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डोकलाम, गलवान और अब तवांग... 5 साल में 3 बार चीन को बैकफुट पर लाई भारतीय सेना

चीन और भारतीय सेना के जवानों के बीच अब अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में यांगत्से के पास झड़प हुई है. भारतीय सेना ने बयान जारी कर बताया कि दोनों सेनाओं के बीच 9 दिसंबर को ये झड़प हुई थी. इससे पहले 2017 में डोकलाम और 2020 में गलवान घाटी में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं.

अरुणाचल में तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर को भारत और चीन की सेना में झड़प हुई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर) अरुणाचल में तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर को भारत और चीन की सेना में झड़प हुई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST

सीमा पर एक बार फिर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई है. ये झड़प अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के पास तवांग सेक्टर के पास हुई है. भारतीय सेना ने बयान जारी कर बताया कि दोनों देशों के सैनिकों के बीच ये झड़प 9 दिसंबर को हुई थी, जिसमें दोनों ओर के कुछ जवानों को कुछ मामूली चोटें आईं हैं.

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जून 2020 में गलवान घाटी में झड़प के लगभग 30 महीने बाद फिर दोनों देशों की सैनिकों में संघर्ष हुआ है. भारतीय सेना ने बताया कि 9 दिसंबर को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों ने एलएसी पर तवांग सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश की, जिसका भारतीय सैनिकों ने मजबूती से जवाब दिया. इस संघर्ष में दोनों सेनाओं के कुछ जवानों को मामूली चोटें आई हैं. 

भारतीय सेना के मुातिबक, इस घटना के तुरंत बाद कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग हुई, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गईं.

इस झड़प में किस देश के कितने सैनिक घायल हुए हैं? इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं है. हालांकि, न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि झड़प में भारतीय सेना के कम से कम 6 जवान जख्मी हुए हैं, जिनका गुवाहाटी में इलाज चल रहा है.

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भारतीय सेना के साहस के आगे टिक न सके चीनी

भारतीय सेना के बयान के मुताबिक, भारत और चीन के सैनिकों में ये झड़प तवांग सेक्टर के यांगत्से में हुई. बताया जा रहा है कि चीन के सैनिक घुसपैठ के इरादे से आए थे. 

न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि चीन के सैनिकों के पास नुकीले तार लगी लाठियां भी थीं. चीन के सैनिक तवांग सेक्टर में भारतीय सेना की एक चौकी को उखाड़ना चाहते थे, जिसका भारतीय सेना ने मजबूती से जवाब दिया और उन्हें वापस पीछे धकेल दिया. 

गलवान और डोकलाम में भी चीन ने टेक दिए थे घुटने

2017 | डोकलाम

वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है. ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक हैं. 

डोकलाम एक पहाड़ी इलाका है, जिस पर भूटान और चीन दोनों ही अपना दावा करते हैं. डोकलाम पर भूटान के दावे का भारत समर्थन करता है. 

जून 2017 में चीनी सैनिकों ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया तो भारतीय सेना ने इसे रोक दिया था. भारत का कहना था कि अगर डोकलाम में सड़क बनती है तो इससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं और अगर भविष्य में संघर्ष की स्थिति बनती है तो चीन इस सड़क का इस्तेमाल सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जे के लिए कर सकता है.

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डोकलाम में सड़क निर्माण को लेकर हुए विवाद के बाद भारत और चीन की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने डटी रही थीं. हालांकि, कोई हिंसा नहीं हुई थी. 

दो महीने तक टकराव जैसी स्थिति होने के बाद चीन ने घुटने टेक दिए और डोकलाम से सैनिकों के पीछे हटाने की बात कही. 

2020 | गलवान

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों में खूनी संघर्ष हुआ. चार दशकों का ये सबसे गंभीर संघर्ष माना गया था. 

गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच पड़ती है. इस घाटी पर चीन अपना दावा करता है. गलवान घाटी में संघर्ष को चीन ने ही बढ़ाया था. अप्रैल 2020 से ही चीन की सेना ने गलवान घाटी के नजदीक अपनी तैनाती बढ़ा दी थी. 

15-16 जून 2020 की रात को ये संघर्ष हिंसक हो गया. इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि, चीन ने आधिकारिक तौर पर अब तक सिर्फ अपने चार जवानों के मारे जाने की बात ही कबूल की है. 

चीन ने गलवान घाटी के संघर्ष के लगभग 6 महीने बाद गलवान घाटी में मारे गए चार सैनिकों को मेडल से नवाजा था. हालांकि, फरवरी 2022 में ऑस्ट्रेलियाई अखबार 'द क्लैक्सन' ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि इस संघर्ष में पीएलए के कम से कम 38 जवानों की मौत हुई थी.

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अरुणाचल में क्या है विवाद?

चीन के साथ सीमा विवाद को समझने से पहले थोड़ा भूगोल समझना जरूरी है. चीन के साथ भारत की 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है. ये सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है.

ईस्टर्न सेक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है, जो 1346 किमी लंबी है. मिडिल सेक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा है, जिसकी लंबाई 545 किमी है. वहीं, वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख आता है, जिसके साथ चीन की 1,597 किमी लंबी सीमा लगती है.

चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर अपना दावा करता है. जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है. इसके अलावा 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी.

अरुणाचल को अपना क्यों मानता है चीन?

1914 में शिमला में एक सम्मेलन हुआ. इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत. इस सम्मेलन में सीमा से जुड़े कुछ अहम फैसले हुए. उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची. इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया. इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था. 

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आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया. चीन ने दावा किया कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ.

चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. उसका कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. उसका कहना है कि तिब्बत उसका हिस्सा रहा है, इसलिए वो खुद से कोई फैसला नहीं ले सकता. 1914 में जब समझौता हुआ था, तब तिब्बत एक आजाद देश हुआ करता था. 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा कर लिया था.

अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर चीन की नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. 1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था. 1962 की जंग में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन युद्धविराम के तहत उसे अपना कब्जा छोड़ना पड़ा था.

 

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