
6 राजपूताना राइफल्स में पीरू सिंह शेखावत कंपनी हवलदार मेजर थे. 1947 में ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फोर्स की तरफ से जापान के खिलाफ जंग लड़ रहे थे. विभाजन के समय देश वापस आ गए थे. कुछ दिन बाद जुलाई 1948 में पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के तिथवाल सेक्टर में भयानक हमला किया. पाकिस्तानी फौजियों ने 8 जुलाई को रिंग कॉन्टोर पर कब्जा कर लिया. इसकी वजह से किशनगंगा नदी के पास मौजूद भारतीय फौज को पीछे हटना पड़ा.
किशनगंगा नदी के पास के पोस्ट को फिर कब्जा करने पीरू सिंह शेखावत राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन के साथ उरी से तिथवाल रवाना हुए. उन्हें 163वीं ब्रिगेड में अटैच किया गया था. पीरू सिंह और उनके साथियों ने तिथवाल ब्रिज पर पोजिशन संभाली. 11 जुलाई को भारतीय फौज ने ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी फौज के पोस्ट पर हमला शुरु किया. चार दिन तक दोनों तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग चलती रही. लेकिन पाकिस्तानी ऐसी जगह बैठे थे कि उनका कुछ भी बिगाड़ना मुश्किल हो रहा था.
ऊंचाई वाली जगह पर बैठ कर निशाना लगा रहे थे PAK फौजी
ये पोस्ट ऐसी थी कि बिना इसे कब्जा किए भारतीय सेना आगे नहीं बढ़ सकती थी. ऊपर की तरफ दो पोस्ट पर कब्जा करना जरूरी था. राजपूताना राफल्स की दो कंपनियां 'सी' और 'डी' को दोनों पोजिशन पर कब्जा करने का आदेश दिया गया. डी कंपनी में ही पीरू सिंह शेखावत थे. उनकी कंपनी ने 18 जुलाई को देर रात डेढ़ बजे पाकिस्तानी पोस्ट पर हमला शुरु किया. उस पोस्ट तक जाने का रास्ता सिर्फ 1 मीटर चौड़ा था. दूसरी तरफ गहरी खाईं थी. ऊपर पाकिस्तानी पोस्ट से लगातार फायरिंग और ग्रैनेड के हमले हो रहे थे. भारतीय फौजी ऊपर जा नहीं पा रहे थे.
आधे घंटे में 51 भारतीय फौजी शहीद, तगड़ा हमला मशीन गन से
पाकिस्तानी ऊपर से इतना घातक हमला कर रहे थे कि आधे घंटे में ही 51 भारतीय फौजी शहीद या घायल हो गए. पीरू सिंह का सेक्शन जो इस डी कंपनी को लीड कर रहा था, उसके भी आधे सैनिक गंभीर रूप से जख्मी हो चुके थे. सबसे तगड़ा हमला पाकिस्तान की उस पोस्ट से हो रहा था जहां पर मीडियम मशीन गन लगी थी. उस मशीन गन की गोलियां भारतीय फौजियों को आराम से निशाना लगाकर मार रही थी. पीरू सिंह ने इस पोस्ट पर सबसे पहले हमला बोला. वो तेजी से मशीन गन पोस्ट की ओर बढ़े. ऊपर से पाकिस्तानियों ने उनपर कई बार ग्रैनेड्स से हमले किए. कई उनके आसपास ही फटे. ग्रैनेड्स के छर्रों ने उनके शरीर को छलनी कर दिया था.
पीरू सिंह ने खंजर और स्टेन गन से बरसाई पाकिस्तानियों पर मौत
लेकिन वो 'राजा रामचंद्र की जय' का बैटलक्राई लगाते हुए उस पोस्ट के नजदीक पहुंच गए, जो मशीन गन वाली पोस्ट से पहले थी. उन्होंने उस पोस्ट पर अपनी खंजर और स्टेन गन से ऐसा भयावह हमला बोला कि पाकिस्तानियों की हालत खराब हो गई. उस पोस्ट पर मौजूद सभी पाकिस्तानियों को मार डाला. उन्होंने जब इस पोस्ट पर कब्जा करके पीछे की ओर देखा तो पता चला कि उनके सारे साथी मारे जा चुके हैं या घायल हैं. वो इस पोस्ट को जीतने की खुशी भी नहीं मना सकते थे. अपनी पूरी कंपनी में अकेले बचे थे.
शहादत से पहले दो पाकिस्तानी पोस्ट पर अकेले ही किया कब्जा
पीरू सिंह रुके नहीं. उन्होंने मीडियम मशीन गन वाली पाकिस्तानी पोस्ट की ओर आगे बढ़ना शुरु किया. तभी उनके चेहरे के पास एक ग्रैनेड फटा. जिससे वो बुरी तरह जख्मी हो गए. उनकी आंखों से खून निकल रहा था. उनके स्टेन गन की गोलियां खत्म हो गई थीं. वो अगले हमले से बचने के लिए एक गड्ढे में कूदे. वहां से उन्होंने पाकिस्तानी पोस्ट की तरफ अपनी धुंधली दृष्टि के साथ ग्रैनेड्स फेंके. इस दौरान उन्होंने दूसरे गड्ढे में कूदकर दो पाकिस्तानी फौजियों को अपनी खंजर से मौत के घाट उतार दिया. इस गड्ढे से बाहर निकलने ही वाले थे कि एक गोली उनके सिर में लगी. लेकिन उससे पहले उन्होंने एक ग्रैनेड मशीन गन वाली पोस्ट पर फेंक दिया था. उधर से गोली आई, इधर से ग्रैनेड गया. दोनों ने एक साथ काम किया. पीरू सिंह शहीद हो गए लेकिन पोस्ट अब पाकिस्तानियों से मुक्त था. 17 जुलाई को पीरू सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया.
राजस्थान से कश्मीर तक पीरू सिंह का नाम सम्मान से लिया जाता है
बहादुरों की मिट्टी वाले राजस्थान के झुंझुनू में रामपुरा बेरी गांव में 20 मई 1918 को एक राजपूत परिवार में पैदा हुए पीरू सिंह की चार बहने और तीन भाई थे. पीरू सबसे छोटे थे. स्कूल जाने का मन नहीं होता था. एक दिन टीचर ने किसी बच्चे से झगड़ा करने के लिए पीरू सिंह को बहुत डांटा. उसके बाद पीरू कभी स्कूल नहीं गए. अपने पिता लाल सिंह के साथ खेतों में मदद करते थे. पीरू हमेशा से सेना में भर्ती होना चाहते थे. दो बार रिजेक्ट भी हुए क्योंकि वो भर्ती होने के लिए उम्र से पहले पहुंच गए थे. लेकिन 18 साल के होते ही उन्हें सेना में शामिल कर लिया गया.
20 मई 1936 को पहले पंजाब रेजिमेंट में किया था ज्वाइन
झेलम में मौजूद पहले पंजाब रेजिमेंट में पीरू सिंह शेखावत की ज्वाइनिंग हुई थी. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1 मई 1937 को उन्हें उसी रेजिमेंट की पांचवीं बटालियन में भेज दिया गया था. उन्होंने फिर सेना में पढ़ाई शुरु की. इंडियन आर्मी क्लास सर्टिफिकेट ऑफ एजुकेशन पास किया. कुछ और टेस्ट देकर 1940 में लांस नायक बन गए. 1942 में हवलदार बना दिए गए. 1945 में कंपनी हवलदार मेजर बनाए गए. द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद उन्हें ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्युपेशन फोर्स में शामिल करके जापान भेजा गया था.