
भारत के लिए कोरोना लड़ाई के लिहाज से आज का दिन ऐतिहासिक है, अद्भुत है और कई मायनों में देश की इच्छाशक्ति का परिचय देता है. 100 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका लगा दिया गया. मुश्किल...बहुत मुश्किल लक्ष्य, लेकिन भारत ने ये हासिल किया. चुनौतियां आईं, दूसरी लहर ने तबाही मचाई, लेकिन फिर भी 100 करोड़ का ये महत्वकांक्षी आंकड़ा छुआ गया. खुशी की बात है, गर्व भी होता है, लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है. 100 करोड़ के आंकड़े के पीछे भी कुछ ऐसे तथ्य छिपे हैं जिन्हें ना नजरअंदाज किया जा सकता है और ना ही जिन्हें नजरअंदाज किया जाना चाहिए.
इस टीकाकरण अभियान के ऐसे तथ्य हैं जो बताते हैं कि भारत के लिए चुनौतियां काफी ज्यादा हैं. ये चुनौतियां सरकारी स्तर पर भी हैं और लोगों की मानसिकता के स्तर पर भी. हर पहलू पर बात करते हैं जो ये बताएंगे कि 100 करोड़ का आंकड़ा सुनहरा जरूर है, लेकिन कहानी अधूरी है.
पहली-दूसरी डोज के बीच भारी अंतर
भारत में 100 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन जरूर लग गई है, लेकिन इसमें कितने ऐसे हैं जिन्हें पहली डोज लगी है और कितने ऐसे हैं जो दोनों डोज लगवा चुके हैं, ये आंकडा अलग ही कहानी बयां करता है. देश में इस समय मात्र 21% लोगों को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं. वहीं सिंगल डोज लेने वालों की संख्या 51% के आस-पास चल रही है. ये अपने आप एक 'चिंताजनक' ट्रेंड की ओर इशारा करता है. अब एक्सपर्ट इस ट्रेंड के पीछे दो मुख्य वजह मानते हैं.
पहली तो ये कि भारत में दो वैक्सीन लगने के बीच का अंतर काफी ज्यादा रखा गया है. ये कोविशील्ड वैक्सीन के लिए 12 से 16 हफ्ते है. इस वजह से पहली डोज तो कई लोगों ने समय रहते ले ली, लेकिन दूसरी डोज या तो मिस हो गई या फिर वे आए ही नहीं. वैसे अगर दुनिया के कुछ दूसरे देशों की बात करें तो इस पहलू पर उनका प्रदर्शन थोड़ा बेहतर दिखाई पड़ता है. पड़ोसी देश चीन में 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जा चुकी हैं. ये पूरी दुनिया में सर्वधिक है. कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा अमेरिका में 55 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली हैं, वहीं 64% पहली डोज ले चुके हैं.
कोरोना से लड़ने के मामले में जापान को भी एक सफल मॉडल के तौर पर देखा जा रहा है. वहां पर कम समय में 70 प्रतिशत के करीब लोगों को वैक्सीन की दोनों खुराक मिल चुकी हैं. वहां पर मामले भी लगातार कम होते दिख रहे हैं. इन्हीं सक्सेस स्टोरी के बीच भारत का दो डोज के बीच ये अंतर चिंता बढ़ाता है.
10 हजार लोगों ने दूसरी डोज नहीं ली
खुद कोविड टास्क फोर्स के चीफ वीके पॉल बताते हैं कि भारत में 10 हजार लोग ऐसे हैं जिन्होंने वैक्सीन की पहली डोज तो लगवा ली, लेकिन दूसरी डोज लगवाने ही नहीं आए. उन्होंने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि कोरोना वैक्सीन की एक डोज से सिर्फ आंशिक रूप से इम्युनिटी मिलती है. जबकि दोनों डोज लेने से अच्छी इम्युनिटी मिलती है. पहली-दूसरी डोज के बीच ये भारी अंतर शुरुआत से ही देखने को मिला है. एक्सपर्ट मानते हैं कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी लोगों के मन में ऐसी धारणाएं बन चुकी हैं जिस वजह से ये अंतर काफी ज्यादा देखने को मिल रहा है.
