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IIT बाबा अभय के सीन‍ियर बोले, 'गांजे का प्रचार बंद करो प्लीज, मैं भी संत हूं मगर...'

अभय सिंह की ही तरह हितेश न सिर्फ उसी आईआईटी कैंपस से पढ़े, बल्किो उन्होंने मुंबई की उसी कोचिंग में पढ़ाया भी, जहां अभय सिंह भी शिक्षक रहे थे. करीब-करीब एक ही रास्ते पर चल रहे आईआईटी बॉम्बे के इन दोनों छात्रों की कहानी में और भी बहुत कुछ मिलता-जुलता है.

Senior IIT Baba Hitesh Shakya (Photo: aajtak.in/Special Permission) Senior IIT Baba Hitesh Shakya (Photo: aajtak.in/Special Permission)
मानसी मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 30 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:04 PM IST

प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में आईआईटी बाबा के नाम से मशहूर हुए अभय सिंह का तकरीबन हर रोज नया वीडियो सामने आ रहा है. आईआईटी बॉम्बे से इंजीनियर बनकर अध्यात्म की राह में चलने वाले वो अकेले नहीं हैं. आईआईटी बॉम्बे से ही पढ़े उनके सीनियर हितेश शाक्य ने भी नौ साल पहले अपनी डिग्री जलाकर आध्यात्म की राह पकड़ ली थी. 

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अभय सिंह की ही तरह हितेश न सिर्फ उसी आईआईटी कैंपस से पढ़े, बल्कि उन्होंने मुंबई की उसी कोचिंग में पढ़ाया भी, जहां अभय सिंह भी शिक्षक रहे थे. करीब-करीब एक ही रास्ते पर चल रहे आईआईटी बॉम्बे के इन दोनों पूर्व छात्रों की कहानी में और भी बहुत कुछ मिलता-जुलता है. लेकिन दोनों की जीवनशैली काफी अलग है. एक संसार से अलग-थलग ईश्वर तलाश रहा है तो दूसरा इसी दुनिया में रहकर समाज के लिए कुछ करने की ललक रख रहा है. आइए जानते हैं इस दूसरे पूर्व छात्र हितेश शाक्य के बारे में जो गर्व के साथ खुद को अभय स‍िंंह आईआईटी बाबा का सीनियर बताते हैं.  

संघर्षों में बीता बचपन 
हितेश कहते हैं कि अभय सिंह अपने परिवार के बारे में बताते रहते हैं, लेकिन मेरा बचपन भी बहुत आसान नहीं रहा. मेरे पिता जी जब मैं दो या तीन साल का था तब माता जी को तीन बच्चों के साथ अकेला छोड़कर संन्यासी बन गए थे . मेरी मां एक सिंगल मदर थी और हम तीन बच्चों को अकेले पाला, सरकारी जॉब की. वो जिंदगी भर इतने संघर्षों से हमें पालती रहीं कि हमें हमेशा उनके प्रति आदर भाव ही बना रहा. 

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इन हालातों में पलने के बावजूद मेरा बच्चों को यही संदेश रहता है कि अगर मां-बाप झगड़ रहे हैं तो झगड़ने दो, वो जैसे भी हैं आप विचलित मत हो. हम स्कूल जाते थे, सरकारी लाइब्रेरी जाते थे, प्रयोग करते रहते थे, कभी पंखा खोल दिया कभी घड़ी को खोलकर कहीं से कुछ जोड़ दिया, बिल्कुल थ्री इडियट फिल्म के रणछोड़ दास छांछड़ की तरह. इसके अलावा पेड़ों के साथ प्रयोग करते थे, तब मेंडल का नियम पढ़ा था तो कभी आम के साथ अमरूद की डंडी जोड़ी तो कभी आलू के साथ टमाटर का बीज चिपका दिया. 

क्यों जलाई आईआईटी की डिग्री
हितेश बताते हैं कि मैंने साल 2017 में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री जला दी थी. ऐसा लग रहा था कि मुझे सत्य की राह पर चलना है. बस, तभी से संन्यास की राह पर निकल पड़ा. इंजीनियरिंग से विरक्ति तो आईआईटी फर्स्ट ईयर में ही होने लगी थी. मुझे समझ आ गया था कि यहां स्टूडेंट इंजीनियरिंग करने नहीं बल्कि इसलिए आते हैं कि आईआईटी की डिग्री लेकर लाखों की नौकरी मिल जाए, फिर भले वो मार्केटिंग में हो, या ट्रेंडिंग में. वो साल 2005 था, तब से 2025 तक मैंने आईआईटीयंस और शिक्षकों से बात करके यही सब महसूस किया. 

