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'सेना में कभी सांप्रदायिकता नहीं देखी, सिर्फ एक पहचान जय हिंद', बोले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने बताया है कि उन्होंने सेना में कभी भी सांप्रदायिकता नहीं देखी. वहां किसी का धर्म नहीं पूछा जाता, सिर्फ जय हिंद ही पहचान रहती है. उन्होंने कुछ पुराने किस्सों का जिक्र कर भी अपनी बात को समझाया है.

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:16 PM IST

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने कई मुद्दों पर विस्तार से बात की है. उन्होंने अल्पसंख्यक समाज की वर्तमान स्थिति पर तो रोशनी डाली ही है, इसके साथ-साथ सेना में उनका कैसा अनुभव रहा, इस पर भी अपने विचार रखे हैं. 

सेना में अपनी सर्विस को लेकर लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने बड़ी बात बोली है. वे कहते हैं कि मैंने अपनी सर्विस के दौरान सेना में कभी भी सांप्रदायिकता नहीं देखी. मुझे इस बात का काफी गर्व भी है.अनेकता में एकता सेना का मूल मंत्र है और वो हमेशा उसी सिद्धांत पर चलती है. एक किस्से का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि लोंगेवाला की जंग के दौरान उनकी जो रेजिमेंट थी, उसमें 16 ऑफिसर थे. उसमें दो मुस्लिम, दो सिख, एक ईसाई, एक ज्यू. सभी ने साथ मिलकर वो जंग लड़ी थी. वो भारत की असल ताकत है. तब किसी ने मुझसे मेरा धर्म नहीं पूछा था, रेजिमेंट के सम्मान को बनाए रखना ही हमारा उदेश्य था.

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'अलग विचार को एंटी नेशनल बता देते हैं'

अब सर्विस के दौरान तो जमीरुद्दीन शाह को किसी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन वे ये जरूर मानते हैं कि सोशल मीडिया जब से ज्यादा सक्रिय हो गया है, माहौल बदला है. अगर कोई किसी के विचार से सहमत नहीं होता है या अलग विचारधारा रखता है, उसे एंटी नेशनल बता दिया जाता है. इस समय भारत की एकता का सबसे बड़ा दुश्मन सोशल मीडिया बन गया है. वे जोर देकर कहते हैं कि ये समय भी निकल जाएगा क्योंकि भारत की जड़े मजबूत हैं, कभी वो झुक सकता है, लेकिन टूटता कभी नहीं है. उन्होंने बैंबू ट्री का उदाहरण देते हुए कहा कि हवा का एक झोंका सिर्फ उस पेड़ को हिला सकता है, गिराता नहीं है. उसी तरह भारत भी कभी टूटता नहीं है.

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अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि भारत मजबूत इसलिए है क्योंकि यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, ये सभी एक हाथ की उंगलियां हैं. जब ये सभी साथ आती हैं, हम एक मजबूत मुट्ठी बन जाते हैं. लेकिन अगर एक भी उंगली जख्मी हो जाए या खराब हो जाए तो हम वो मुट्ठी नहीं बना सकते हैं.

'AMU नाम पर बवाल क्यों, मुस्लिम की वजह से?'

अब सेना के अपने अनुभवों के साथ-साथ जमीरुद्दीन शाह ने AMU के पूर्व वीसी के तौर पर भी अपने विचार रखे. उन्होंने इस बात पर दुख जाहिर किया कि लोगों को कई बार इस यूनिवर्सिटी के नाम से ही दिक्कत हो जाती है क्योंकि इसमें मुस्लिम आता है. जबकि देश में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी भी है, हिंदू कॉलेज भी है, खालसा कॉलेज भी है. ये सभी नाम देश की विविधता को दर्शाते हैं. कुछ लोगों को ऐसा लगता होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कोई मदरसा जैसा काम करता होगा. लेकिन मैं साफ कहना चाहता हूं कि ये एक मॉर्डन सेकुलर यूनिवर्सिटी है. लोग सवाल जरूर कर सकते हैं कि मुस्लिम ज्यादा क्यों यहां पढ़ते हैं, इसका एक ही जवाब है कि यहां पर उर्दू, फारसी, अरेबिक जैसे विषयों पर भी पढ़ाई होती है और इन कोर्स में मुस्लिम ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं.

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