
Indian Railways: कुछ घटनाएं हमारे जीवन में प्रतिदिन होती हैं, लेकिन हम उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. हालांकि, कभी-कभी अचानक से हमारे दिमाग में उससे जुड़े कुछ सवाल आते हैं और हम उसके बारे में जानने को व्याकुल हो जाते हैं. ऐसा ही एक सवाल है कि एक चलती ट्रेन अचानक से पटरी कैसे बदल लेती है और दूसरे ट्रैक पर चली जाती है. हम आपको इसके पीछे कि पूरी तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं, आखिर ये कैसे काम करता है
लोको पायलट देता है निर्देश
दरअसल, रेलवे स्टेशन के पावर रूम से ट्रैक बदलने के निर्देश लोको पायलट द्वारा दिये जाते हैं. ट्रेन कब और किस ट्रैक पर जाएगी. उसे किस पटरी पर भेजना है. ये सारे काम लोको पायलट की तरफ से कंट्रोल रूम से किया जाता है.
ऐसे बदलता है ट्रेनों का ट्रैक
आसान भाषा में अगर आपको समझाएं तो दो पटरियों के बीच एक स्विच होता है, जिसकी मदद से दोनों पटरियां एक दूसरे जु़ड़ी हुई होती हैं. जब ट्रेन के ट्रैक को बदलना होता है तो कंट्रोल रूम में बैठा लोको पायलट वहां से ऑपरेट करता है. वहां से कमांड मिलने के बाद पटरियों पर लगें दोनों स्विच ट्रेन की मूवमेंट को राइट औ लेफ्ट की तरफ मोड़ते हैं और पटरियां चेंज हो जाती हैं.
अधिकतर ट्रेनों की पटरियां रेलवे स्टेशन के पास चेंज की जाती है
बता दें कि ज्यादातर ट्रेनों के ट्रैक रेलवे स्टेशन्स के पास ही बदले जाते हैं. यहां ट्रेनों का ट्रैफिक ज्यादा होता है. ट्रेनों को पास देने में या फिर अलग-अलग प्लेटफार्म पर ट्रेन को रोकने के लिये ही ट्रैक चेंज किया जाता है.
लाइन चेंज करने के बाद लोको पायलट की तरफ से कंट्रोल रूम से सिग्नल दिया जाता है, तभी ट्रेन को स्टेशन के अंदर आने की अनुमति मिलती है. सिग्नल के बाद ही ट्रेन का ड्राइवर ट्रैक चेंज करने के बाद ये समझ जाता है कि आखिर कौन से प्लेटफॉर्म पर गाड़ी को रोकना है.