Advertisement

चुनाव जीतने के लिए किस हद तक जाएंगे जस्टिन ट्रूडो? 'सिख तुष्टिकरण' की आड़ में भारत से बिगाड़ लिए रिश्ते

भारत और कनाडा के संबंध इस समय तनावपूर्ण हैं, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तान समर्थक सिख अलगाववादियों के मामले में भारत पर आरोप लगाने से स्थिति और गंभीर हो गई है. ट्रूडो की सिख तुष्टिकरण नीतियों और चुनावी राजनीति ने इस विवाद को बढ़ाया है, जिससे दोनों देशों के आर्थिक और शैक्षणिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

जस्टिन ट्रूडो जस्टिन ट्रूडो
आजतक ब्यूरो
  • नई दिल्ली,
  • 15 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:35 PM IST

भारत और कनाडा के बीच रिश्ते सबसे बुरे दौर में है. खालिस्तान समर्थक सिख अलगाववादियों की हत्या के लिए कनाडा भारत को जिम्मेदार मानता है, लेकिन इसके पीछे पीएम जस्टिन ट्रूडो के बड़े राजनीतिक लाभ छिपे हैं. भारत से कनाडाई हाई कमिश्नर और डिप्लोमेट्स के निष्कासन के बाद स्थानीय पुलिस ने लॉरेंस बिश्नोई गैंग को भी लपेट लिया और ये दावा कर दिया कि (कथित) इंडियन एजेंट उसके गैंग के साथ मिलकर वारदात को अंजाम दे रहे हैं. इससे ट्रूडो की 'सिख तुष्टिकरण' साफतौर पर उजागर होता है. 

Advertisement

कनाडा की पुलिस ने एक नई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत पर तीन बड़े और गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें-

पहला- (कथित) इंडियन एजेंट गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई की मदद से कनाडा के नागरिकों को निशाना बना रहे हैं और बिश्नोई का कनेक्शन भारत की खुफिया एजेंसी RAW से है.

दूसरा- कनाडा में टारगेट किलिंग के तहत खालिस्तान समर्थित लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और आरोप है कि भारत के जो युवा कनाडा में नौकरी करने के लिए जाते हैं, उनपर भारत के राजनयिक खालिस्तानियों की जासूसी करने का दबाव बनाते हैं.

तीसरा- गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई भारत के खुफिया एजेंट्स के संपर्क में है और भारत सरकार और लॉरेंस बिश्नोई दोनों मिलकर खालिस्तानियों की हत्या करा रहे हैं.

यह भी पढ़ें: क्या बेतुके आरोपों को लेकर कनाडा पर मानहानि का केस कर सकता है भारत, क्या हैं इंटरनेशनल कोर्ट के कायदे?

Advertisement

इस बयान से दो बातें पता चलती हैं, जिनमें पहली बात ये है कि कनाडा की सरकार ने अपने देश में उन खालिस्तानियों को शरण दी हुई है, जो भारत को तोड़ने की साजिश रचते हैं, और दूसरा- इससे इन पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों के बारे में भी पता चलता है.

आतंकवाद पर पश्चिमी देशों का रुख

वर्ष 2011 में जब अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन, वर्ष 2020 में ईरान के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी और वर्ष 2022 में अलकायदा के चीफ ''अयमान अल-जवाहिरी'' की हत्या की थी, तब इसे अमेरिका ने आतंकवादियों के खिलाफ अपनी एक बड़ी जीत बताया था और खुद कनाडा ने भी इस कार्रवाई के लिए अमेरिका का समर्थन किया था, लेकिन जब भारत किसी को आतंकवादी घोषित करता है तो ये देश उसे अपना नागरिक बताने लगते हैं और ये दूसरे देशों द्वारा घोषित किए गए आतंकवादियों को तब तक आतंकवादी नहीं मानते, जब तक कि उनका इसमें कोई हित नहीं होता.

आज कनाडा की सरकार, सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस जिस तरह से भारत को तोड़ने की बात करने वाले खालिस्तानी आतंकवादियों को अपना नागरिक बता कर उनका समर्थन कर रही हैं, क्या कोई दूसरा देश ऐसा कर सकता है? उदाहरण के लिए, लेबनान, यमन, इराक और सीरिया जैसे देशों की सरकारें ऐसा करती हैं तो अमेरिका और कनाडा जैसे देश उन पर प्रतिबंध लगा देते हैं, लेकिन आज हमारा अमेरिका से सवाल है कि क्या वो कनाडा के खिलाफ भी यही कार्रवाई करेगा?

