
1947 में भारत की आजादी के बाद भारत ने तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में जब अपनी विदेश नीति गढ़नी शुरू की तो भारत को मिस्र का भरपूर सहयोग मिला. मिस्र 1953 में गणतंत्र बना. इसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते पनपने शुरू हुए. मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर और पीएम जवाहरलाल नेहरू के बीच की केमिस्ट्री गजब की थी.
1950 से 60 के बीच नेहरू और गमाल अब्देल नासिर की दोस्ती अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बना करती थी. दोस्ती का ये दौर हल्के उतार चढ़ाव के बाद आज भी कायम है. भारत के 74वें गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी मुख्य अतिथि हैं. ये पहला मौका है जब मुस्लिम देश मिस्र के कोई राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए.
नेहरू और नासिर की जुगलबंदी की कहानी की चर्चा मिस्र में होती है. मिस्र में राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर की विरासत और विचारधारा पर काम कर रही संस्था नासिर यूथ मूवमेंट ने अब्देल नासिर और नेहरू की मुलाकातों का रोचक जिक्र किया है.
नेहरू-नासिर की पहली मुलाकात और उम्र का फासला
मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर और प्रधानमंत्री नेहरू की पहली मुलाकात 19 फरवरी 1955 को हुई थी. 1918 में जन्में नासिर तब 37 साल के थे और वे मिस्र के राष्ट्रपति थे. जबकि तब नेहरू की उम्र 64 साल की थी और वे भारत के पीएम थे. बता दें कि नासिर ने 1952 में अपने देश में क्रांति की थी और इसके बाद देश की बागडोर संभाली थी.
उम्र में इतने फासले के बावजूद दोनों करीबी थे और एक दूसरे का बेहद सम्मान करते थे. नासिर यूथ मूवमेंट में इन मुलाकातों का विस्तार से ब्यौरा रखा गया है. इसके अनुसार, "दोस्ती का यह बंधन अपनी तीव्रता और गहराई में पहली नजर का प्यार था, और ज्यादातर मामलों की तरह ये बॉन्ड दो पूरी तरह से अलग व्यक्तियों के बीच हुआ था. अब्देल नासिर एक व्यावहारिक व्यक्ति थे, जबकि नेहरू एक विनम्र, छरहरे, और बुद्धिमान शख्स थे."
नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व के कायल थे नासिर
अब्देल नासिर ने अपने से कई साल बड़े नेहरू में एक बौद्धिक व्यक्तित्व ढूंढ लिया था. एक व्यक्ति जो तार्किक रूप से मुद्दों जड़ों, कारणों और प्रभावों के साथ-साथ सबसे उपयुक्त समाधान के माध्यम से समस्याओं का पूरी तरह से देख पाने में सक्षम था. यही खासियत कि यानी नेहरू की तर्कसंगत सोच ही अब्देल नासिर को उनकी ओर आकर्षित करती थी.
जबकि नेहरू युवा नासिर की क्षमता से बहुत प्रभावित थे. आखिर नासिर ने इतनी कम उम्र में अपने देश में एक क्रांति का नेतृत्व किया था. हालांकि नेहरू कभी कभी नासिर को धीरे चलने की सलाह देते थे.
1955 में जब नेहरू जब मिस्र आए तो उनकी यात्रा तीन दिनों की थी. इस दौरे में बेहद गर्माहट रही. राष्ट्रपति अब्देल नासिर ने बिना औपचारिकता के नेहरू के साथ एक दिन गुजारने की सोची ताकि वे उनसे देश-दुनिया के मुद्दों पर विस्तार से बात कर सकें. ये वो दौर था जब पश्चिम की गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर आजादी की सांस लेने वाले एशिया और अफ्रीका के देश बदलाव की अकुलाहट से बैचेन थे. ये मुल्क अपना मुस्तकबिल खुद लिखना चाहते थे.
इसी मकसद से अब्देल नासिर ने एक पूरा दिन नेहरू के साथ नील नदी की लहरों पर उनके साथ गुजारने की सोची. यहां ये बताना जरूरी है कि भारत में जो महत्व और उपयोगिता गंगा नदी की है वैसा ही सांस्कृतिक महत्व मिस्र में नील नदी को मिला है.
