
भारत और चीन के बीच जारी तनाव के दौर में सीक्रेट अर्धसैनिक बल स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) के जवानों के त्याग और उनके बलिदान को स्वीकार्यता और मान्यता तब मिली जब तिब्बती कमांडो न्यिमा तेनजिन ने 29-30 अगस्त की रात्रि चीनी सेना के खिलाफ एक ऑपरेशन के दौरान माइन ब्लास्ट की वजह से देश के लिए अपना बलिदान दे दिया.
इस बीच सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने न्यिमा तेनजिन के अंतिम संस्कार में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी का प्रतिनिधित्व किया. जबकि कई लोगों ने इसे भारत की तिब्बत नीति में बड़ा बदलाव माना. हालांकि बीजेपी नेता ने अंतिम संस्कार के बारे में ट्वीट किया और बाद में अपने ट्वीट को डिलीट भी कर दिया.
RAW के पूर्व अधिकारी जयदेव रानाडे ने कहा कि एसएफएफ कमांडो के अंतिम संस्कार में बीजेपी नेता राम माधव की उपस्थिति, एसएसएफ और उसके अधिकारी के योगदान के लिए बीजेपी की ओर से सम्मान का प्रतीक है, वास्तव में चुशूल में चीन के साथ लड़ाई में सबसे अधिक योगदान दिया है.
एक सीक्रेट यूनिट
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) एक सीक्रेट यूनिट है जो अनुसंधान और विश्लेषण विंग (RAW) के तहत काम करती है. यह 1962 में बनाया गया था और मुख्य रूप से निर्वासन में रह रहे तिब्बती समुदाय के लोगों को भर्ती किया गया था. हालांकि इसमें कुछ भारतीय नागरिक भी शामिल हैं.
राम माधव ने अपने ट्वीट में लिखा था, 'SFF कमांडर न्यिमा तेनजिन के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ, एक तिब्बती, जिसने लद्दाख में हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. श्रद्धांजलि के रूप में उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करता हूं. बता दें कि ऐसे बहादुर सैनिकों की कुर्बानियां ही भारत-तिब्बत सीमा पर शांति लाती हैं. यही सभी शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.'
चीन के लिए तिब्बत रेड लाइन जोन
तिब्बत चीनियों के लिए रेड लाइन क्षेत्र रहा है और इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए, नई दिल्ली ने हाल ही में दलाई लामा को सुर्खियों से दूर रखने की कोशिश की. 2018 में, मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रीय राजधानी में ‘निर्वासन में तिब्बती सरकार’ के 60 वर्षों को चिह्नित करने के लिए जो योजना बनाई गई उसे धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया था.
हालांकि, विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. वह कहते हैं कि दलाई लामा सार्वजनिक चर्चा में नहीं आना चाहते. भारत का रुख उल्लेखनीय रूप से सुसंगत रहा है.
भारत का रुख कमोबेश दलाई लामा की मेजबानी को लेकर ही रहा है, लेकिन बीजिंग के साथ संबंधों के आधार पर आध्यात्मिक नेताओं और तिब्बती सरकार के साथ व्यवहार और जुड़ाव का स्तर बदल गया है.
इंडिया टुडे के साथ बातचीत करते हुए पुणे से चीन में भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावाले ने कहा कि दलाई लामा भारत में भी एक प्रतिष्ठित धार्मिक और आध्यात्मिक नेता हैं. वह दशकों से यहां रह रहे हैं. इसलिए उनके हजारों अनुयायी हैं जो तिब्बत छोड़कर भाग गए हैं. अब जब चीन ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है कि इस साल की गर्मियों में लद्दाख में अपनी सैन्य आक्रामकता के माध्यम से वह भारत के साथ किस तरह के संबंध की इच्छा रखता है, तो भारत को चीनी संवेदनशीलता के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
भारत की तिब्बत शरणार्थियों द्वारा भारतीय सीमा बलों की एक इकाई के रूप में कार्यरत होने की बात सामने आने से भारत-चीन संबंधों पर गहरा असर पड़ सकता है. क्या तिब्बत और ताइवान की ओर भारत की नीतियों में बदलाव हुआ है.
विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव पूर्व अनिल वाधवा कहते हैं कि यह नहीं कहेंगे कि भारत की नीति ताइवान के प्रति है या तिब्बत की ओर है. इस समय भारत का घोषित उद्देश्य यह है कि दोनों पक्षों, भारत और चीन अपनी चर्चा जारी रखनी चाहिए, जिसमें कूटनीतिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से डिसएंगेजमेंट और शांति की पूर्ण बहाली सुनिश्चित करना शामिल है.
चीन की तीखी प्रतिक्रिया
2 सितंबर को, जब एक तिब्बती सैनिक के मारे जाने की खबर सामने आई, तो चीनी विदेश मंत्रालय ने इस खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे निर्वासित "तिब्बतियों" के निर्वासन में भारतीय फोर्स का हिस्सा थे.
चीन की हुआ चुनयिंग ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों में इन "तिब्बतियों के निर्वासन में" के बारे में आपने जो कहा है, उससे मैं अवगत नहीं हूं. आप इसके लिए भारतीय पक्ष से पूछ सकते हैं. चीन की स्थिति बहुत स्पष्ट है. उन्होंने कहा कि हम "तिब्बत स्वतंत्रता" की अलगाववादी गतिविधियों के लिए किसी भी रूप में सुविधा प्रदान करने वाले देश का दृढ़ता से विरोध करते हैं.
इस तरह के सीक्रेट फोर्स पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, "मैं यह भी सोच रही हूं कि 'निर्वासित तिब्बतियों' और भारतीय सीमा सैनिकों के बीच क्या संबंध है. मुझे उम्मीद है कि आप कुछ गहराई से जांच कर सकते हैं.
अभी जब भारत और चीन के बीच लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में सीमा पर तनाव बना हुआ है, सत्तारूढ़ दल के एक वरिष्ठ नेता की भागीदारी इस बात का एक बड़ा संकेत है कि भारत वर्तमान संदर्भ में चीन के साथ अपने संबंधों को किस तरह से देखता है.
RAW के पूर्व अधिकारी जयदेव रानाडे ने कहा कि यह कहा जा सकता है कि चूंकि यह पहला अवसर है जिसमें भारतीय सेना और भारत सरकार ने एसएसएफ की उपस्थिति को स्वीकार किया है और यह तथ्य कि तिब्बती सेना भारतीय सेना के साथ लड़ रही है, चीन के लिए एक सूक्ष्म संदेश है कि हम तिब्बत में रुचि रखना जारी रखेंगे. हम तिब्बतियों की देखभाल करेंगे.
लेकिन बीजेपी नेता राम माधव की ओर से ट्वीट को डिलीट किए जाने से यह पता चलता है कि मामला अभी भी संवेदनशील बना हुआ है.