इस बेरुखी का कारण क्या?
ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में Epidemiologist Brian Wahl ने बताया है कि लोगों में वैक्सीन लगाने को लेकर अब उत्साह कुछ कम हुआ है. वहीं पहले जिस टीकाकरण को लोग अपनी प्राथमिकता में सबसे ऊपर रख रहे थे, अब ऐसा नहीं रह गया है. इसकी एक वजह ये है कि जब से कोरोना के मामले देश में फिर कम होने शुरू हो गए हैं, लोगों का डर कम हुआ है. वहीं क्योंकि त्योहार आने को हैं, ऐसे में कई लोग इस समय वैक्सीन लेने से बच रहे हैं. ( वैक्सीन लेने के बाद कुछ दिन के लिए बुखार-थकावट जैसी शिकायत रहती हैं)
इस भारी अंतर को कुछ राज्यों के टीकाकरण प्रदर्शन से भी समझा जा सकता है. उदाहरण के लिए देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश. काफी तेज गति से टीकाकरण किया गया. अभी तक यूपी में 62.7% लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है. लेकिन बात जब दोनों डोज की आती है तो यूपी में ये आंकड़ा अभी के लिए सिर्फ 18.5% तक ही पहुंच सका है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की बात कर लीजिए. पहली डोज के मामले में पूरी एडल्ड पॉपुलेशन को कोरोना का टीका लग चुका है. मतलब 100 प्रतिशत का आंकड़ा छू लिया गया है. लेकिन यहां भी जब दोनों डोज की बात आती है तो आंकड़ा 57% पर आकर रुक जाता है. कोरोना का बड़ा केंद्र रखा कर्नाटक पर भी एक नजर डालिए. पहली डोज के मामले में राज्य ने 87.3% आबादी को कोरोना टीका लगा दिया है, लेकिन दोनों डोज के मामले में ये आंकड़ा 43.5% दिखाई पड़ता है.
यूपी मॉडल सफल लेकिन अक्टूबर में क्या हुआ?
वहीं अक्टूबर के महीने में भारत ने 100 करोड़ का आंकड़ा जरूर छुआ है, लेकिन कई राज्यों में पहले की तुलना में टीकाकरण की रफ्तार सुस्त पड़ चुकी है. सबसे बड़ा राज्य यूपी ही ले लीजिए जहां पर 12.07 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना टीका लगाया जा चुका है. लेकिन बात जब सिर्फ अक्टूबर महीने की आती है तो राज्य में 19 दिनों के भीतर 1.37 करोड़ टीके ही लग पाए हैं. इसकी तुलना अगर सितंबर महीने से करें जब पीएम मोदी का जन्मदिन भी मनाया गया था, तब राज्य में 3.44 करोड़ वैक्सीन लगा दी गई थीं. मतलब सितंबर से अक्टूबर के बीच ही लोगों के बीच बेरुखी का दौर साफ देखने को मिल गया है.
राज्य जिन्हें बढ़ानी पड़ेगी स्पीड
100 करोड़ टीकाकरण के बीच ये समझना भी जरूरी हो जाता है कि सभी राज्यों ने समान रूप से शानदार प्रदर्शन नहीं किया है. ये तो कुछ राज्यों का प्रदर्शन इतना अच्छा रहा कि देश ने अक्टूबर में 100 करोड़ का आंकड़ा छू लिया. पश्चिम बंगाल, झारखंड, मेघालय, मणिपुर और नागालैंड ऐसे राज्य रहे हैं जहां पर टीकाकरण की रफ्तार लगातार सुस्त दिखाई पड़ी है. स्थिति ऐसी है कि इन राज्यों ने अभी तक पहली डोज के मामले में भी 60 प्रतिशत का आंकड़ा नहीं छुआ है.
