
भारत में 13500 करोड़ के पीएनबी घोटाले में वॉन्टेड हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को डोमिनिका से लाने की कोशिशें आजकल सुर्खियों में हैं. सीबीआई-ईडी जैसी कई एजेंसियों की टीमें डोमिनिका में डेरा डाले हुए हैं. भारत से घोटाले के खुलासे के बाद भागने, एंटीगुआ में शरण लेने, वहां की नागरिकता लेने और अब डोमिनिका में पकड़े जाने के बाद भी उसे वापस लाने के लिए मुश्किल राह बताती है कि दुनिया में कई सेफ हैवेन ऐसे आर्थिक अपराधियों के लिए गढ़ क्यों बने हुए हैं और इनपर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का कोई असर नहीं है.
मामला केवल मेहुल चोकसी का नहीं है बल्कि विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी जैसे और न जानें कितने आरोपी हैं जो देश में घोटालों और आर्थिक अपराध के आरोपी हैं लेकिन किसी और देश में शरण लेकर आराम की जिंदगी जी रहे हैं. इन्हें न्याय के कठघरे तक लाने की कोशिशें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और कानूनों के जाल में फंसकर रह जा रही हैं और जांच कई-कई सालों तक कछुए की चाल से चलती रहती हैं.
भारत में सिस्टम को घुन की तरह खोखला कर यहां से फरार होकर किसी और देश में पनाह लिए हुए ऐसे लोगों की लिस्ट छोटी नहीं है बल्कि अंतहीन है.
कैसे चोकसी और नीरव मोदी पकड़ से हैं दूर?
2018 के पीएनबी घोटाले के बाद मेहुल चोकसी और नीरव मोदी को फरार हुए करीब 3 साल हो गए हैं. इस घोटाले के खुलासे से कुछ दिन पहले ही जनवरी 2018 में ये दोनों कारोबारी देश छोड़कर जा चुके थे. नीरव मोदी ने ब्रिटेन में शरण ली और मार्च 2019 में गिरफ्तारी के बाद से वहां की जेल में है. ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि होने के बावजूद नीरव मोदी को लाने की कोशिशें महीनों से लटकी हुई हैं. कभी वहां की अदालत तो कभी गृह विभाग से उसे राहत मिल जाती है.
इसी तरह देश से भागने के बाद मेहुल चोकसी ने कैरेबियाई देश एंटीगुआ की राह पकड़ी और वहां हजारों डॉलर के निवेश के नियम का फायदा उठाकर नागरिकता ले ली. अब पड़ोसी देश डोमिनिका में पकड़े जाने के बाद उसे देश लाने की कोशिशें एजेंसियां कर रही हैं. खास बात ये है कि एंटीगुआ के साथ प्रत्यर्पण को लेकर व्यवस्था होने के बावजूद उसे लाने में 3 साल में सफलता नहीं मिली है. अब मामला डोमिनिका की कोर्ट में है. डोमिनिका के साथ तो भारत का प्रत्यर्पण संधि तक नहीं है.
माल्या की माया और विदेशी नागरिकता का खेल!
कुछ ऐसी ही कहानी किंगफिशर के मालिक और कभी कारोबार की दुनिया में किंग ऑफ गुड टाइम्स कहे जाने वाले विजय माल्या की भी है. हजारों करोड़ के लोन गबन के मामले के खुलासे से पहले साल 2016 में माल्या ब्रिटेन भाग गया. खुलासा हुआ कि माल्या के पास ब्रिटेन की नागरिकता है. ब्रिटेन की अदालत ने 2018 में माल्या को भारत प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया लेकिन वहां की अदालत में एक के बाद एक याचिकाओं के जरिए माल्या इन कोशिशों को अबतक फेल करता आया है.
ललित मोदी केस में भी वर्षों का इंतजार
इसी तरह, क्रिकेट को आईपीएल जैसे मलाईदार टूर्नामेंट देने वाले ललित मोदी को देश लाने के लिए भी वर्षों से एजेंसियां कोशिश कर रही हैं. भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपों के बाद 2010 में ललित मोदी ने देश छोड़ दिया था. फिलहाल ललित मोदी ब्रिटेन में है और वापसी की कोशिशें जारी हैं.
