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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर परिसीमन (Delimitation) को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया. जस्टिस एसके कॉल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के तर्क सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा.
केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के फैसले का बचाव किया. लेकिन इस फैसले को अदालत में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना है कि परिसीमन की प्रक्रिया का सही तरीके से पालन नहीं किया गया. देश के बाकी हिस्सों में लागू नियमों का पालन करने के बजाए जम्मू-कश्मीर को अलग-थलग कर दिया गया.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कानूनों के प्रावधानों को चुनौती नहीं दी है. उन्होंने कहा कि भारत के संविधान को देखें. याचिकाकर्ता ने संवैधानिक चुनौती नहीं दी है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले भी संवैधानिक रूप से तय विधायकों की संख्या को पुनर्गठन अधिनियमों के तहत पुनर्गठित किया गया था. सॉलिसिटर जनरल ने परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है. जम्मू-कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था.
याचिका में सवाल उठाया गया था कि इसे केवल जम्मू-कश्मीर पर ही लागू क्यों किया गया और उत्तर-पूर्वी राज्यों को क्यों छोड़ दिया गया? मेहता ने इसका जवाब देते हुए कहा कि 2019 में उत्तर-पूर्वी इलाकों में भी परिसीमन लागू हो गया है. लेकिन उस वक्त उत्तर-पूर्वी राज्यों मे आंतरिक अशांति की वजह से परिसीमन नहीं हो सका.
चुनाव आयोग के वकील ने धारा 3 के अनुसार केंद्र सरकार के पास परिसीमन आयोग के गठन की का क्या हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि जहां तक सीटों की संख्या में वृद्धि का सवाल है. इसे लेकर आपत्ति उठाने के लिए लोगों को पर्याप्त अवसर दिया गया था. चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 10 (2) के अनुसार परिसीमन आदेश अब कानून बन चुका है.
मालूम हो कि 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. परिसीमन के मुताबिक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र शासित प्रदेश में परिसीमन के फैसले को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि यह परिसीमन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट 2019 की धारा 63 और संविधान के अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और 332 के खिलाफ है.