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डेढ़ लाख KM की यात्रा, शहीदों के आंगन से ला रहे मिट्टी, भारत के नक्शे जैसा बनवाएंगे मेमोरियल, पढ़ें उस शख्स की कहानी

पुलवामा अटैक के दिन एक म्यूजीशियन ने प्रण लिया था. ऐसा प्रण कि जो कोई सैनिक ही कर सकता है लेकिन वह कोई सैनिक नहीं हैं. पांच साल से म्यूजिशियन देश के शहीदों के आंगन से मिट्टी इकट्ठा कर रहे हैं. इस मिट्टी से भारत के नक्शे के आकार का मेमोरियल बनवाने की कोशिश कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं उस म्यूजिशियन की पूरी कहानी.

शहीदों के घर की मिट्टी क्यों इकट्ठा कर रहा म्यूजिशियन? शहीदों के घर की मिट्टी क्यों इकट्ठा कर रहा म्यूजिशियन?
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 12:38 AM IST

उमेश गोपीनाथ जाधव की गाड़ी देखकर पहली बार ऐसा लगता है जैसे कार को बहुत मॉडिफाइड किया गया है. यह कार और उमेश गोपीनाथ दोनों ही 5 साल से एक मिशन पर निकले हुए हैं. यह मिशन है देश के शहीदों के परिवार से उनके आंगन की मिट्टी इकट्ठा करने का. उमेश की इस गाड़ी में देशभर के शहीदों के परिवारों से इकट्ठा की गई मिट्टी के कलश रखे हैं. आपको बताते चलें उमेश गोपीनाथ कोई सैनिक नहीं हैं और ना ही किसी सैनिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं, बल्कि पेशे से तो वो एक म्यूजिशियन थे लेकिन 2019 के पुलवामा अटैक के बाद उनकी जिंदगी बदल गई.

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‘डेढ़ लाख किलोमीटर की यात्रा कर 200 से ज्यादा शहीद परिवार तक पहुंचे’

उमेश अब तक डेढ़ लाख किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं. वह देश के 28 राज्यों और आठ यूनियन टेरिटरीज में भी जा चुके हैं. मकसद सिर्फ एक था कि उस इलाके के शहीद के घर से मिट्टी लाना है. उमेश बताते हैं कि वह 200 से ज़्यादा शहीदों के घर पहुंचे. शुरुआत उन्होंने पुलवामा अटैक में शहीद हुए शहीदों के घर से की थी. 

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उस वक्त 61 हजार किलोमीटर की यात्रा करके वह पुलवामा में शहीद हुए एक-एक परिवार के घर पहुंचे थे. उनके आंगन से मिट्टी लेकर आए. उस मिट्टी का इस्तेमाल पुलवामा के शहीदों के लिए बनाए गए मेमोरियल में किया गया, जोकि पुलवामा अटैक की लोकेशन के पास में ही बनाया गया है.

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‘वर्ल्ड वॉर-1 के शहीद और फील्ड मार्शल मानेकशॉ के घर से लाए मिट्टी’

पुलवामा में शहीद हुए शहीदों के घर से मिट्टी लेने के बाद भी उमेश रुके नहीं. उमेश ने वर्ल्ड वॉर एक से लेकर अब तक जितने भी युद्ध भारतीय सेना ने लड़े हैं उनके शहीदों के वो घर पहुंचे. इनमें वर्ल्ड वॉर-1 और वर्ल्ड वॉर-2 के अलावा 1947, 1965, 1971 के युद्ध, करगिल युद्ध, गलवान, उरी में शहीद हुए शहीदों के घर की मिट्टी भी उन्होंने इकट्ठा की हैं. वह देश के पहले फील्ड मार्शल मानेकशॉ और फील्ड मार्शल करियप्पा के घर के आंगन की मिट्टी भी लेकर आए हैं.

‘सेना से मिला सम्मान’

उमेश बताते हैं कि उन्होंने आज तक किसी भी कंपनी, एनजीओ या राजनीतिक पार्टी से इस काम के लिए मदद नहीं ली. उनकी इस मेहनत और समर्पण को सेना के भी लोगों ने पहचाना और उनकी मदद की. उमेश को एक जैकेट मिली जिसके ऊपर एक के बाद एक कई फॉर्मेशन साईन लगते चले गए.

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उमेश बताते हैं कि उन्हें सेना की हर यूनिट और हेडक्वार्टर के चीफ ने यह फॉर्मेशन साइन करके दिए हैं. इतना ही नहीं, उमेश की कार पर भी आप बहुत सारी ऐसी चीजें देखते हैं जो या तो सेना के बंकर और गाड़ियों में इस्तेमाल की जाती हैं या फिर उन चीजों का इस्तेमाल युद्ध के दौरान कोई फौजी करता है.

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‘किसी ने फ्री में खाना खिलाया तो किसी ने फ्री में ठीक कर दी गाड़ी’

उमेश बताते हैं कि यह यात्रा बहुत आसान तो नहीं रही लेकिन फिर भी उन्होंने अपने आपको एक फौजी की तरह मेंटली और फिजिकली तैयार कर लिया है, जो किसी भी मुसीबत से लड़ने के लिए तैयार रहता है. लोगों का बहुत ज्यादा प्यार भी मिलता है कभी कोई रेस्टोरेन्ट वाला खाने के पैसे नहीं लेता तो कभी कोई मकैनिक गाड़ी फ्री में ठीक कर देता है.

‘बाइकर्स कम्युनिटी ने कहा जहां जाएंगे शहीद परिवार को नमन करते आएंगे’

उमेश बताते हैं कि जब सफर शुरू किया था तब मुझे और मेरी पत्नी दोनों को लगा था कि मैं तीन महीने बाद वापस आ जाऊंगा लेकिन फिर सफर लंबा ही होता चला गया. एक साल बाद जब मैं पहली बार घर पहुंचा था तब मेरी पत्नी और बच्चे मुझे पहचान नहीं पा रहे थे. उमेश कहते हैं कि उनके दो बेटे हैं और बहुत खुशी है कि एक बेटा सेना में जाने की तैयारी कर रहा है. हाल ही में उसे NCC के बेस्ट कैडेट का अवार्ड भी मिला है. उमेश कहते हैं कि उनसे प्रभावित होकर कई बाइकर्स कम्युनिटी ने ये शपथ ली है कि वे अब अपनी ट्रिप के दौरान जहां भी जाएंगे उस इलाके के शाहीद परिवार से मिलने जरूर लेकर आएंगे.

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5 साल की अपनी यात्रा में उमेश ने जो मिट्टी इकट्ठा की है उसे वह भारत के नक्शे के आकार का एक मेमोरियल बनाना चाहते हैं. उमेश को उम्मीद है कि जल्द ही यह सपना भी साकार हो जाएगा. उमेश कहते हैं कि उनकी ख्वाहिश है कि देश का हर नागरिक अपने शहीदों को जरूर याद रखें और उनके परिवार से मिलता रहे. उन्हें एहसास दिलाता रहे कि उनके बेटे ने देश के लिए जो किया उसके लिए देश उन्हें हमेशा सैल्यूट करता रहेगा.

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