माल्या-मेहुल चोकसी और नीरव मोदी से पहले भी विदेशों से आर्थिक अपराध के आरोपी भगोड़ों को लाने की कोशिशों में भारतीय एजेंसियों को बहुत सफलता नहीं मिली है. आरटीआई से मिली एक जानकारी के मुताबिक पिछले 5 साल में सिर्फ दो आर्थिक अपराधियों को विदेश से लाया जा सका है. पिछले साल संसद में सरकार ने खुद जानकारी दी थी कि 72 भारतीयों के खिलाफ इस तरह के मामलों की जांच जारी है जिनपर आर्थिक अपराध के आरोप हैं और उन्होंने विदेशों में कहीं और पनाह ले रखी है.
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सिर्फ 58 देशों से प्रत्यर्पण संधि
दुनिया में आज के वक्त में 215 के करीब देश हैं. जिनमें से सिर्फ 58 देशों से भारत की प्रत्यर्पण संधि है. यानी कि अगर कोई वॉन्टेड व्यक्ति इन देशों में पनाह लेता है तो उन देशों से अदला-बदली को लेकर संधि है. हालांकि, उसमें भी नियम-कानून, स्थानीय नियमों और प्रोसेस को लेकर तमाम दिक्कतें हैं. लेकिन बाकी देशों के लिए इंटरपोल के जरिए देश की एजेंसियों को जाना होता है. जो ज्यादा से ज्यादा अपने सदस्य देशों को संबंधित व्यक्ति के संबंध में नोटिस भेजकर अलर्ट कर सकता है. सीधी कार्रवाई का किसी और संस्था को कोई अधिकार नहीं है.
पिछले पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें तो इंटरपोल की ओर से भारत के भगोड़े आर्थिक अपराधियों को लेकर 313 रेड नोटिस जारी किए गए जबकि सिर्फ दो आर्थिक अपराधियों को देश वापस लाया जा सका.
भारत की तुलना में कई देश प्रत्यर्पण संधियों में कहीं आगे हैं. भारत के 58 की तुलना में अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देशों की 100 से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियां हैं. यहां तक कि चीन-पाकिस्तान और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है जिस कारण यहां से अपराध कर चुपके से ये आरोपी पड़ोसी देशों के रास्ते निकल जाते हैं और संधि के अभाव में इन्हें लाना संभव नहीं हो पाता.
चोकसी-माल्या से आगे अंतहीन सिलसिला
फरवरी 2020 में सरकार ने संसद में ये जानकारी दी थी कि 72 ऐसे भारतीय हैं जिनपर आर्थिक अपराध के आरोप हैं और इन्हें विदेशों से लाने की कोशिशें हो रही हैं. जो दो भारतीय वापस देश लाए जा सके हैं उनके नाम हैं विनय मित्तल और सनी कालरा. विनय मित्तल को 2018 में इंडोनेशिया से भारत प्रत्यर्पित किया गया. इसपर 7 बैंकों के 40 करोड़ रुपये के गबन का आरोप है. वहीं सनी कालरा को मार्च 2020 में सीबीआई देश लेकर आई. इसपर पीएनबी के 10 करोड़ के लोन के गबन का केस था.
भारत में वॉन्टेड बड़े नाम जिनकी वापसी को लेकर लोगों में कौतुहल रहता है वो हैं- विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी, नितिन संदेसरा. इसके अलावा जो आरोपी एजेंसियों की पकड़ से बाहर हैं उनमें- नीशाल मोदी, ललित मोदी, दीप्ति सी. संदेसरा, संजय कालरा, एस. के. कालरा, आरती कालरा, वर्षा कालरा, उमेश पारेख, कमलेश पारेख, नीलेश पारेख, आशीष जोबेनपुतरा, प्रीति आशीष जोबेनपुतरा, हितेश एन. पटेल, मयूरी पटेल, राजीव गोयल, अल्का गोयल, पुष्पेश बैद, जतिन मेहता, एकलव्य गर्ग, सव्या सेठ और रितेश जैन जैसे तमाम क्षेत्र से जुड़े कारोबारियों और उनके पारिवारिक सदस्यों के नाम शामिल हैं जो आर्थिक मामलों के खुलासों के बाद से दूसरे देशों में शरण लिए हुए हैं और भारतीय कानूनी कार्यवाही से दूर हैं.
