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लद्दाख: चीन ने छोड़ा अड़ियल रवैया, 2 साल बाद गोगरा हॉटस्प्रिंग से हटने को तैयार, इंडियन आर्मी भी पीछे हटेगी

भारत और चीन के बीच में पिछले दो साल से तनाव देखने को मिल रहा है. पूर्वी लद्दाख वाले इलाके में तो स्थिति ज्यादा चिंताजनक रही है. अब उस स्थिति में सुधार लाने के लिए दोनों भारतीय और चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में पीछे हटना शुरू कर दिया है.

2 साल बाद गोगरा हॉटस्प्रिंग से हटने को तैयार भारत और चीन की सेना 2 साल बाद गोगरा हॉटस्प्रिंग से हटने को तैयार भारत और चीन की सेना
अभिषेक भल्ला
  • नई दिल्ली,
  • 08 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

भारत और चीन के बीच में पिछले दो साल से तनाव देखने को मिल रहा है. पूर्वी लद्दाख वाले इलाके में तो स्थिति ज्यादा चिंताजनक रही है. अब उस स्थिति में सुधार लाने के लिए दोनों भारतीय और चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में पीछे हटना शुरू कर दिया है.

जारी बयान में कहा गया है कि आठ सितंबर को भारत और चीन के बीच में 16वें दौर की बातचीत हुई थी. फैसला लिया गया कि गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र से सेना पीछे हटेगी. इससे बॉर्डर पर शांति बनी रहेगी. अब ये फैसला भी तब लिया गया है जब अगले हफ्ते Shanghai Cooperation Organisation (SCO) की अहम बैठक होने वाली है. उस बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी भी जाएंगे और चीन के राष्ट्रपति भी मौजूद रहने वाले हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि भारत और चीन की वहां पर द्विपक्षीय बैठक भी हो सकती है.

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अब उस बैठक से पहले दोनों देशों के बीच में रिश्ते कुछ ठीक रहें, ज्यादा तनाव ना रहें, इसी वजह से दोनों ही सेनाओं ने पीछे हटने का फैसला लिया है. इससे पहले भी कुछ दूसरे इलाकों में ऐसे ही प्रक्रिया देखी गई है, लेकिन चीन ने हर बार बॉर्डर क्षेत्र में सड़क और दूसरे निर्माण के जरिए समझौते का उल्लंघन किया है.

वैसे भारत को चीन की नीयत पर भरोसा नहीं है, इसी वजह से सेना ने एक नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. इस रणनीति के तहत सैनिकों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है और जवानों का 'पुनर्संतुलन' स्थापित करने पर भी जोर दिया जा रहा है. 

एक सैन्य अधिकारी ने बताया है कि इस समय बॉर्डर एरिया में सड़क निर्माण, ब्रिज बनाने पर ज्यादा फोकस दिया जा रहा है. इसके अलावा आरएएलपी क्षेत्र (शेष अरुणाचल प्रदेश) में सैनिकों को तुरंत लामबंद करने के लिए भी जरूरी सैन्य ढांचे को विकसित किया जा रहा है. बड़ी बात ये है कि अब जिम्मेदारियां बांट दी गई हैं. एक तरफ थल सेना पूरी तरह उत्तरी सीमा पर तैनात होकर चीन का मुकाबला करेगी तो वहीं असम राइफल्स उग्रवाद विरोधी सभी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाएगी. अभी तक इन अभियानों में थल सेना ही ज्यादा एक्टिव दिखाई देती थी. जानकारी ये भी मिली है कि ऊपरी दिबांग घाटी में सड़क निर्माण के साथ-साथ हेलीपैड और दूसरे बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं.

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