पश्चिम बंगाल को लेकर कहा गया है कि दुर्गा पूजा की वजह से टीकाकरण अभियान धीमा पड़ गया था, लेकिन अब फिर स्पीड बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. इसका परिणाम दिखने लगा है. पिछले 24 घंटे में बंगाल में 2,96,993 डोज लगी हैं जो पूरे देश में सर्वधिक हैं. लेकिन दूसरे राज्यों के स्तर पर पहुंचने के लिए बंगाल को लगातार इतने ही लोगों को रोज टीका लगाना होगा.
झारखंड में भी कोरोना टीकाकरण की स्थिति अच्छी नहीं है. लक्ष्य जरूर प्रतिदिन 3 लाख लोगों को टीका लगाने का रखा गया है, लेकिन राज्य उसके करीब आता नहीं दिख रहा. बात अगर बीते कुछ दिनों की करें तो झारखंड में 13 अक्टूबर को 18,674 लोगों को टीका लगाया गया था, 14 अक्टूबर को 6,385 और फिर 16 अक्टूबर को 41,073 टीके लगाए गए. लेकिन ये आंकड़े लक्ष्य से काफी ज्यादा पीछे हैं जिस वजह से राज्य के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी हुई हैं.
वैक्सीन में फर्जीवाड़े ने बढ़ाई मुसीबत
अब जब केंद्र सरकार द्वारा 100 करोड़ का महत्वकांक्षी टारगेट रख दिया गया, ऐसे में अधिकारियों पर दवाब काफी ज्यादा रहा. इस दवाब के कारण कई राज्यों में कई ऐसे मामले सामने आ गए जहां पर उन लोगों को भी वैक्सीन सर्टिफिकेट दे दिया गया जिन्होंने या तो वैक्सीन लगवाई ही नहीं या फिर जिनकी कई महीने पहले मौत हो चुकी थी. ये सब हुआ, कई राज्यों में हुआ लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस सफाई नहीं दी गई. अकेले गुजरात में कई ऐसे मामले देखने को मिल गए जहां पर मृत लोगों को वैक्सीन लगा दी गई और बाद में पीड़ित परिवार ने शिकायत दर्ज करवाई.
गुजरात के हरदास कंरगिया की मौत साल 2018 में हो गई थी. उनके परिजनों के पास इसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी मौजूद है. लेकिन फिर 2021 में परिवार को एक सर्टिफिकेट मिलता है, लिखा होता है कि हरदास कंरगिया को कोरोना की वैक्सीन लग गई है. परिवार को ये मैसेज 3 मई 2021 को आया था. एक और ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला दाहोद में भी सामने आया जहां पर एक शख्स की मृत्य तो 10 साल पहले हो गई, लेकिन सरकारी आंकड़ों में उन्हें कोरोना का टीका लगा दिया गया.
मध्य प्रदेश की बात करते हैं जहां पर कई दिन ऐसे रहे जब टीकाकरण के रिकॉर्ड बनाए गए. प्रधानमंत्री के जन्मिदन के दिन भी रिकॉड वैक्सीनेशन की गई. लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आईं जिन्होंने राज्य सरकार पर ही सवाल खड़े कर दिए. जून के महीने में एमपी ने कई दिन लगातार तेज टीकाकरण करके दिखाया था. लेकिन तब जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे मामले भी सामने आए थे जहां पर आधार 661 लोगों के थे, लेकिन वैक्सीन 1459 लोगों को लगा दी गई. इसमें भी कई आधार नंबर ऐसे पाए गए जिनके नाम पर कई बार वैक्सीन लगा दी गई. ऐसे में टीकाकरण के आंकड़े जरूर ज्यादा दिखाई पड़े, लेकिन सच्चाई इसके उलट रही.
