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ऐसा था 1947 का भारत, देखें- 75 साल में कहां से कहां आ गया देश!

देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं. इन 74 सालों में देश में काफी कुछ बदल गया है. आजादी के वक्त हम 34 करोड़ थे, आज आबादी 137 करोड़ से ज्यादा है. उस वक्त आम आदमी की सालाना कमाई 274 रुपये थी, आज 1.26 लाख रुपये है. हेल्थ, एजुकेशन, खेती-किसानी और क्राइम समेत और किन-किन मामलों में देश कितना बदला है? जानिए इस रिपोर्ट में.

भारत को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं. भारत को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं.
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 9:57 AM IST
  • 74 साल में 34 करोड़ से बढ़कर 137 करोड़ हुई आबादी
  • प्रति व्यक्ति सालाना कमाई 274 रुपये थी, आज ये 1.26 लाख रुपये है
  • एक आम भारतीय की औसत आयु 34 साल थी जो बढ़कर 69 साल हो गई है

देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं. हम 34 करोड़ से 137 करोड़ हो गए. देश का नागरिक पहले औसत 34 साल जीता था, अब 69 साल जीता है. देश की जीडीपी 2.93 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर आज करीब 134 लाख करोड़ रुपये हो गई. आम आदमी की सालाना कमाई 274 रुपये से बढ़कर 1.26 लाख रुपये से ज्यादा हो गई. इन 74 साल में देश में बहुत कुछ बदला है. आइये जानते हैं, तब से अब तक कितना बदला है देश?

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1. जमकर बढ़ी देश की आबादी...

जब हम आजाद हुए थे तब देश की आबादी 34 करोड़ के आसपास थी. 1951 में देश की पहली जनगणना हुई. उस वक्त हमारी आबादी 36 करोड़ से थोड़ी ही ज्यादा थी. आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी, तब आबादी बढ़कर 121 करोड़ के पार पहुंच गई. हालांकि, आधार बनाने वाली संस्था UIDAI ने दिसंबर 2020 तक देश की आबादी 137 करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान लगाया है.

2. आम आदमी की कमाई भी बहुत बढ़ी

74 साल में आम आदमी की कमाई भी बढ़ी है. 1950-51 में देश में एक आदमी की सालाना कमाई 274 रुपये थी. आज के हिसाब से देखा जाए तो ये रकम काफी कम है. आज 274 रुपये में महीनेभर का मोबाइल डेटा प्लान भी नहीं आता, लेकिन उस वक्त एक आदमी की सालभर की कमाई इतनी ही थी.

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आजादी के बाद से अब तक देश में प्रति व्यक्ति सालाना कमाई सैकड़ों गुना बढ़ गई है. 2020-21 में प्रति व्यक्ति औसत आय 1.26 लाख रुपये से ज्यादा रही थी. ये आंकड़ा और ज्यादा होता, अगर कोरोना वायरस नहीं आया होता.

3. 27 करोड़ से ज्यादा लोग अब भी गरीबी रेखा से नीचे

एक अनुमान के मुताबिक, आजादी के वक्त देश के 25 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, जो उस वक्त की आबादी का 80% होता है. हमारे देश में 1956 के बाद से गरीबी की संख्या का हिसाब-किताब रखा जाने लगा है. बीएस मिन्हास आयोग ने योजना आयोग को अपनी रिपोर्ट दी थी. उसमें अनुमान लगाया था कि 1956-57 में देश के 21.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे.

गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, देश की 26.9 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. यानी, उस समय तक देश की 22% आबादी गरीबी रेखा के नीचे आती थी. 

गरीब कौन होगा? इसकी परिभाषा भी सरकार ने तय कर रखी है. इसके मुताबिक, अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपये से ज्यादा कमा रहा है और गांव में रहने वाले व्यक्ति की हर महीने की कमाई 816 रुपये से ज्यादा है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा.

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4. बेरोजगारी के हालात में अब भी ज्यादा सुधार नहीं...

आजादी के वक्त देश में कितनी बेरोजगारी थी? इसको लेकर कोई सरकारी आंकड़ा मौजूद नहीं है. बेरोजगारी को लेकर नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (NSSO) ने 1972-73 में पहला सर्वे किया था. उस सर्वे के मुताबिक, उस वक्त देश में बेरोजगारी दर 8.35% थी.

सरकार की ओर से बेरोजगारी दर को लेकर आखिरी आंकड़ा 2018-19 का है. 2018-19 में हुए सर्वे के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर 5.8% थी. हालांकि, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMEI) के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2021 में देश में बेरोजगारी दर 6.95% रही थी.

