Advertisement

India Today Conclave: अगले साल तक बहुत जगह आएगा रिसेशन, प्रांजल भंडारी ने किया आंशिक मंदी का दावा

शनिवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन भारत के जाने-माने इकोनॉमिस्ट ने हिस्सा लिया. भारतीय अर्थव्यवस्था पर चर्चा की गई जिसमें महेश व्यास, नीलकंठ मिश्रा, अजीत रानाडे, अभीक बरुआ और प्रांजल भंडारी ने हिस्सा लिया. भारत की अर्थव्यवस्था, ग्रोथ और महंगाई पर चर्चा की गई.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर चर्चा इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर चर्चा
aajtak.in
  • मुंबई,
  • 05 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:02 PM IST

India Today Conclave Mumbai: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन बिजनेस, कला, लेखक, फिल्म जगत की दिग्गज हस्तियां अपने विचारों के साथ कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं. शनिवार को इंडिया टुडे के इस मंच पर भारत के जाने-माने इकोनॉमिस्ट ने हिस्सा लिया. और सबसे पहले सेशन 'Indianomics: Navigating the global economic meltdown' में अपने विचार साझा किए.

कार्यक्रम में शिरकत की सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ महेश व्यास (Mahesh Vyas) ने. इनके साथ थे एशिया पैसिफिक स्ट्रैटिजी, इंडिया इक्विटी स्ट्रैटिजिस्ट, क्रैडिट इश्यू के सह-प्रमुख नीलकंठ मिश्रा (Neelkanth Mishra), गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, पुणे के कुलपति, अजीत रानाडे (Ajit Ranade), HDFC बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट और कार्यकारी उपाध्यक्ष अभीक बरुआ (Abheek Barua) और HSBC की ASEAN ईकोनॉमिस्ट, चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट की एमडी प्रांजल भंडारी (Pranjul Bhandari)

Advertisement

'दुनिया ने इससे पहले इतने इंट्रेस्ट रेट कभी नहीं देखे थे'

भारतीय अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए नीलकंठ मिश्रा ने कहा कि अर्थव्यवस्था भले ही धीमी हो रही है, लेकिन मुझे लगता है कि वर्तमान में हमारी अर्थव्यवस्था की ट्रैजेक्टरी बहुत मज़बूत है, जो हमारे टैक्स कलेक्शन, कार सेल्स , एयरलाइन ट्रैफिक में साफ दिख रही है. लेकिन भारत में इंट्रेस्ट रेट बहुत बढ़ रहे हैं. ग्रोथ काफी ज्यादा है. मुझे बस ग्लोबल एक्सिडेंट की फिक्र है. इनमें से कुछ चीजें, नॉनलीनियर हैं.

दुनिया ने इससे पहले इतने इंट्रेस्ट रेट कभी नहीं देखे थे. बाजार, पॉलिसी मिस्टेक्स पर ज़ीरो टॉलरेंस रखता है. अगर किसी भी सरकार में राजनीतिक उधल-पुथल होती है या सेंट्रल बैंक से कोई गलती होती है तो इस तरह के एक्सिडेंट का रिस्क बहुत बढ़ जाता है. और जब ऐसा होता है, तो अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है. तो मुझे लगता है कि ये सब ठीक हो जाएगा. लेकिन हमें सचेत रहने की ज़रूरत है. 

Advertisement

'ग्लोबल एक्सिडेंट का डर है'

अभीक बरुआ ने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था के लिए काफी काम कर रही है. लेकिन मुझे सरकार की कुछ बातें परेशान करती हैं. पहली ये कि रिकवरी बहुत अनियमित हो गई है. जैसा कि अभी मारुति ने कहा कि वे एक्सपैंड करेंगे. लेकिन वे SUV और महंगी गाड़ियों में आगे बढ़ने की बात की जा रही है, जो महंगी गाड़ियां हैं, लेकिन छोटी कारें गायब हैं. इससे पता चलता है कि महंगाई है और वह लोगों पर असर डाल रही है. इसलिए ये रिकवरी अनियमित है. दूसरी बात है कि हमारे ऊपर भी दबाव है. ये एक तरह का ग्लोबल एक्सिडेंट है जैसा कि अभी यूके में दिखा. इस समय क्राइसिस को हेंडल करने के लिए कोई समाधान नहीं है, जो काफी परेशान करने वाली बात है. 

'मुद्रास्फीति 6% -7% के बीच रहने की उम्मीद है'

महेश व्यस ने कहा कि ये भारत ने अर्थव्यवस्था के इस दौर को भी बहुत अच्छी तरह से निकाला है. भारतीय अर्थव्यवस्था में कॉर्पोरेट सेक्टर बहुत अच्छा कर रहे हैं. हमारी अर्थव्यवस्था के जो ड्राइवर्स हैं वे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. आने वाले समय में हम बहुत अच्छा करेंगे. उन्होंने कहा कि इसकी संभावना नहीं है कि मुद्रास्फीति 6% तक कम हो जाएगी, मुद्रास्फीति 6% -7% के बीच रहने की उम्मीद है. ऐसा नहीं है कि वह बहुत ज्यादा बढ़ेगी, लेकिन कमोडिटी की कीमतें पूरी तरह से अनुमानित नहीं हैं. मुझे मुद्रास्फीति में कोई वृद्धि नहीं दिख रही है, लेकिन मैं इसे इतना नीचे भी नहीं देख रहा हूं.

Advertisement

 

'बहुत सारी जगह अगले साल तक रिसेशन आएगा'

प्रांजल भंडारी का कहना था कि 2022 का मंत्र यही है कि हमें महंगाई को कम करना है. भले ही इसके लिए हमें शॉर्ट रन में ग्रोथ को कम करना पड़े. हम ग्लोबल तौर पर पूरी तरह से सिंक्रोनाइज़्ड रिसेशन की भविष्यवाणी नहीं कर रहे, लेकिन आंशिक रूप से रिसेशन (Partial recession) की भविष्यवाणी कर रहे हैं. बहुत सारी जगह अगले साल तक रिसेशन आएगा. ग्रोथ की बात करें, तो ग्रोथ अच्छी हुई है, लेकिन आने वाले कुछ महीने काफी ट्रिकी होने वाले हैं. मुझे दो चीजों की चिंता है पहला एक्सपोर्ट, जो अर्थव्यवस्था के मुख्य ड्राइवर रहा है, लेकिन अभी एक्सपोर्ट वॉल्यूम आने वाले समय में कम होंगी जिसकी वजह से जीडीपी पर असर पड़ेग. दूसरी बात है पेंट डिमांड (pent up demand).

'भोजन और ईंधन की कीमतें कम करने पर फोकस करें'

गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के कुलपति, अजीत रानाडे ने कहा कि भारत को उन रणनीतियों पर फोकस करना चाहिए, जो भोजन और ईंधन की कीमतों को कम करती हैं, क्योंकि अधिकांश महंगाई भोजन और ईंधन तक ही सीमित होने जा रही है, इसलिए हमें उन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो उन कीमतों को कम करें. फूड स्कीम वास्तव में मदद कर रही है और इसे बढ़ाया जाना चाहिए.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement