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'सिर्फ विषमलैंगिक ही अच्छे पेरेंट्स हो सकते हैं जरूरी नहीं...', समलैंगिकता पर SC के फैसले की 10 बड़ी बातें

सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. SC कानून बनाने पर साफ कहा कि यह हमारे अधिकार में नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं. कोर्ट ने कहा कि LGBT पर्सन की सुरक्षा के लिए भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता है.

सेम सेक्स मैरिज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. सेम सेक्स मैरिज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है.
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST

सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा, ये संसद के अधिकार क्षेत्र में है. हालांकि, कोर्ट ने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है. इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं. 

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SC ने कानून बनाने पर साफ कहा कि यह हमारे अधिकार में नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं. कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के. सीजेआई ने कहा, अदालत कानून नहीं बना सकता है, लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है. फैसले के दौरान सीजेआई और जस्टिस भट ने एक-दूसरे से असहमति जताई. कोर्ट ने कहा, LGBT पर्सन की सुरक्षा के लिए भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता है.

'हमारा उद्देश्य नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं'

सीजेआई का कहना था कि निर्देशों का उद्देश्य कोई नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं है. वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं. CJI ने कहा, एक समलैंगिक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत क्षमता में ही गोद ले सकता है. इसका प्रभाव समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करने पर पड़ता है. विवाहित जोड़ों को अविवाहित जोड़ों से अलग किया जा सकता है.

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CJI ने कहा कि मुझे जस्टिस रवींद्र भट्ट के फैसले से असहमति है. जस्टिस भट्ट के निर्णय के विपरीत मेरे फैसले में दिए गए निर्देशों के परिणामस्वरूप किसी संस्था का निर्माण नहीं होता है, बल्कि वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं. मेरे भाई जस्टिस भट्ट भी स्वीकार करते हैं कि राज्य यानी शासन समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव कर रहा है. वो उनकी दुर्दशा को कम करने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है.
 

सीजेआई के फैसले में बड़ी बातें...

1. समलैंगिक जोड़े संयुक्त रूप से बच्चा गोद ले सकते हैं. आगे कमेटी विचार करेगी. राशन कार्ड, बैंक खाते, आयकर अधिनियम के तहत वित्तीय लाभ, ग्रेच्युटी, पेंशन जैसे सामाजिक लाभ के संबंध में कमेटी तय करेगी. 
2. हम समलैंगिक व्यक्तियों के अधिकारों पर विचार करने के लिए मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों समेत एक कमेटी गठित करने के केंद्र के सुझाव को स्वीकार करते हैं.
3. कमेटी इस बात पर विचार करेगी कि क्या समलैंगिक पाटनर्स को राशन कार्ड, चिकित्सा निर्णय, जेल यात्रा, शव प्राप्त करने के अधिकार के तहत एक परिवार का सदस्य माना जा सकता है.
4. कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सुझाव लागू किए जाएंगे.
5. केंद्र और राज्य सरकार इस बात का ध्यान रखे कि समुदाय के खिलाफ किसी भी तरह का भेदभाव ना हो.
6. CJI ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इनके लिए सेफ हाउस, डॉक्टर के ट्रीटमेंट, एक हेल्पलाइन फोन नंबर... जिस पर वो अपनी शिकायत कर सकें.
7. सामाजिक भेदभाव ना हो, पुलिस उन्हे परेशान ना करे. अगर घर नहीं जाना चाहते हैं तो जबरदस्ती घर ना भेजा जाए.
8. कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं. इस प्रकार विनियमन को समलैंगिक समुदाय के लिए उल्लंघनकारी माना जाता है.
9. समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करें. समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएं. समलैंगिक जोड़े के लिए सुरक्षित घर बनाएं.
10. सुनिश्चित करें कि अंतर-लिंगीय बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर नहीं किया जाए. किसी भी व्यक्ति को किसी भी हार्मोनल थेरेपी से गुजरने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.

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'जीवन साथी चुनने का अधिकार दे रही कोर्ट'

सीजेआई ने यह भी कहा, यह ध्यान दिया गया है कि विवाहित जोड़े से अलग होना प्रतिबंधात्मक है क्योंकि यह कानून द्वारा विनियमित है लेकिन अविवाहित जोड़े के लिए ऐसा नहीं है. यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा. सीजेआई ने कहा, यह अदालत आदेश के माध्यम से सिर्फ एक समुदाय के लिए शासन नहीं बना रही है, बल्कि जीवन साथी चुनने के अधिकार को मान्यता दे रही है. घर की स्थिरता कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, जिससे स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनता है और स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है.

सीजेआई के फैसले का निष्कर्ष क्या है?

- इस न्यायालय को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है।
- क्वीर एक प्राकृतिक घटना है जो भारत में सदियों से ज्ञात है. यह न तो शहरी है और न ही संभ्रांतवादी.
- विवाह स्थिर नहीं है.

'केंद्र सरकार के सुझाव पर सहमत हुआ सुप्रीम कोर्ट'

सीजेआई ने कहा, हम सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल के बयान पर जा रहे हैं कि इस मसले पर अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जो सभी हितधारकों ये साथ बात करेगी. CJI का कहना है कि एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह को विनियमित करने में राज्य का वैध हित है और अदालत विधायी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है और उसे एक कानून के माध्यम से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का निर्देश नहीं दे सकती है.

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कमेटी किन मसलों पर विचार करेगी?

- राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करना.
- समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खाते के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाना.
 पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकार.

जस्टिस कौल ने क्या कहा...

