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INDIA गठबंधन के 'कच्चे धागे'... सहयोगी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ कैसे अपनाया बगावती रुख

विपक्षी एकता का उद्देश्य था कि वह NDA के विजय रथ के सामने मजबूत दीवार बनकर खड़ी होगी, लेकिन ताजा माहौल ऐसा बन रहा है कि इस दीवार की हर ईंट छिटककर तितर-बितर हुई जा रही है. बल्कि इसी दीवार की सबसे प्रमुख ईंट (नीतीश कुमार) तो इतनी दूर छिटके हैं कि NDA ने उसे मिलाकर खुद का किला और मजबूत कर लिया है. नीतीश कुमार के बाद अब ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर हमला बोला है

INDIA गठबंधन में लगातार रार होती रही है INDIA गठबंधन में लगातार रार होती रही है
विकास पोरवाल
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 10:31 PM IST

इंडिया गठबंधन, विपक्षी एकता और इंडी अलायंस... ये तीनों नाम उस एक कवायद के हैं, जो बीते साल से विपक्ष के सभी नेताओं को एक छतरी के नीचे लाने के नाम पर की जा रही है. इस कोशिश में लाभ-हानि, हार-जीत, कुर्सी, सत्ता, शासन सबकुछ है बस वही नहीं दिख रही है, जिसकी जरूरत है. वो है एकता... कुल मिलाकर हाल ऐसा हो चला है कि विपक्ष में जितने नेता हैं, सभी अपनी-अपनी बांसुरी बजा रहे हैं और सबके अलग-अलग सुर हैं.

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NDA का विजयी रथ रोकने के लिए विपक्षी एकता की कवायद, लेकिन...
विपक्षी एकता का उद्देश्य था कि वह NDA के विजय रथ के सामने मजबूत दीवार बनकर खड़ी होगी, लेकिन ताजा माहौल ऐसा बन रहा है कि इस दीवार की हर ईंट छिटककर तितर-बितर हुई जा रही है. बल्कि इसी दीवार की सबसे प्रमुख ईंट (नीतीश कुमार) तो इतनी दूर छिटके हैं कि NDA ने उसे मिलाकर खुद का किला और मजबूत कर लिया है.

विपक्षी एकता की बात इसलिए मौजूं हैं कि नीतीश कुमार के पाला बदलनो को अभी हफ्ता भी नहीं बीता है कि पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के लिए तार सप्तक में विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं. ये सुर कहीं और से नहीं बल्कि ममता बनर्जी के गले से निकल रहे हैं. पहले एक नजर ममता बनर्जी के बयान पर...

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"ममता बनर्जी शुक्रवार को मुर्शिदाबाद में थीं. यहां राहुल गांधी की बीड़ी कामगारों के साथ की मुलाकात उन्होंने निशाना साधा और कहा कि, आजकल फोटोशूट का नया चलन देखने में मिल रहा है. जो लोग कभी चाय के स्टॉल पर नहीं गए, अब वे बीड़ी कामगारों के साथ बैठकर फोटो खिंचवा रहे हैं. ममता यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने कहा है कि मुझे समझ नहीं आता कि कांग्रेस पार्टी को इतना अहंकार किस बात का है.

मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस 300 में से 40 सीट भी जीत पाएगी या नहीं. कांग्रेस पार्टी पहले जहां-जहां जीतती थी, अब वहां भी हारती जा रही है. अगर कांग्रे में हिम्मत है तो वह बनारस में बीजेपी को हराकर दिखाए. कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बंगाल आई थी. लेकिन मुझे बताया तक नहीं गया. हम INDIA गठबंधन में हैं, लेकिन उसके बावजूद मुझे इसकी जानकारी नहीं दी गई.

मुझे प्रशासन से इसके बारे में पता चला. हम उत्तर प्रदेश में चुनाव नहीं जीते. आप राजस्थान में भी चुनाव नहीं जीते. हिम्मत है इलाहाबाद में जाकर जीतकर दिखाओ, वाराणसी में जीतकर दिखाओ. हम भी देखें कि आपमें कितनी हिम्मत है?"

