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'जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं...' अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अनुच्छेद 370 की वैधता को बरकरार रखा है और सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा खत्म करने का राष्ट्रपति का आदेश वैध था. कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है.

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. (फाइल फोटो) अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है. कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति का फैसला संवैधानिक तौर पर वैध था. अनुच्छेद 370 अस्थायी था. संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू होंगे. कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति को फैसला लेने का पूरा अधिकार है. उनके पास संवैधानिक शक्तियां हैं. जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है. पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया. जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा...

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बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय लिया था. केंद्र के इस फैसले के बाद जम्मू से विशेष राज्य का दर्जा छिन गया था और यह केंद्र के अधीन आ गया था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. फिलहाल, आज यह साफ हो गया है कि केंद्र का फैसला संवैधानिक रूप से वैध था. केंद्र सरकार का कहना है कि सही समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा. 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद अमन और शांति आई है. विकास कार्य भी तेजी से होने लगे हैं. आतंकी घटनाओं में कमी आई है. युवाओं को रोजगार की तरफ आकर्षित देखा जा रहा है. शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव आया है. स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एम्स बनाए जा रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा...

- सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, अनुच्छेद 370 एक 'अस्थायी प्रावधान' है. राष्ट्रपति के पास इसे खत्म करने का अधिकार था. अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है.
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का राष्ट्रपति का 2019 का आदेश वैध था. राज्य का दर्जा भी जल्द बहाल किया जाएगा.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जम्मू कश्मीर में सितंबर 2024 तक चुनाव कराए जाएंगे. यानी सरकार को 9 महीने के अंदर चुनाव कराने होंगे. हालांकि, सरकार ने भी एक बयान में कहा है कि वो चुनाव कराने के लिए तैयार है. चुनाव आयोग कार्यक्रम जारी कर सकता है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा,  जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है. भारत में शामिल होने के बाद जम्मू-कश्मीर के पास आंतरिक संप्रभुता नहीं है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हमारा मानना ​​है कि भारत संघ में विलय के बाद इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है.
- सीजेआई ने कहा, जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई जिक्र नहीं था. हालांकि, भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख मिलता है. भारतीय संविधान में इसका उल्लेख मिलता है. भारतीय संविधान आने पर अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ.
- संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर पर लागू होते हैं. ये फैसला जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए था. यह विघटन के लिए नहीं था. राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है. अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है.
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लद्दाख को अलग करने का फैसला वैध था. अनुच्छेद 370 हटाने में कोई दुर्भावना नहीं थी.
- अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अधिसूचना देने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है. अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने का अधिकार जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए है.
- CJI ने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार किया, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से चुनौती नहीं दी थी. सीजेआई ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं. इसकी उद्घोषणा के तहत राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिया गया हर निर्णय कानूनी चुनौती के अधीन नहीं हो सकता. इससे अराजकता फैल सकती है.

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'पांच जजों की संविधान पीठ ने की सुनवाई'

सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत हैं. शीर्ष अदालत ने 16 दिन की सुनवाई के बाद 5 सितंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य को सुना.

'दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया'

वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह और दुष्यंत दवे समेत वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी. वकीलों ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता को लागू करने की चुनौती समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की थी. 20 जून, 2018 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन और 19 दिसंबर, 2018 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया और 3 जुलाई, 2019 को इसका विस्तार किया गया. विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दी गई थीं. इन याचिकाओं को 2019 में संविधान पीठ को भेजा गया. मामले में दो अगस्त को बहस शुरू हुई थी.

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'सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे थे सवाल'

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पूछा था कि अनुच्छेद 370 संविधान में स्थायी प्रावधान बन गया? यदि यह एक स्थायी प्रावधान बन जाता है तो क्या संसद के पास अनुच्छेद 370 में संशोधन करने की शक्ति है? क्या संसद के पास राज्य सूची के किसी आइटम पर कानून बनाने की कोई ताकत नहीं है? केंद्र शासित प्रदेश कब तक अस्तित्व में रह सकता है? संविधान सभा की अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है? तब, जब वहां कोई संविधान सभा मौजूद नहीं है, जिसकी सहमति ऐसा कदम उठाने से पहले जरूरी होती है. 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद स्थायी कैसे हो सकता है.

'याचिकाकर्ताओं ने दिए थे ये तर्क'

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि इस प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि जम्मू और कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में पूर्ववर्ती राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद समाप्त हो गया था. उन्होंने कहा था, संविधान सभा के विलुप्त हो जाने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया है. अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. केंद्र ने अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की भूमिका निभाई और राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से शक्तियों का प्रयोग किया. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी. केंद्र ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और अंतिम साधन को उचित नहीं ठहराता है.

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