- जस्टिस कौल ने भी सीजेआई के फैसले का पक्ष लिया और कहा, कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव नहीं कर सकता. यह सरकार का काम है. समलैंगिक समुदाय की सुरक्षा के लिए उपयुक्त ढांचा लाने की जरूरत है. समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाएं. समलैंगिकों से भेदभाव पर अलग कानून बनाने की जरूरत है.
- जस्टिस एसके कौल ने कहा, मैं मोटे तौर पर सीजेआई से सहमत हूं. अदालत बहुसंख्यक नैतिकता की लोकप्रिय धारणा से नाराज नहीं हो सकती है. प्राचीन काल में समान लिंगों को प्यार और देखभाल को बढ़ावा देने वाले रिश्ते के रूप में मान्यता प्राप्त थी. कानून सिर्फ एक प्रकार के संघों को विनियमित करते हैं- वह है विषमलैंगिक संघ.
- कौल ने कहा, गैर विषमलैंगिक संघों को संरक्षित करना होगा. समानता सभी के लिए उपलब्ध होने के अधिकार की मांग करती है. विवाह से मिलने वाले अधिकार कानूनों के लौकिक मकड़जाल में फैले हुए हैं. गैर विषमलैंगिक और विषमलैंगिक संघों को एक ही सिक्के के दो पहलू माना जाना चाहिए.

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जस्टिस भट ने क्या कहा...

- सीजेआई द्वारा निकाले गए निष्कर्षों और निर्देशों से सहमत नहीं हूं. हम इस बात से सहमत हैं कि शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. स्पेशल मैरिज एक्ट असंवैधानिक नहीं है. विषमलैंगिक संबंधों के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को SMA के तहत शादी करने का अधिकार है.जस्टिस भट्ट ने कहा कि कुछ जगहों पर मैं और जस्टिस पीएस नरसिम्हा सीजेआई के फैसले से मतभिन्नता रखते हैं.

सीजेआई ने और क्या कहा है...

- ऐसे रिश्तों के पूर्ण आनंद के लिए ऐसे संघों को मान्यता की आवश्यकता है और बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है.  यदि राज्य इसे मान्यता नहीं देता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है.
- किसी यूनियन में शामिल होने का अधिकार किसी भी हिस्से या देश में बसने के अधिकार पर आधारित है. एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति विषमलैंगिक रिश्ते में है, ऐसे विवाह को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है.
-  चूंकि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति विषमलैंगिक रिश्ते में हो सकता है. एक ट्रांसमैन और एक ट्रांसवुमन के बीच या इसके विपरीत संबंध को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकृत किया जा सकता है. ट्रांसजेंडर शादी कर सकते हैं. एक ट्रांसजेंडर पुरुष किसी महिला से शादी कर सकता है और इसके विपरीत भी.
- अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से बाहर नहीं रखा गया है, लेकिन नियम 5 यह कहकर उन्हें रोकता है कि जोड़े को 2 साल तक स्थिर वैवाहिक रिश्ते में रहना होगा.
- जेजे अधिनियम अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से नहीं रोकता है, लेकिन सिर्फ तभी जब CARA इसे नियंत्रित करता है लेकिन यह JJ अधिनियम के उद्देश्य को विफल नहीं कर सकता है. CARA ने विनियम 5(3) द्वारा प्राधिकार को पार कर लिया है.
- अगर अदालत LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को विवाह का अधिकार देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 को पढ़ती है या इसमें कुछ शब्द जोड़ती है, तो यह विधायी क्षेत्र में प्रवेश कर जाएगा. मनुष्य जटिल समाज में रहते हैं. एक-दूसरे के साथ प्यार और जुड़ाव महसूस करने की हमारी क्षमता हमें इंसान होने का एहसास कराती है.
- अपनी भावनाओं को साझा करने की आवश्यकता हमें वह बनाती है जो हम हैं. ये रिश्ते कई रूप ले सकते हैं, जन्मजात परिवार, रोमांटिक रिश्ते आदि. परिवार का हिस्सा बनने की आवश्यकता मानव गुण का मुख्य हिस्सा है और आत्म विकास के लिए महत्वपूर्ण है.

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5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की थी. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे.

'समान अधिकार दिए जाने की मांग उठाई थी'

इससे पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि भारत में विवाह आधारित संस्कृति है और LGBT कपल को अन्य वैवाहिक जोड़ों की तरह समान अधिकार दिए जाने चाहिए. वित्तीय, बैंकिंग और बीमा, पति/पत्नी का स्टेटस, जिंदगी से जुड़े निर्णय, विरासत, उत्तराधिकार और यहां तक कि गोद लेना और सरोगेसी का भी अधिकार मिलना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विदेशी विवाह अधिनियम के तहत मैरिज रजिस्ट्रेशन को भी मान्यता देने की मांग की, जिसमें पाटनर्स में से एक विदेशी है. उन्होंने भारतीय संविधान के प्रावधानों, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के साथ-साथ LGBTQIA पर्सन को समान अधिकार देने वाले अन्य देशों में पारित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और कानूनों का हवाला दिया था.

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'विशेषज्ञों की कमेटी बनाने के लिए तैयार है सरकार'

हालांकि, इस मामले में केंद्र सरकार शुरू से अंत तक समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग का विरोध करती रही है. सरकार का कहना था कि ये ना सिर्फ देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 160 प्रावधानों में बदलाव करना होगा और पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी. इससे पहले सुनवाई के दौरान बेंच ने एक बार यहां तक कहा था कि बिना कानूनी मान्यता के सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? यानी बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा बच्चा गोद लेने आदि के लिए सरकार संसद में क्या कर सकती है? सरकार ने भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने के लिए तैयार है.

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