विपक्षी एकता में अहम जगह रखती हैं ममता बनर्जी
ये सारी बातें उस पार्टी और उस शख्सियत की ओर से सीधे तौर पर जनसभा में कही गईं हैं, जो कि कांग्रेस के महत्वकांक्षी गठबंधन में अहम हिस्सा हैं. ममता बनर्जी इंडिया अलायंस में वो अहम पद रखती हैं, कि राहुल गांधी उनसे मशविरा किए बगैर, कोई फैसला लेने से बचते रहे हैं. नीतीश कुमार के मामले में ये बात हाल ही में उजागर हुई है. सूत्रों के मुताबिक जब नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जाना था तो राहुल गांधी ने यही कहा कि ममता बनर्जी से बात करके बताते हैं. इसीके बाद नीतीश नाराज हो गए और इंडिया गठबंधन से निकलकर NDA में चले गए.

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एकता की कवायद में बिखराव की कहानी
कहने का मतलब ये है कि, जिस विपक्षी एकता को साधकर 2024 में आगामी दिनों में होने वाले लोकसभा के चुनावी रण में NDA के सामने उतारने की तैयारी एक साल से चल रही है, वो विपक्षी एकता सधती हुई दिख नहीं रही है. कभी शरद पवार पार्टी लाइन से अलग चलते दिखते हैं और कांग्रेस की पेशानी पर बल पड़ने लगता है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की शर्तों से एकता का झंडा झुकने लगता है. मध्य प्रदेश चुनाव में तो अखिलेश यादव ने भी तेवर दिखा दिए थे और नीतीश कुमार, जो कि इस गठबंधन वाली योजना का प्लान लेकर सबसे पहले आगे चले थे, रूठते-रिसियाते खुद ही इससे अलग हो चुके हैं. 

बीजेपी चुनाव की तैयारी कर रही और गठबंधन...
लोकसभा चुनाव का संग्राम बस सामने ही है. चुनाव आयोग भी तैयारी करने लगा है. बीजेपी अपने कई मास्टर स्ट्रोक को चुनावी उपलब्धियों के तौर पर भुनाने के लिए तैयार बैठी है. लेकिन इंडिया अलायंस वाली 'विपक्षी एकता की दीवार' में  बार-बार आ रही 'दरार' बड़े राजनीतिक नुकसान की वजह बन सकती है. ये दरार कभी एनसीपी चीफ शरद पवार के तौर पर दिखती रही है, कभी कभी दिल्ली सीएम केजरीवाल के तौर पर तो कभी अखिलेश भी इस भूमिका में नजर आते हैं. जबसे इंडिया अलायंस बना है, इसके सहयोगी कैसे असंतुष्ट नजर आते रहे हैं और क्यों? 

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शरद पवारः हर बार पार्टी लीक से अलग नजर आए
इस सवाल का एक जवाब हो सकता है, राजनीतिक महत्वकांक्षा... विपक्षी एकता की जब बात चल रही थी कि तो सबसे पहला सवाल उठा कि इसमें अगुआ कौन होगा. इस सवाल के जवाब के तौर पर जब वरिष्ठ नेताओं में अग्रणी शरद पवार की ओर देखा गया तो वह पहले ही अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते हमेशा पार्टी और गठबंधन का लाइन-लीक से अलग हटकर चलते दिखाई दिए. 