5. पचास गुना से ज्यादा बढ़ी जीडीपी 

किसी भी देश की आर्थिक सेहत कैसी है? इसको जानने का पैमाना है जीडीपी यानी ग्रॉस डेमोस्टिक प्रोडक्ट. ऐसा माना जाता है कि जब अंग्रेज भारत आए थे, तब दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 22% से ज्यादा थी. लेकिन जब वो छोड़कर गए तो ये हिस्सेदारी घटकर 3% पर आ गई.

आजादी के बाद से अब तक हमारी जीडीपी 50 गुना बढ़ी है. 1950-51 में हमारी जीडीपी 2.93 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2020-21 में 134 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है.

6. आजादी से अब तक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कितना बढ़ा?

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कोरोना ने बता दिया कि किसी भी देश के लिए मजबूत हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कितना जरूरी है. आजादी से अब तक हमारे देश के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है. आजादी के समय देश में 30 मेडिकल कॉलेज ही थे, लेकिन अब 541 कॉलेज हैं. 

इतना ही नहीं, आजादी के समय देशभर में 2,014 सरकारी अस्पताल थे और अब इनकी संख्या साढ़े 23 हजार से ज्यादा है. डॉक्टरों की संख्या भी 12 लाख से ज्यादा बढ़ी है. 

हालांकि, अभी भी आबादी के लिहाज से डॉक्टरों की संख्या कम है. इस वक्त देश में 1,313 आबादी पर एक डॉक्टर है. जबकि WHO के मुताबिक, हर एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए.

7. बाल मृत्यु दर, सेक्स रेशो और औसत आयु...

आजादी के बाद से अब तक बाल मृत्यु दर और औसत आयु में तो हालात सुधरे हैं, लेकिन सेक्स रेशो में हम पहले से ज्यादा पिछड़ गए हैं.

आंकड़ों के मुताबिक, 1951 में एक हजार बच्चों पर मृत्यु दर जहां 146 थी, वो 2018 में घटकर 32 हो गई. यानी, 1951 में हर हजार बच्चों में से 146 बच्चे ऐसे थे जो एक साल भी नहीं जी पाते थे. 

वहीं, बात अगर औसत आयु की करें तो आजादी के वक्त देश की औसत आयु 34 साल थी. यानी उस वक्त एक व्यक्ति औसतन 34 साल ही जी पाता था. हालांकि, अब औसत आयु बढ़कर 69 साल हो गई.

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लेकिन, सेक्स रेशो में हमारी हालत सुधरने की जगह खराब ही हुई है. 1951 में हर एक हजार पुरुषों पर 946 महिलाएं थीं, लेकिन अब ये आंकड़ा घटकर 934 हो गया है.

8. कभी 90 रुपये थी सोने की कीमत, आज 50 हजार के पार

एक वक्त था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. इसका कारण ये था कि हमारे देश में हर घर में सोना हुआ करता था. आज भी दुनियाभर में सबसे ज्यादा सोना भारतीय घरों में ही है.

आज 10 ग्राम सोने की कीमत 50 हजार के आसपास पहुंच गई है. लेकिन जब हम आजाद हुए थे, तब 10 ग्राम सोने की कीमत 90 रुपये भी नहीं थी. यानी, अगर आज के हिसाब से तुलना करें तो आजादी के वक्त हम जितने में 10 ग्राम सोना खरीद सकते थे, आज उतने में एक लीटर पेट्रोल भी नहीं आता.

9. कभी 27 पैसे थी पेट्रोल की कीमत, आज 100 के पार

सोने के बाद अब पेट्रोल की कीमतों की बात. आज देश में पेट्रोल की कीमतें 100 का आंकड़ा पार कर चुकी है. लेकिन आजादी के वक्त एक लीटर पेट्रोल की कीमत महज 27 पैसे थे. 

साल 2000 तक एक लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़कर 29 रुपये के आसपास पहुंच गई. यानी, देखा जाए तो आज हम जितने में एक लीटर पेट्रोल खरीद रहे हैं, उतनी ही कीमत में आजादी के वक्त 350 लीटर से ज्यादा पेट्रोल आ जाता.

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10. कभी 1.5 लाख स्कूल थे, आज उससे 10 गुना ज्यादा

सरकारी आंकड़ों की मानें तो 31 मार्च 1948 तक देश में 1.40 लाख के आसपास प्राइमरी और 12,693 मिडिल और हाई स्कूल थे. लेकिन आज देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं. इसी तरह उस वक्त महज 414 कॉलेज ही देश में हुआ करते थे और आज इनकी संख्या 42 हजार से ऊपर चली गई है. 

उस वक्त बजट भी मात्र 74 करोड़ रुपये हुआ करता था और 2021-22 में केंद्र सरकार ने शिक्षा मंत्रालय को 93 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा दिए हैं.