अब ये तो सरकारी एरर की बात हुई, लेकिन इस टीकाकरण अभियान के दौरान कई ऐसे अपराध भी हो लिए जिस वजह से लोगों के मन में डर पैदा हो गया. मुंबई और कोलकाता में बड़े स्तर पर फर्जी वैक्सीन लगा दी गई थी, जिस वजह से काफी हंगामा हुआ. कार्रवाई दोनों केस में हुई, आरोपी गिरफ्तार भी हुए, लेकिन लोगों के मन में सवाल जरूर घर कर चुके थे. अब जितने भी ये आंकड़े दिखाई पड़ रहे हैं फिर चाहे नकली सर्टिफिकेट के हों या फिर मृत को लगाई गई वैक्सीन के, इन्हें रिपोर्ट किया गया है जिस वजह से ये सामने हैं. लेकिन कई ऐसे भी हैं जो रिपोर्ट नहीं हुए हैं, मतलब आंकड़े और ज्यादा हो सकते हैं.
वैक्सीन पर्याप्त, सिरिंज की चुनौती
टीकाकरण अभियान की शुरुआत में वैक्सीन संकट जबरदस्त था, कई राज्यों के पास वैक्सीन स्टॉक खत्म हो रहा था. अब उस स्थिति से तो पार पा लिया गया है, लेकिन देश में 'सिरिंज' की कमी पर बहस छिड़ गई. हाल ही में केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए सिरिंज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन कई एक्सपर्ट मानते हैं कि केंद्र ने ये फैसला काफी देर से लिया है. द वायर को दिए इंटरव्यू में Hindustan Syringes & Medical Devices के चेयरमैन राजीव नाथ ने बताया है कि भारत सरकार ने एडवांस में पर्याप्त सिरिंज का ऑडर नहीं दिया. उनके मुताबिक भारत सरकार ने 2022 के लिए उनकी कंपनी से मात्र 75 मिलियन सिरिंज का ऑडर बुक किया है, जो जरूरत के लिहाज से काफी कम है. वे मानते हैं कि वर्तमान में भारत के अंदर वैक्सीन निर्माण ज्यादा हो रहा है, लेकिन उसके मुकाबले सिरिंज का प्रोडक्शन काफी कम है. ये हाल तब है जब बच्चों का टीकाकरण अभी शुरू भी नहीं हुआ है.
बच्चों को नहीं लगी वैक्सीन, क्या रणनीति?
सिरिंज बहस के बीच एक सवाल सरकार के सामने बच्चों के टीकाकरण को लेकर भी है. कई बड़े देशों में 2 से 18 साल के बच्चों को कोरोना का टीका लग चुका है, लेकिन इस मामले में भारत अभी पीछे है. कहा जा रहा है कि जब तक पर्याप्त रिसर्च नहीं कर ली जाती, बच्चों को वैक्सीन नहीं दे सकते. कोविड टास्क फोर्स के चीफ वीके पॉल बताते हैं कि Zydus Cadila की वैक्सीन को टीकाकरण भी शामिल किया जा रहा है, ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है. जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा. वहीं खबर ऐसी भी है कि सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने 2 से 18 साल के बच्चों के लिए कोवैक्सीन की लगाने की सिफारिश की है.
अब इसे मंजूरी मिल जाती है तो भारत को जल्द ही वैक्सीन प्रोडक्शन को और ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा. भारत में 18 साल से कम उम्र के 44 करोड़ बच्चे हैं, ऐसे में वैक्सीन की 84 से 88 करोड़ डोज की जरूरत पड़ेगी. कहा तो ये भी जा रहा है कि केंद्र बच्चों को भी चरणबद्ध तरीके से टीका लगाने वाला है. पहले उन बच्चों को प्राथमिकता दी जाएगी जिन्हें कोई बीमारी है, उसके बाद दूसरे बच्चों को टीका लगेगा.
अब यही है भारत की वैक्सीन कहानी जहां पर 100 करोड़ डोज के बाद खुशी का माहौल है, लेकिन कुछ तथ्य और आने वाली चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अगर इन चुनौतियों पर पार पा लिया गया तो भारत का टीकाकरण अभियान भी सक्सेस स्टोरी बन जाएगा.