साल 2023 में उन्होंने खुद को हर उस पैटर्न से किनारे कर लिया, जिस पर चलकर कांग्रेस विपक्षी एकता को मजबूत करने के सपने देख रही थी और बीजेपी पर भारी पड़ने के मंसूबे पाले थी. पीएम मोदी की डिग्री मामले से शरद पवार ने खुद को अलग किया. अडाणी मामले में जांच समिति बनाए जाने को लेकर उनका रुख अलग था. उन्होंने कांग्रेस को सावरकर मामले में भी गुगली दे दी और महा विकास अघाड़ी को लेकर उन्होंने कहा कि, 2024 में होने वाले चुनाव में साथ रहेंगे या नहीं, इसके बारे में अभी से कुछ बोला नहीं जा सकता.' हालांकि इसके कुछ महीनों बाद महाराष्ट्र बड़े राजनीतिक बदलाव हुए, जिसमें NCP दो फाड़ हो गई और अजित पवार गुट, राज्य की सत्ता के साथ ही जा मिला. 

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एनसीपी में टूट के बाद शरद पवार के पास पहले जैसी पावर तो अब नहीं दिखती, लेकिन पहले उनकी महत्वाकांक्षा रही है कि वह राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा बनें और लीडर की भूमिका में सामने आएं, लेकिन कांग्रेस के रहते यह मंशा पूरी होती नहीं दिखती है. यही स्थिति 1999 में भी थी, लिहाजा शरद पवार हर उस खास मौके पर अलग ही चलते दिखे, जब उन्हें गठबंधन के समर्थन में खुल कर रहना था. खैर अभी बीते कुछ दिनों से उनकी ओर से कोई बयान नहीं आया है और वह अब भी गठबंधन में शामिल हैं. लेकिन कब तक?

अरविंद केजरीवालः  किस हद तक कांग्रेस का साथ देगी आम आदमी पार्टी? 
दिल्ली सीएम केजरीवाल के विपक्षी गठबंधन से जुड़ने की बात करें तो आप और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग पर बातचीत जारी है. लेकिन, कुछ महीने पहले के इतिहास को देखें तो उनकी भी स्थिति सवालिया निशान वाली रही है कि वह किस हद तक कांग्रेस का साथ देंगे. आम आदमी पार्टी का जन्म ही कांग्रेस विरोध के साथ हुआ है. इसके अलावा दिल्ली-पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच की राजनीतिक रार किसी से छिपी नहीं है. एक तरफ जिस शराब घोटाले की जांच की आंच सीएम केजरीवाल तक पहुंची थी, वह मामला कांग्रेस का उठाया हुआ था. वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया है. 

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जब सीएम केजरीवाल को सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया था तो उससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें कॉल किया था, लेकिन कर्नाटक विजय के बाद सीएम केजरीवाल उस लिस्ट में शामिल थे, जिन्हें सिद्धारमैया के शपथग्रहण समारोह में नहीं बुलाया गया था. इसे लेकर सौरभ भारद्वाज ने कहा था कि, इसमें क्या बड़ी बात है, कोई बुलाता है और कोई नहीं.' 

जब विपक्षी एकता और गठबंधन बनाने की बात चल ही रही थी, ठीक उसी समय केंद्र सरकार दिल्ली अध्यादेश ​विधेयक लेकर आई थी. ऐसे में जब आम आदमी पार्टी को गठबंधन में शामिल करने की बात आई थी तो केजरीवाल की ओर से कांग्रेस के सामने शर्त रखी गई थी. 23 जून को पटना में हुई राजनीतिक दलों की बैठक को लेकर आम आदमी पार्टी ने बयान जारी किया था. इसमें पार्टी की तरफ से कहा गया था कि जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से दिल्ली अध्यादेश का विरोध नहीं करती है और ये घोषणा नहीं करती है कि उसके सभी 31 राज्यसभा सांसद राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगे, तब तक आम आदमी पार्टी के लिए समान विचारधारा वाले दलों की भविष्य में होने वाली बैठकों में भाग लेना मुश्किल होगा, जिसमें कांग्रेस भी हिस्सा ले रही है.

