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किसान परिवार, लंदन से पढ़ाई, 2009 में राजनीतिक शुरुआत... मोदी कैबिनेट में शामिल हुए RLD प्रमुख जयंत चौधरी

ऐतिहासिक रूप से, जयंत चौधरी की पारिवारिक पृष्ठभूमि कृषक की रही है. उनके दादा चरण सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था और 1930 के दशक से आर्य समाज के सक्रिय सदस्य थे. आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने उनके दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा था, और अब उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह दी गई है. उन्होंने भी मंत्री पद की शपथ ली. उन्हें कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. 

राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 जून 2024,
  • अपडेटेड 8:11 AM IST

नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिपरिषद के साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन में आज शाम को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. देश में एक दशक बाद गठबंधन की सरकार बनी है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत प्राप्त हुआ था, लेकिन इस बार उसे 240 सीटों से संतोष करना पड़ा. हालांकि, बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 293 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है.

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मोदी 3.0 कैबिनेट में 30 मंत्री बनाए गए हैं. साथ ही कई राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी बनाए गए हैं. रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभाव) की शपथ ली है. उन्हें कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. मंत्री बनाए जाने से पहले सभी की तरह उन्हें भी इसकी जानकारी दी गई थी. बता दें कि मोदी 2.0 सरकार ने आम चुनावों से ठीक पहले जयंत चौधरी के दादा और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा था. जयंत ने इसके लिए केंद्र का आभार जताया था और इंडिया ब्लॉक को झटका देते हुए भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो गए थे.

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जयंत की पार्टी ने जीतीं बागपत और बिजनौर सीटें

इस लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल पार्टियों के बीच हुए सीट बंटवारे के तहत राष्ट्रीय लोक दल को उत्तर प्रदेश में बागपत और बिजनौर संसदीय सीटें मिली थीं. जयंत की पार्टी ने इन दोनों सीटों पर जीत दर्ज की है. इस तरह उसका स्ट्राइक रेट 100 फीसदी रहा. इस बात के कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे कि यदि एनडीए को बहुमत मिलता है तो जयंत चौधरी को इस बार केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा. वह राज्यसभा के सांसद थे, जिन्हें अब वो सीट छोड़नी पड़ेगी. जयंत चौधरी को राजनीति विरासत में मिली है. वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते हैं.

लंदन के मशहूर कॉलेज से पढ़े हैं जयंत सिंह 

जयंत चौधरी का जन्म अमेरिका के टेक्सास में चौधरी अजीत सिंह और राधिका सिंह के घर 27 दिसंबर, 1978 को हुआ था. उनके पिता अजीत सिंह भी कई बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे. उनका परिवार मूल रूप से बुलंदशहर के भटौना का रहने वाला है. जयंत ने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद 2002 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से अकाउंटिंग और फाइनेंस में मास्टर डिग्री प्राप्त की. जयंत चौधरी की शादी फैशन डिजाइनर चारू सिंह से हुई है, जिनसे उनके दो बच्चे हैं.

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पहली बार 2009 में मथुरा से जीतकर पहुंचे लोकसभा

जयंत ने अपना राजनीतिक करियर 2009 में शुरू किया, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के मथुरा से संसद सदस्य (सांसद) के रूप में जीत हासिल की. जयंत भूमि अधिग्रहण मुद्दे को आवाज देने वाले प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्होंने लोकसभा में भूमि अधिग्रहण पर एक निजी विधेयक पेश किया था. वह संसद की कई स्टैंडिंग कमेटियों के सदस्य रहे हैं. वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भी सदस्य रह चुके हैं. वह 2014 में मथुरा और 2019 में बागपत से लोकसभा का चुनाव हार गए. फिर 2022 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य बने.

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जयंत 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून और उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण के मुखर आलोचक रहे हैं. उन्होंने डेढ़ दशक पहले नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मथुरा, हाथरस, आगरा और अलीगढ़ जिलों में 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ चले आंदोलनों का नेतृत्व किया. 

भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन में रहे सक्रिय

भट्टा पारसौल, बाजना और टप्पल में भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग को लेकर आंदोलनरत प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग के बाद हिंसा भड़क गई. इस घटना ने भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर देशव्यापी बहस छेड़ दी. 26 अगस्त 2010 को, हजारों किसान नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने आए, जहां जयंत चौधरी ने उरनका साथ दिया.

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उन्होंने जोरदार तरीके से केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने और संसद में एक नया भूमि अधिग्रहण कानून पारित करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया. इसका नतीजा था कि 2013 में संसद से नया भूमि अधिग्रहण कानून पास हुआ और अंग्रेजों के जमाने के दमनकारी कानून का अंत हुआ.

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