
इंडिया टुडे/आज तक के कार्यक्रम 'INDIA TODAY STATE OF THE STATE: UTTARAKHAND FIRST' के कार्यक्रम में पहुंचे गायक और कुमायूं यूनिवर्सिटी के डीएसबी कैंपस के प्रोफेसर डॉ. रवि जोशी ने भजनों के महत्व पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि भजन हमें जीवन जीने का सलीका सिखाते हैं.
यूनिवर्सिटी में बच्चों को संगीत की शिक्षा देने वाले डॉ. जोशी ने कहा कि मैं जिस परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं, वह पंडित कुमार गंधर्व जी की गायन शैली है. उन्होंने अपने गायन से शब्दों को नए मायने दिए हैं. कबीर की रचनाएं मेरे दिल के करीब हैं. करीब का एक पद है, मोहे कहां ढूंढो रे बंदे, मैं तो तेरे पास रे.
बच्चों में संगीत के बीज बो रहे
लोक संगीत इस देश की आत्मा है. यह इतना महत्वपूर्ण है कि इससे ही राग निकलते हैं. शहरों के नाम राग पर बंटे हुए हैं. पाकिस्तान या सिंध की तरफ भैरवी संगीत बहुत लोकप्रिय है. बंगाल में भटियाली धुन चलती है जबकि कर्नाटक में कान्हडा दरबारी राग बहुत जलता है. गढ़वाल का लोकसंगीत बहुत समृद्ध है.
बच्चों को संगीत के संस्कार देने बहुत जरूरी हैं. बच्चों को लोक संगीत की शिक्षा दी जानी चाहिए. उनमें जागरूकता जरूरी है. मेरी कोशिश रहती है कि मैं लोकसंगीत के रास्ते क्लासिकल के दर्शन कराऊं. मैं बच्चों को जमीनी स्तर पर उसकी शिक्षा दूं.
पाश्चात्य संगीत के बढ़ते प्रभाव की वजह से लोक संगीत के अस्तित्व से जुड़े सवाल पर जोशी ने कहा कि लोक संगीत एक तरह से गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाती है. मुझे संगीत विरासत में मिला है, जिसे मैं आगे बढ़ा रहा हूं.