
India Today Conclave Mumbai 2023: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव मुंबई 2023 में देश के नामचीन इतिहासकारों और लेखकों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 सौ साल पूरे होने के मौके पर आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक रहे गुरुजी माधवराव सदाशिव गोलवलकर के विचारों और उनके हिंदुत्व विचारधारा पर चर्चा की.
पूर्व राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि गुरुजी गोलवलकर आरएसएस के बहुत महत्वपूर्ण शख्स रहे हैं. उनकी भूमिका भी काफी प्रेरणात्मक रही है लेकिन भारत को लेकर उनके जो विचार थे, आज 21वीं सदी में पालन करना जरूरी नहीं है.
उन्होंने कहा कि आरएसएस के मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन लेक्चर दिए थे. इन तीनों लेक्चर में से किसी में भी उन्होंने गोलवलकर का जिक्र तक नहीं किया था. ये संयोग नहीं हो सकता. उनके इस बयान के बाद यह पूछने पर कि क्या खुद आरएसएस ने भी गोलवलकर को खारिज कर दिया है? क्या बीजेपी और आरएसएस उन्हें नकारने की कोशिश कर रहे हैं? इस पर दासगुप्ता ने कहा कि गुरुजी गोलवलकर 'आउटडेटेड' हो गए हैं. वह गुजरे जमाने की बात हो गए हैं.
उनकी इसी बात से सहमति जताते हुए इतिहासकार और लेखक डॉ विक्रम संपत ने कहा कि हमें सबसे पहले सावरकर के हिंदुत्व और आरएसएस के हिंदुत्व में अंतर को समझना पड़ेगा. सावरकर का हिंदुत्व हमेशा से व्यक्ति केंद्रित रहा है जबकि आरएएस में लार्जर कॉज (Larger Cause) को महत्व दिया है. यही वजह है कि 100 साल बाद भी आरएसएस अभी भी फल-फूल रहा है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के रिटायर्ड प्रोफेसर और लेखक डॉ. शमसुल इस्लाम ने इस चर्चा से जुड़ते हुए कहा कि यह कहा जाता है कि आरएसएस इस देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन है. क्या आरएसएस ने कभी मेंबरशिप जारी की? ऐसे में यह कहना कि वह दुनिया का सबसे बड़ा कल्चरल संगठन है, पूरी तरह से गलत है.
गोलवलकर की आत्म परेशान हो रही होगी
प्रोफेसर इस्लाम कहते हैं कि गोलवलकर ने ताउम्र हिंदी में लिखा. उनकी कृतियां 80 फीसदी हिंदी में है लेकिन यहां पर उन पर अंग्रेजी में बात हो रही है. ऐसे में उनकी आत्मा बड़ी परेशान हो रही होगी.
उन्होंने कहा कि गोलवलकर के भारत को लेकर विचार बहुत खतरनाक थे. उन्होंने 30 जनवरी 1949 में आरएसएस के इंग्लिश माउथपीस में संविधान को लेकर सवाल खड़े किए थे. उनका संविधान में विश्वास नहीं था. वह मनुस्मृति में विश्वास करते थे. उन्होंने तिरंगे में तीन रंगों का भी विरोध किया था. वह कहते थे कि तीन रंग अपशकुन होता है.
वह कहते हैं कि गोलवलकर 1947 से 1973 तक आरएसएस के सरसंघचालक थे. मुझे नहीं लगता कि वह गुजरे जमाने की बात हो गए हैं. आरएसएस के लिए वह अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं. उनके विचार अभी भी प्रासंगिक हैं. उनके कुछ विचार जरूर विवादित हैं और उन्हें खारिज किया जाना चाहिए और खारिज किया गया है. आरएसए के विचार ध्रुवीकृत रहे हैं, जो सही नहीं है लेकिन उनके विचारों का केंद्र देश की एकता ही है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड का गोलवलकर ने किया था विरोध?
इतिहासकार और लेखक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि मुस्लिमों को लेकर गोलवलकर के विचारों को गलत समझा गया है. गोलवलकर ने अपनी मौत से एक साल पहले 1972 में खुशवंत सिंह को इंटरव्यू में कहा था कि मेरा मानना है कि हिंदुत्व और इस्लाम एक दूसरे को जरूर समझेंगे. गोलवलकर ने कहा था कि ईसाई और मुस्लिम कट्टर दुश्मन हैं. लेकिन उनके इस तरह के विवादित बयानों को खुद आरएसएस ने खारिज किया है.
उन्होंने कहा कि गोलवलकर से एक इंटरव्यू में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सवाल किया था. उनसे पूछा गया था कि क्या उन्हें नहीं लगता कि राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाने के लिए यूसीसी को लागू करना जरूरी बन पड़ा है? इस पर गोलवलकर ने कहा था कि मुझे ऐसा नहीं लगता. इस मुद्दे पर मेरी राय से बहुत से लोग चौंक जाएंगे. लेकिन मुझे सच बोलना पड़ेगा. सौहार्द (Harmony) और यूनिफॉर्मिटी दो अलग-अलग चीजें हैं. हार्मनी के लिए यूनिफॉर्मिटी जरूरी नहीं है. तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों और यूनिफॉर्मिटी का पक्ष लेने वालों के बीच कोई अंतर नहीं है. यूनिफॉर्मिटी का समर्थन एक तरह से देश का पतन होगा