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क्या हैं सेफ हैवेन और कैसे मिलती है इन्हें शरण?
भारत ही नहीं, कई देशों से भागे हुए लोगों के लिए कुछ देश सेफ हैवेन का काम करते हैं. सेफ हैवेन ऐसे देशों को कहा जाता है जहां कुछ हजार डॉलर के निवेश के जरिए नागरिकता हासिल की जा सकती है या हवाला के जरिए ले जाकर अपने काले धन का बेधड़क निवेश ये भगोड़े करते हैं. जैसे कि मेहुल चोकसी ने एंटीगुआ में लग्जरी प्रॉपर्टी खरीदकर गोल्डन पासपोर्ट हासिल कर किया. ऐसे भगोड़ों और उनके काले धन के लिए ब्रिटेन, एंटीगुआ-डोमिनिका जैसे कैरेबिया के कई देश, चेक रिपब्लिक, पनामा जैसे कई यूरोपीय और स्कैंडिनेवियन देश सेफ हैवेन का काम करते हैं.
यहां नियम इतने उदार हैं कि विदेशों से काला धन छुपाने के लिए सेफ जगह माना जाता है. अधिकांश देशों से इनकी प्रत्यर्पण संधि भी नहीं है और ना ही ये निवेश को लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से जानकारी साझा करते हैं. इससे ये देश भगोड़े लोगों के लिए सेफ ठिकाने बने हुए हैं.
वो बड़े नाम जिन्हें वापस लाने में मिली सफलता
हालांकि अगर गौर किया जाए तो कुछ मामलों में एजेंसियों को सफलता भी मिली हैं. जिन 58 देशों से प्रत्यर्पण संधियां हैं वहां से कई क्रिमिनल केस के आरोपियों को लाने में सफलता भी मिली हैं.
-अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा राजन को कई सालों की कोशिशों के बाद नवंबर 2015 में इंडोनेशिया से प्रत्यर्पित किया गया.
-अगस्ता केस के सहआरोपी राजीव सक्सेना को कॉरपोरेट लाबिस्ट दीपक तलवार के साथ 2019 में संयुक्त अरब अमीरात से लाने में सफलता मिली.
-अगस्ता केस के बिचौलिए ब्रिटिश नागरिक क्रिस्टियन माइकल जेम्स को 2018 में यूएई से प्रत्यर्पित करने में सफलता मिली.
-फ्रॉड और आपराधिक मामलों में आरोपी मोहम्मद याहया को अक्टूबर 2018 में इंडोनेशिया से लाने में एजेंसियों को सफलता मिली.
-आतंकी मामलों में वॉन्टेड मंसूर उर्फ फार्रुख टकला को 2018 में यूएई से लाया गया.
-इसी तरह रोमानिया में नागरिकता ले चुके मरिनोइउ मोहम्मद फार्रूख यासीन को बैंक फ्रॉड केस में मार्च 2018 में निकारागुआ से लाया गया.
-हत्या की कोशिश के मामले में वॉन्टेड कुमार कृष्ण पिल्लई को जून 2016 में सिंगापुर से लाया गया.
-इसी तरह जनवरी 2015 में मर्डर केस के आरोपी जगतार सिंह तारा को थाइलैंड से लाने में एजेंसियों को सफलता मिली.
मर्डर, आतंकवाद और बड़े आपराधिक मामलों में कई आरोपियों को देश लाने में एजेंसियों को सफलता मिली है वो भी कई साल की कोशिशों के बाद. लेकिन आर्थिक अपराध और करप्शन के आरोपियों को लाने में सेफ हैवेन बाधा बने हुए हैं और एजेंसियों की कोशिशें भी अनवरत जारी हैं.