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इसके बाद, जब विपक्षी एकता को लेकर पहले पटना और उसके बाद मुंबई अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली अध्यादेश ​विधेयक के विरोध में साथ देने का वादा किया और उसे निभाया, उसके बाद ही अरविंद केजरीवाल इंडिया अलायंस में शामिल हुए. केजरीवाल इस गठबंधन में शामिल तो हो गए, लेकिन सीट बंटवारे पर कांग्रेस और AAP में खींचतान तो लगातार ही दिखती रही है. 

अखिलेश यादवः कांग्रेस को ही बता दिए बीजेपी की टीम-बी
ठीक यही बात अखिलेश यादव के लिए भी फिट बैठती है. वह भी गठबंधन में शामिल हैं, लेकिन अभी हाल ही में हुए मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान उनके और कांग्रेस के बीच ऐसी तूतू-मैंमैं हुई कि इसे इंडिया गठबंधन के एक और बड़े झटके के तौर पर देखा गया. इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश के पू्र्व सीएम कमलनाथ पर तो हमला बोला ही था, इसके अलावा कांग्रेस पर भी जमकर बरसे थे.

नवंबर 2023 में तो उन्होंने यह भी कह दिया कि कांग्रेस ही बीजेपी की टीम-बी है. उन्होंने कहा था कि 'कांग्रेस नहीं चाहती है कि समाजवादी उनकी सहयोगी बने. आज कांग्रेस आम आदमी पार्टी के खिलाफ भी बोल रही है. अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस के पास मौका था कि छोटे दलों को साथ लेकर चलें, क्योंकि वो सोचते हैं कि जनता उनके साथ है, लेकिन PDA इसबार उनको जवाब देगा.

'अखिलेश यादव ने कमलनाथ पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस के घोषित मुख्यमंत्री के नाम में ही कमल लगा हुआ है. उनके नाम में ही बीजेपी का चुनाव चिन्ह है. प्रदेश के नेता इंडिया गठबंधन को तोड़ना चाहते हैं. प्रदेश के नेता दिल्ली के नेता के इशारों पर ही बोल रहे हैं. कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बी टीम के रूप में कार्य करती है.

इन बयानबाजियों के बाद भी अखिलेश अभी तक तो गठबंधन में बने हुए हैं, लेकिन कब तक? ये वक्त बताएगा. 

ममता बनर्जीः कांग्रेस के साथ दोराहे वाली स्थिति
अब एक बार फिर ममता की ओर चलते हैं. ममता बनर्जी जिन्होंने आज कांग्रेस पर बड़ा हमला बोला, वह पहले भी गठबंधन में रहते हुए कांग्रेस को छोटे-बड़े झटके देती रही हैं. विपक्षी एकता की बात होती है तो पूर्वी राज्य पं. बंगाल का जिक्र किए बिना ये पूरी नहीं हो सकती. सीएम ममता बनर्जी का रुख भी विपक्षी एकता को लेकर पहले बहुत क्लियर नहीं रहा है. उन्होंने कर्नाटक में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण में अपनी सांसद प्रतिनिधि को भेजने का फैसला किया था, जबकि वह इस कार्यक्रम में आमंत्रित थीं. 

उन्होंने कर्नाटक के सीएम के शपथग्रहण समारोह से दूरी बनाते हुए अपनी प्रतिनिधि को कार्यक्रम में भेजने का फैसला किया था. टीएमसी सांसद काकोली घोष दस्तीदार बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से कर्नाटक के मनोनीत मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के शपथग्रहण समारोह में शामिल हुई थी.

इससे पहले, सीएम ममता ने कहा था कि, जहां भी कांग्रेस मजबूत है, उन्हें लड़ने दीजिए. हम उन्हें समर्थन देंगे, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन उन्हें अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन करना होगा.’ ममता बनर्जी ने 2024 के चुनावों में कांग्रेस का समर्थन करने पर कहा था कि 'वे क्षेत्रों में कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते वे पश्चिम बंगाल में मेरा समर्थन करें. इसके अलावा कई मौकें पर टीएमसी और कांग्रेस में दोराहे वाली स्थिति नजर आती रही है.

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