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हितेश कहते हैं कि जब फर्स्ट इयर में था तो सीनियर जोश भरते हुए कहते थे कि अट्ठी (8 CGPA)कम से कम मारना है. बाद में देखता हूं कि वही सीनियर खुद ड्रामा करके पैसा कमा रहे. वो खुद यूट्यूब पर एक्टर बन गए. इसलिए मैं कोटा में भी जाकर बच्चों और अभिभावकों को समझाता हूं कि ये सब पाखंड है. ये एक रेस भर है, ज्यादा नंबर लेकर आओ, रिज्यूमे टाइट करो, कंपनी को दिखाओ कि मुझे दो से पांच लाख सैलरी दो और बस काम पर लग जाओ, इसी से पेरेंट्स खुश, बीवी खुश, बच्चे खुश, आईआईटी को पैसा दो तो वो भी खुश. 

आसान नहीं होता सब कुछ छोड़ देना...
हितेश कहते हैं कि मेरी मां को लोग कहते थे कि हितेश ने नौकरी छोड़ दी, डिग्री जला दी, बाबा बन गया है, नशा करने लगा है, तब मैंने मां से कहा कि मैं दस महीने हर पल आपके साथ ही रहूंगा. साल 2018 में जनवरी से अक्टूबर तक उनके साथ ही रहा तो उन्होंने मेरा संन्यास स्वीकार कर लिया. एक संन्यासी के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उसे अपनी जननी से इजाजत जरूर मिले तभी वो अध्यात्म के मार्ग पर चल सकता है. मैं आज भी अपनी मां का पूरा ख्याल रखता हूं. 

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अब कैसे होता है जीवनयापन? 
मैंने जॉब छोड़कर लोगों को बिना पैसे के बांसुरी, पियानो, गिटार और तबला सिखाना शुरू किया. मैं बचपन से अपनी रुचि से यह सब सीखता रहा था. इसके अलावा मैं लोगों को संस्कृत, उर्दू, स्पेनिश भाषा सिखाता हूं. इसके लिए मैंने सुपीरियर सोसाइटी नाम से एक संगठन बनाया है. जहां फ्री इवेंट्स और वर्कशॉप के जरिये लोगों को संगीत और संयम की राह से आध्यात्मिीकता से जोड़ रहा हूं. कुछ लोग मुझे दान करते हैं, इससे महीने में करीब 70 हजार रुपया तक मिल जाता है तो मां को भेजता हूं और कम से कम में अपना जीवनयापन करता हूं. हम ओशो नियो सन्यासी हैं जो दुनियादारी छोड़ते नहीं, हमें लॉजिकली, माइंडफुली और होशपूर्वक खुले दिल से जीना है. 

नशे का प्रचार करना अच्छी बात नहीं  
हितेश कहते हैं कि मैं अपनी जीवनशैली से युवाओं को जीवन के सत्य के साथ जोड़ता हूं. ऐसा सत्य जो आधुनिकता और अंधी दौड़ से बचाता है. वो कहते हैं कि अभय सिंह ने अपने जीवन में जो प्राप्त कि‍या है, उसको भी नमस्कार करता हूं. उनका आभारी हूं क्योंकि उनके कारण अब लोग मेरे योगदान को भी वैल्यू कर रहे. लेकिन वो नशे का जो प्रचार कर रहे, उसका मैं समर्थन नहीं करता. इससे वो युवाओं को सही संदेश नहीं दे रहे. किसी भी नशे को भगवान से जोड़कर प्रचार करना सही नहीं है. हम संदेश देते हैं कि समय का सदुपयोग करो. आईआईटी बॉम्बे या कहीं भी पढ़ने जाएं तो आप आत्मनिर्भर होकर जाओ. आपको अपनी हेल्थ और मेंटल हेल्थ का ध्यान रखना है. रोज अपने दिन का 20 प्रतिशत समय अपनी हेल्थ को दो.

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