
India Today Conclave Mumbai: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में मूनलाइटिंग के मुद्दे पर विस्तृत रूप से चर्चा हुई है. एक नौकरी हाथ में और एक्स्ट्रा स्किल के लिए दूसरा काम साथ में करना कहां तक जायज है, क्या ये कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन होता है? इन सवालों का जवाब जानने के लिए कार्यक्रम में इंडस्ट्री के कई जानकार से बात की गई है.
जानकारों के मुताबिक मूनलाइटिंग डिजिटल दुनिया की एक बड़ी सच्चाई है. भविष्य भी मूनलाइटिंग की तरफ जा रहा है. ऐसे में इसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता. दूसरी तरफ इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कंपनियों को किसी भी कर्मचारी को नौकरी से निकालने से पहले उससे बात करने की जरूरत है. कम्युनिकेशन गैप जो पैदा हो गया है, उसने इस मूनलाइटिंग वाले कॉन्सेप्ट को लेकर ज्यादा विवाद पैदा कर दिया है.
Prabir Jha People Advisory के फाउंडर प्रबीर झा कहते हैं कि मूनलाइटिंग को लेकर लोग ज्यादा सोच रहे हैं. वर्तमान स्थिति को भी बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है. मैंने ये पाया है कि कई कंपनियों में कर्मचारियों के साथ बातचीत का आभाव है. ये समझने की जरूरत है कि मूनलाइटिंग भविष्य है. कंपनियों को भी अब फ्लेक्सिबल होना ही पड़ेगा. आप एक साथ 50 हजार लोगों को नौकरी से निकाल दे, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे मूनलाइटर हैं, ये ठीक नहीं.
वहीं टाटा ग्रुप के पूर्व Group CHRO एन एस राजन मानते हैं कि ये मुद्दा जितना सरल लगता है, उतना है नहीं. उनके मुताबिक बात जब भी सिद्धांतों की आएगी तो वो दोनों नौकरी देने वाले और नौकरी करने वाले पर लागू होंगे. अगर कोई कंपनी कहती है कि मूनलाइटिंग गलत है, तो क्या वो सीधे उसे नौकरी से निकाल देगी? इसे क्या अब सही माना जाए, सैद्धांतिक माना जाए? हर कंपनी में पहले चेतावनी देने की बात होती है, अगर आपकी नजरों में कुछ गलत है, तो आप पहले कर्मचारी को वॉर्न करेंगे, आप सीधे उन्हें नौकरी से निकाल देंगे, ये सही नहीं.
अब मूनलाइटिंग को लेकर डिबेट सिर्फ सही या गलत तक सीमित नहीं की जा सकती है. बड़ी बात ये है कि इस समय मार्केट की जरूरतें लगातार बदल रही हैं. स्किल लोगों की डिमांड ज्यादा है, लेकिन उतनी सप्लाई नहीं है. इस बारे में Aditya Birla Group के पूर्व सलाहकार विनीत कॉल बताते हैं कि कई बार स्किल लोगों की डिमांड ज्यादा होती है, लेकिन उतनी सप्लाई नहीं होती, यानी कि कंपनियां ऐसे कर्मचारियों को हायर नहीं कर पाती हैं. उस स्थिति में भी मूनलाइटिंग वाली संस्कृति को बल मिलता है. वहीं दूसरी तरफ विनीत मानते हैं कि कई कंपनियां अब कौस्ट कटिंग कर रही हैं. वे कर्मचारियों को परमानेंट रूप से नहीं रखना चाहती हैं, कुछ प्रोजेक्ट्स के लिए हायर करना चाहती हैं. इस वजह से भी मूनलाइटिंग ट्रेडिशन बढ़ा है.
विनीत कॉल इस बात पर भी जोर देते हैं कि मूनलाइटिंग भी तब तक सही है जब तक शख्स की प्राइमरी नौकरी पर असर ना पड़े. उनकी तरफ से कोर्ट के कुछ ऐसे केस बताए गए जहां पर कर्मचारियों का नौकरी से निकाला जाना सही बताया गया क्योंकि वहां पर मूनलाइटिंग की वजह से परफॉर्मेंस पर असर पड़ता है. ऐसे में विनीत मानते हैं कि हर चीज एक लिमिट तक सही है.