Advertisement

आज इस मुद्दे पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने FIVE EYES देशों के राष्ट्र प्रमुखों और प्रतिनिधियों से बात की है और ऐसा माना जा रहा है कि इन देशों के नेता इस मामले में कनाडा की सरकार का समर्थन कर सकते है.

FIVE EYES पांच देशों का वो संगठन है, जिसमें कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की खुफिया एजेंसियां दुनिया के अलग अलग देशों, मुद्दों और दूसरी खुफिया जानकारियों की इकट्ठा करती हैं और एक दूसरे के साथ सभी तरह की सुरक्षा जानकारियां को साझा भी करती हैं. माना जा रहा है कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भी इन्हीं FIVE EYES देशों ने भारत को लेकर जानकारियां जुटाने में कनाडा की सरकार की मदद की थी. ये बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि इसी महीने की 13 तारीख को कनाडा ने भारत को एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें उसने भारत के राजनयिकों की भूमिका को संदिग्ध बताया गया था.

यह भी पढ़ें: भारत और कनाडा के बीच बिश्नोई गैंग पर हुई चर्चा, सीक्रेट मीटिंग में NSA डोभाल भी हुए थे शामिल: रिपोर्ट

अमेरिका के मशहूर अखबार वाशिंगटन पोस्ट का दावा है कि इस चिट्ठी में जिन आरोपों को जिक्र था, उनके बारे में जानकारी इकट्ठा करने में FIVE EYES देशों ने कनाडा की मदद की थी और शायद यही कारण है कि जब कनाडा ने भारत को इस मामले में एक चिट्ठी भेजकर उस पर कई गंभीर आरोप लगाए, तब भारत सरकार ने इन आरोपों का ना सिर्फ खंडन किया, बल्कि भारत ने कनाडा के राजदूत को तलब करके इन आरोपों पर नाराजगी भी जताई थी. बाद में ये विवाद इतना बढ़ गया कि अब भारत और कनाडा ने अपने कई डिप्लोमेट्स को वापस अपने देश बुला लिया है और दोनों देशों के रिश्तों में इस समय तनाव चरम पर हैं.

Advertisement

जस्टिन ट्रूडो की सत्ता खतरे में

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सिर्फ चुनाव जीतने के लिए भारत विरोधी खालिस्तानियों का बचाव कर रहे हैं? कनाडा में अगले साल अक्टूबर 2025 में संसदीय चुनाव होने हैं और ऐसा माना जा रहा है कि इन चुनावों में जस्टिन ट्रूडो की पार्टी हार सकती है. महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर जस्टिन ट्रूडो की सरकार की काफी आलोचना हो रही है और उनकी अप्रूवल रेटिंग्स सिर्फ 33 पर्सेंट रह गई है, जो कुछ साल पहले 63 से 70 पर्सेंट हुआ करती थी, और पिछले चुनावों में भी जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और कनाडा के जिस हाउस ऑफ कॉमंस में कुल 338 सीटें हैं, उसमें बहुमत साबित करने के लिए उन्हें जगमीत सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन करना पड़ा था.

जस्टिन ट्रूडो का सिख तुष्टिकरण

ये वही जगमीत सिंह हैं, जो खालिस्तान के मुद्दे पर जनमत संग्रह करा चुके हैं और पंजाब को भारत से अलग करके उसे खालिस्तान नाम का देश बनाने की मांग करते हैं. पिछले महीने जगमीत सिंह ने भी जस्टिन ट्रूडो की पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद अब वो अल्पमत की सरकार चला रहे हैं और जस्टिन ट्रूडो को डर है कि कनाडा में जो 2 पर्सेंट सिख वोटर्स हैं, वो चुनावों में उनकी पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं, और शायद यही कारण है कि वो खालिस्तान के मुद्दे पर राजनीति करके सिख तुष्टिकरण की कोशिश कर रहे हैं और कनाडा के 2 पर्सेंट सिखों को खुश करके वो उनका वोट हासिल करना चाहते हैं.

Advertisement

पहली बार ऐसा हो रहा है, जब भारत का किसी ऐसे देश के साथ इतना बड़ा टकराव हुआ है, जिससे उसकी सीमाएं नहीं लगती. इस टकराव का असर भारत के उन लाखों युवाओं पर पड़ सकता है, जो इस समय कनाडा में नौकरी और पढ़ाई कर रहे हैं या जो कनाडा में नौकरी और पढ़ाई करने का सपना देखते हैं.

