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'एक देश - एक चुनाव' के लिए दो विधेयकों की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की दूसरी बैठक 31 जनवरी को होगी. बैठक नई दिल्ली में संसद एनेक्सी भवन के मुख्य समिति कक्ष में दोपहर 3 बजे बुलाई गई है. 'एक देश - एक चुनाव' विधेयक पर पहली बैठक 8 जनवरी को आयोजित की गई थी, जिसमें प्रस्तावित कानून को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच लंबी चर्चा हुई थी.
कानून और न्याय मंत्रालय के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने समिति के समक्ष एक विस्तृत प्रजेंटेशन दी थी, जिसमें विधेयक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित किया गया और 1950 के दशक से इसके प्रारूपण को प्रभावित करने वाले सुधारों पर प्रकाश डाला गया. इसमें भारतीय विधि आयोग सहित विभिन्न निकायों द्वारा एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया गया. बीजेपी सदस्यों ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि यह देश के हित में है.
39 सदस्यों की है जेपीसी
प्रस्तुति में चुनाव संबंधी लागतों को कम करने और शासन की स्थिरता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया. कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा कि यह विचार संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, जबकि तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद ने कहा कि यह लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करता है.
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बता दें कि बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति में कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा, जेडीयू से संजय झा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, आप के संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी सहित सभी प्रमुख दलों के सदस्य शामिल हैं. चौधरी पूर्व विधि राज्य मंत्री हैं.
बिल पर जेपीसी कर रही मंथन
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक हाल ही में शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किए गए और समिति को भेजे गए हैं, जिस पर अब बैठक कर चर्चा हो रही है. JPC का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना.
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बिल पर चर्चा क्यों हो रही?
यह बिल भारत के संघीय ढांचे, संविधान के मूल ढांचे, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर बड़े पैमाने पर कानूनी और संवैधानिक बहस छेड़ चुका है. आलोचकों का कहना है कि राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और सत्ता के केंद्रीकरण की स्थिति बनेगी. कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव संविधान की बुनियादी विशेषताओं, जैसे संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व, को प्रभावित करता है.