11. क्राइम 8.5 गुना बढ़ा 

केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 1953 से अपराधों का लेखा-जोखा रख रही है. 1953 में NCRB की पहली रिपोर्ट आई थी. उसके मुताबिक, 1952 में देश में 6.25 लाख आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे. उस वक्त 10 हजार से ज्यादा मामले तो मर्डर के ही थे. 

NCRB की आखिरी रिपोर्ट 2019 के आंकड़ों पर आई है. इसकी मानें तो 2019 में देश भर में 51.56 लाख से ज्यादा केस दर्ज किए गए थे, जिनमें 28 हजार से ज्यादा मर्डर के केस थे. 

बलात्कार के मामलों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. 1971 से NCRB बलात्कार के मामलों का डेटा रख रहा है. 1971 में देश में 2,487 केस बलात्कार के दर्ज किए गए थे, जबकि 2019 में 32 हजार से ज्यादा केस दर्ज किए गए. 

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12. कभी जीडीपी में कृषि का योगदान 46%  था, अब 20% से भी कम

भारत कृषि प्रधान देश है. आजादी के वक्त देश की ज्यादातर आबादी खेती पर ही निर्भर थी. ऐसा अनुमान है कि उस वक्त 80% से ज्यादा आबादी की आजीविका खेती से ही चलती थी. इतना ही नहीं, उस समय देश की जीडीपी में कृषि का योगदान भी करीब आधा हुआ करता था.

योजना आयोग के मुताबिक, 1954-55 में देश की जीडीपी में कृषि का योगदान 46% के आसपास था, जो 2020-21 तक घटकर 20% से भी कम हो गया है. हालांकि, इस दौरान कृषि उत्पादन में जमकर बढ़ोतरी हुई है. खेती से जुड़े कामगारों की संख्या भी बढ़ी है.

खेती की बात हो तो मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की बात भी करनी ही होगी. हमारे देश में MSP1966-67 से लागू की गई. उस वक्त सिर्फ गेहूं को ही MSP पर खरीदा जाता था. उस समय एक क्विंटल (100 किलो) गेहूं पर सरकार 54 रुपये MSP देती थी. वहीं आज एक क्विंटल गेहूं पर 1,975 रुपये MSP मिलती है. 

13. कभी 3 लाख गाड़ियां ही थीं, आज 30 करोड़

सड़क एवं परिवहन मंत्रालय गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन का डेटा 1951 से रख रहा है. उस वक्त देश में सिर्फ 3 लाख के आसपास गाड़ियां ही रजिस्टर्ड थीं. लेकिन मार्च 2020 तक देश में गाड़ियों की संख्या करीब 30 करोड़ हो चुकी है. इसी तरह 1951 के वक्त देश में 3.99 लाख किमी की सड़क ही थी, लेकिन अब देश में सड़कों का जाल 62.16 लाख किमी से भी ज्यादा हो गया है.

14. रेलवे की तो तस्वीर ही बदल गई...

16 अप्रैल 1853 को हमारे देश में पहली ट्रेन चली थी. पहली ट्रेन ने मुंबई से ठाणे के बीच 33.6 किमी का सफर तय किया था. उसके बाद रेलवे की पटरियां बिछती गईं और रेलवे लाइफलाइन बन गई. रेलवे को लाइफलाइन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि आज भी करोड़ों यात्री रोज अपनी मंजिल तक इसी से पहुंचते हैं.

1950-51 में ट्रेन से सालभर में 128 करोड़ से ज्यादा यात्री सफर करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या 800 करोड़ से ज्यादा बढ़ गई. यात्रियों के बढ़ने की संख्या का असर रेलवे की कमाई पर भी दिखा है. 1950 में रेलवे को यात्रियों से जहां 98 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिलता था, वहीं 2019-20 में ये 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है.

इतना ही नहीं, उस वक्त रेलवे हर एक किमी पर 1.5 पैसा किराया वसूलती थी, लेकिन अब हर किमी पर 48 पैसे से ज्यादा किराया लगता है. हालांकि, देखा जाए तो इतने सालों में रेलवे के किराए में कुछ खास बढ़ोतरी नहीं हुई है.

15. केंद्र सरकार का खर्च भी बहुत बढ़ा...

आखिर में बात केंद्र सरकार के खर्च की यानी बजट की. आजादी के बाद पहला बजट जो आया था वो 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए था. उस बजट में सरकार ने 197 करोड़ रुपये रखे थे. उसके बाद से हमारे बजट में हजारों गुना की बढ़ोतरी हुई है. इसी साल फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया है, वो 34.83 लाख करोड़ रुपये का है.

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