पर्याप्त वक्त होगा. उन्होंने कहा कि ये रेसिप्रोकल टैरिफ होंगे और सेक्टर्स को हिसाब से तय किए जाएंगे.
US के लिए भारत कोई समस्या नहीं
क्या अमेरिका के टैरिफ से निपटने के लिए भारत तैयार है? इसके जवाब में पूर्व राजदूत अरुण सिंह ने कहा कि अमेरिका ही नहीं बल्कि यूके और यूरोपियन यूनियन के साथ भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट चाहता है. उन्होंने कहा कि अगर भारत को ग्रोथ करना है तो द्विपक्षीय व्यापार समझौते और सेक्टर्स के हिसाब से ट्रेड डील करनी होंगी. अशोक मलिक ने कहा कि सप्लाई चैन को बेहतर बनाने के लिए भारत को ट्रेड डील करनी होंगी, इनमें यूएई से लेकर ऑस्ट्रेलिया, यूके जैसे देश शामिल होने जरूरी हैं.
अशोक मलिक ने कहा कि वाकई में ट्रंप भारत को किसी समस्या की तरह नहीं देखते जैसा कि यूक्रेन या फिर चीन को देखा जाता है. उन्होंने कहा कि अगर दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ता है तो भारत से अच्छे संबंध उनकी प्राथमिकता होगी. अनूप वधावन ने कहा कि हमें आगे का रास्ता तय करने के लिए कुछ गैर कारोबारी मुद्दे भी तलाशने होंगे ताकि राह आसान हो सके.
ट्रेड वॉर का क्या होगा असर
अरुण सिंह ने कहा कि अगर अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर छिड़ता है तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बहुत नुकसानदेह होगा. कनाडा और मैक्सिको पर अमेरिका के एक्शन से पहले ही अमेरिकी शेयर बाज़ार को झटका लग रहा है. अगर चीन की अमेरिकी बाज़ार तक पहुंच कम हो जाती है तो वह विकल्प तलाशेगा, जिससे भारत के अवसरों पर असर पड़ सकता है. साथ ही अमेरिका, चीन के साथ समझौता भी कर सकता है.
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में भी दोनों देशों के बीच बुनियादी प्रतिस्पर्धा जारी रहेगी क्योंकि अमेरिका दूसरे स्थान को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. जब तक यह प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी तब तक अमेरिका, भारत को एक अहम भागीदार के तौर पर देखेगा. अमेरिकी कंपनियां समझती हैं कि चीन पर अपनी तकनीकी बढ़त बनाए रखने के लिए उन्हें भारत के साथ एक मजबूत साझेदारी की जरूरत है.