नील की लहरों पर दो राष्ट्राध्यक्षों की गुफ्तगू
नील नदी की सैर का कार्यक्रम तैयार हो गया. नेहरू मिस्र की राजधानी काहिरा में ठहरे हुए थे. तय किया गया कि नेहरू और नासिर Semiramis Hotel से लेकर El Qanater El Khayreya तक की यात्रा नील नदी में करेंगे. नील नदी की इस यात्रा में 4 घंटे लगे. नील नदी की लहरों में दोनों नेताओं का ये नौकायन अदभूत था. पूरी यात्रा के दौरान दोनों के बीच गपशप होती रही. ये तभी चुप रहे जब डिनर का वक्त आया.
डिनर के बाद अब्देल नासिर फिर से बातचीत शुरू कर चाहते थे. लेकिन नेहरू ने मना कर दिया. नासिर यूथ मूवमेंट के रिकॉर्ड में लिखा है, "आपको हमें झपकी लेने के लिए कुछ समय देना चाहिए. नेहरू अपनी कुर्सी पर बैठे नदी के किनारों को निहार रहे थे. इसी दौरान वे कुछ मिनटों के लिए सो गए.
आज आप मुझे प्लानिंग के बारे में बताइए
इस नींद के बाद अब्देल नासिर और नेहरू की नील नदी की सैर अगली सुबह फिर शुरू हुई. इस दौरान अब्देल नासिर ने नेहरू से कहा, "आज आप मुझे प्लानिंग के बारे में बताइए." दरअसल 1953 में क्रांति के बाद मिस्र की सत्ता संभालने वाले अब्देल नासिर 1955 तक योजना और राष्ट्रनिर्माण के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे. उन्हें अपने देश का भविष्य संवारने का अनुभव नहीं था. उन्हें लगा कि भारत के नेहरू के पास इसका अनुभव है.
बता दें कि भारत इससे पहले ही अपने यहां पहली पंचवर्षीय योजना शुरू कर चुका था. अब्देल नासिर ने नेहरू से खासकर पूछा, "आप बताएं हमें प्लान कैसे करना चाहिए."
नील की धारा, प्राचीन गांव और प्लानिंग पर चर्चा
नासिर यूथ मूवमेंट का रिकार्ड बताता है, "नील नदी की धारा सतत गति से बहती जा रही थी, किनारों पर प्राचीन गांव थे, उस सुबह उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की. प्लानिंग की बात आने पर नेहरू ने नासिर से कहा, "मेरी इच्छा है कि मैं योजना (प्लानिंग) पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पूरी तरह से राजनीति से संन्यास ले लूं, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो किसी को कुछ हासिल करने का अवसर देता है."
नेहरू विचार की गहरी मुद्रा में जो उनकी एक विशेषता थी. उन्होंने मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल नासिर से कहा, "फिर भी मुझे संदेह है कि कोई अपनी पसंद की चीज़ों को इस माध्यम से पूरा करने में सक्षम है या नहीं."
दोपहर आते आते ये चर्चा दुनिया के मुद्दों पर आकर केंद्रित हो गई. नेहरू चाहते थे कि दुनिया चीन को मान्यता दे. नेहरू ने इस बातचीत में कहा कि चीन हिमाचल के पहाड़ों की तरह है. किसी को ये नहीं कहना चाहिए कि हिमालय एशिया में नहीं.
परमाणु दोनों है, युद्ध भी, शांति भी
नासिर के साथ संवाद में नेहरू परमाणु को लेकर बेहद उत्सुक दिखे थे. नेहरू कहा करते थे, " परमाणु दोनों है, युद्ध भी, शांति भी.
नासिर यूथ मूवमेंट में कहा गया है कि ये बातचीत पूरे दिन चलती रही. युवा अरब क्रांतिकारी नासिर अनुभवी बुद्धिजीवी हिंदू नेहरू को पूरे दिल से सुन रहे थे. उस दिन नेहरू ने अब्देल नासिर से कहा था, " जितना अधिक हम बात करते हैं, उतना ही मुझे विश्वास होता है कि हम समान विचार साझा करते हैं."
नेहरू, नासिर के विचारों में इतना साम्य था कि इन दो नेताओं ने युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जौसेफ ब्रोज टीटो के साथ मिलकर उन्होंने तत्कालीन विश्व में गुट निरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया.