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जिया खान केस में सूरज पंचोली बरी... जानें-कानून की नजर में आत्महत्या के लिए उकसाना क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को परिभाषित किया है. अदालतों का कहना है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप होने चाहिए. अपराध में उसकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता जरूरी है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
अनीषा माथुर
  • मुंबई,
  • 28 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 8:24 PM IST

जिया खान सुसाइड मामले में आरोपी सूरज पंचोली को बरी कर दिया गया है. अदालत ने पंचोली को बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के कोई सबूत नहीं मिले हैं. यह कोई इकलौता मामला नहीं है, जब आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया है. 

आंकड़ें बताते हैं कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बहुत कम आरोपियों को दोषी ठहराया जाता है. लेकिन इसकी वजह क्या है? कानून की नजर में आत्महत्या के लिए उकसाना किसे माना जाता है? और इसकी परिभाषा क्या है?

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क्या कहती है आईपीसी?

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केस दर्ज किया जाता है. इस मामले में दोषी पाए जाने पर दस साल की सजा या जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने का मतलब क्या है इस पर अदालतें क्या कहती हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को परिभाषित किया है. अदालतों का कहना है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप होने चाहिए. अपराध में उसकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता जरूरी है.

'प्रताड़ना के सबूत मिलना जरूरी'

लेकिन किसी तीसरे शख्स के जरिए आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप ही पर्याप्त नहीं है, जब तक कि आरोपी की तरफ से उकसावे के सबूत ना हो. आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए या तो स्पष्ट या फिर अस्पष्ट रूप से उकसाया जाना जरूरी है.

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अक्टूबर 2022 में दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या के एक मामले में पति और सास को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीड़िता को लगातार प्रताड़ित करने के सबूत मिलने जरूरी हैं. आरोपी को दोषी करार देने के लिए ठोस सबूत होने चाहिए कि उसने पीड़ित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया. 

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के एक फैसले में कुछ लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी माना था. क्योंकि ये लोग लगातार 18 साल की एक लड़की को प्रताड़ित कर रहे थे. लड़की की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होने की वजह से उसने बाद में आत्महत्या कर ली. 

अदालत ने कहा था कि लड़की को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था, जिसकी वजह से रातभर रोती थी और जब यह प्रताड़ना नहीं रुकी तो उसने आत्महत्या कर ली.

2019 के उदे सिंह मामले में जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अगर आरोपी की पीड़िता की छवि और उसके आत्मसम्मान को दागदार करने में सक्रिय भूमिका है, जिसकी वजह से पीड़िता आत्महत्या कर लेती है तो आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी माना जाएगा. 

अदालत का कहना है आत्महत्या के लिए उकसाने की एक प्रक्रिया है, जिसके तहत पीड़ित को लगातार उकसाया जाता है. उकसाने की इस प्रक्रिया एक से अधिक लोग भी शामिल हो सकते हैं. या फिर किसी षडयंत्र के तहत भी उकसाया जा सकता है. आरोपी जानबूझकर नए-नए हथकंडे अपनाकर भी ऐसा करता है. 

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उकसाने की कसौटी क्या?

पीठ ने कहा कि उकसाना शब्द का मतलब है कि किसी को कुछ करने के लिए मजबूर करना. इसका पुख्ता प्रमाण होना चाहिए क्योंकि अदालत में आरोप सिद्ध करने की यही कसौटी है. 

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सिर्फ प्रताड़ना भर से आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता. आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जब तक उकसावे में सक्रिय भूमिका नहीं हो, तब तक सिर्फ प्रताड़ना के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता.

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