
इंडिया टुडे ग्रुप ने डेटा एनालिटिक्स फर्म हाउ इंडिया लिव्ज के साथ मिलकर देश के सकल घरेलू व्यवहार के जो आंकड़े सामने रखे हैं, उससे नागरिकों की एक राय सामने आई है कि वह विभिन्न मुद्दों पर क्या सोचते हैं और कैसा रुख रखते हैं. जैसे कि बात अगर जलवायु परिवर्तन की ही की जाए तो अब आमजन भी इसे अपनी समस्या मान रहा है और इसकी जानकारी रखता है.
जलवायु परिवर्तन से वाकिफ हैं अधिकतर लोग
सर्वे में एक सकारात्मक नतीजा यह रहा कि 69% भारतीय जलवायु परिवर्तन से वाकिफ हैं. हालांकि इसे पहले अभिजात वर्ग की चिंता माना जाता था, मगर अब यह आम जन तक पहुंची है. केरल और तमिलनाडु में यह जागरूकता सबसे अधिक दिखी. 86% ने गंदगी फैलाने को गलत कहा, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता दिखाता है. हालांकि, वास्तव में कचरा प्रबंधन और प्रदूषण पर नियंत्रण कमजोर है. यह जागरूकता नीतियों में तब्दील होनी चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा और सामुदायिक प्रयास इसे और बढ़ा सकते हैं. भारत का भविष्य पर्यावरण संरक्षण पर निर्भर करता है.
फिर भी कुछ को इसकी जानकारी नहीं
इस सर्वे में सामने आया है कि सार्वजनिक स्थानों पर बिना हेडफोन के म्यूजिक सुनने के खिलाफ 81% लोग हैं. ओडिशा में इसके खिलाफ 95% लोग हैं. जलवायु परिवर्तन के मामले में 69% भारतीयों को चिंता है. 20 प्रतिशत लोगों को जलवायु परिवर्तन की कोई चिंता नहीं है और 11 प्रतिशत लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं. हरियाणा में यह आंकड़ा 93% है, लेकिन उत्तर प्रदेश में केवल 37% लोग इसे गंभीरता से लेते हैं.
समाजशास्त्री दीपांकर गुप्ता का कहना है कि इस सर्वे से दो अहम निष्कर्ष निकलते हैं, एक यह कि लोग जानते हैं कि क्या सही है, लेकिन वे उसे लागू नहीं करते, और दूसरा यह कि दक्षिण भारतीय राज्य, खासकर केरल, सामाजिक जागरूकता के मामले में उत्तर भारत से कहीं आगे हैं.
सर्वे में परोपकार के मामले में क्षेत्रीय अंतर साफ दिखा. पश्चिम बंगाल में 99% लोगों ने कहा कि वे दुर्घटना पीड़ित की मदद के लिए रुकेंगे, जबकि ओडिशा में यह आँकड़ा मात्र 22% रहा. बंगाल का यह रुख सामुदायिक भावना को दर्शाता है, वहीं ओडिशा की कम संख्या चिंताजनक है. देशभर में 88% ने मदद की बात कही, मगर परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 50% मौतें समय पर मदद न मिलने से होती हैं. यह कथनी-करनी का फर्क भी हो सकता है. बंगाल की मिसाल से सीख लेते हुए ओडिशा जैसे राज्यों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. परोपकार राष्ट्र के चरित्र को मजबूत करता है.