कनाडा में भारतीय स्टूडेंट्स

वर्ष 2022 में कनाडा के 2 लाख 89 हजार लोग भारत आए थे, जबकि इसी दौरान भारत से कनाडा जाने वाले लोगों की संख्या लगभग 8 लाख थी और इनमें भी पर्यटकों के साथ बड़ी संख्या में युवा छात्र थे, जो इस टकराव से अब सबसे ज्यादा चिंता में हैं. भारत से हर साल लगभग 2 लाख छात्र कनाडा की यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई करने के लिए जाते हैं, और अगर कनाडा के किसी भी फैसले से इन भारतीय छात्रों की पढ़ाई पर असर होता है तो, इससे ना सिर्फ भारतीय छात्रों की पढ़ाई का नुकसान होगा बल्कि इससे कनाडा की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हो सकता है.

यह भी पढ़ें: भारत से ये सामान मंगाता है कनाडा... तनातनी से दांव पर 70000 करोड़ का कारोबार!

कनाडा में दूसरे देशों से जो छात्र आकर पढ़ रहे हैं, उनमें 40 पर्सेंट भारतीय हैं और ये भारतीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था में ढाई लाख करोड़ रुपये का योगदान देते हैं, जिससे कनाडा की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. इसलिए कनाडा को ये भी सोचना होगा कि, अगर ये छात्र भारत वापस लौट गए तो उसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक चरमरा जाएगी. दूसरा- इसका असर दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर भी पड़ सकता है और आपकी रसोई में जो दालें रखी हैं, वो दालें काफी महंगी हो सकती हैं.

Advertisement

भारत-कनाडा के बीच व्यापार

कनाडा पूरी दुनिया में भारत को मसूर दाल निर्यात करने वाले सबसे बड़ा देश है और वर्ष 2022-23 में कनाडा ने भारत को 4 लाख 85 हज़ार टन मसूर दाल निर्यात की थी, और इस समय भारत में एक किलोग्राम मसूर दाल की कीमत लगभग 150 से 180 रुपये है, लेकिन अगर कनाडा के साथ भारत का व्यापार प्रभावित होता है तो मसूर दाल की ये कीमतें भविष्य में बढ़ सकती हैं. इनके अलावा कनाडा भारत को एमओपी फर्टिलाइजर यानी खाद निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है.

ये खाद, फल देने वाले पौधों और कई तरह की सब्जियों की खेती में इस्तेमाल होती है, और इसलिए अगर इस खाद के निर्यात पर इस टकराव का असर पड़ा तो कुछ सब्जियों और फलों की कीमतों पर भी इसका असर पड़ सकता है। और भारत में छपने वाले अखबार भी इससे प्रभावित हो सकते हैं. कनाडा भारत को हर साल ढाई लाख टन न्यूजप्रिंट यानी अखबार के लिए इस्तेमाल होने वाला कागज निर्यात करता है.

हालांकि, अगर भारत की बात करें तो हमारा देश कनाडा को हर साल लगभग साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपये की कई ज़रूरी दवाइयां और मेडिकल इक्वीपमेंट्स नियार्त करता है, और कनाडा का हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर भारत के इस निर्यात पर काफी निर्भर है. इनके अलावा कॉटन फैब्रिक्स यानी कपड़ों के लिए भी कनाडा की सरकार भारत पर काफी निर्भर करती है, और हर साल 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के फल और सब्जियां भी कनाडा को निर्यात होती हैं और इसलिए भारत के लिए कनाडा जरूरी है लेकिन कनाडा के पास भारत का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. भारत के पर्यटक, भारत के छात्र और भारत की दवाइयां, अगर इन पर कोई भी असर पड़ा तो इससे कनाडा की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर प्रभावित होगी, और ये ऐसे समय में होगा, जब कनाडा की विकास दर पहले ही काफी कमजोर है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: हिंदुओं पर खतरा, भारतीय छात्रों का भविष्य भी अधर में... भारत-कनाडा तनाव का क्या हो सकता है असर?

कनाडा की इकोनॉमी

कनाडा दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इस साल दूसरी तिमाही में कनाडा की GDP विकास दर 2.1 पर्सेंट रही है, जबकि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी GDP विकास दर 6.7 पर्सेंट रही है. भारत इस समय दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है और इस मामले में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के बड़े-बड़े देश भी हमारे पास नहीं है, और Five Eyes देशों में एक भी देश ऐसा नहीं है, जिसकी GDP विकास दर भारत के आसपास भी हो.
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement