
अगर चार सौ साल पहले का वक्त होता तो ज़ंग जीतते ही पता होता कि राजा कौन होगा. लेकिन लोकतंत्र में बातें जुदा है. जनता सरकार चुनती है. सरकार का मुखिया कौन होगा,ये चुने हुए लोग. कर्नाटक में कांग्रेस अभी इसी दुविधा में है. जीत के बाद की ये दुविधा वैसे तो राजनीतिक रूप से है अच्छी लेकिन बेहतर मैनेजमेंट नहीं मिला तो कर्नाटक कांग्रेस के सामने मध्य प्रदेश का उदाहरण भी है.
डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अपनी अपनी दावेदारी है मुख्यमंत्री पद के लिए. कल रात से ही दिल्ली से लेकर बैंगलोर तक बैठकों का सिलसिला चल रहा है. दोनों धड़ों के अलग अलग दावे भी हैं. उधर डीके शिवकुमार ने ऐसा कुछ नहीं बोला लेकिन संगठन में उनकी मजबूती से उनका दावा भी बरकरार है.
कांग्रेस के पर्यवेक्षक कल रात से ही कर्नाटक में डंटे हुए थे जिसमें विधायकों की राय ली गई कि उनका नेता कौन होगा. अब ये गेंद दिल्ली में बैठे हाईकमान के पास है. खड़गे,सोनिया और राहुल के पास. फैसला करने से पहले दोनों को आज दिल्ली भी बुलाया गया. तो बातों-मुलाकातों से निकला क्या है अब तक और कांग्रेस पार्टी में कर्नाटक की कुर्सी का ये ऊंट किस करवट बैठता दिख रहा है, यदि हाईकमान का फैसला सिद्धारमैया के पक्ष में जाता है तो डीके शिवकुमार का रुख कैसा रहेगा, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.
राजस्थान में जन स्वाभिमान यात्रा के समापन के बाद सचिन पायलट ने जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और गहलोत सरकार के सामने कुछ मांगें रखीं. उनकी तीन मांगों में से एक आरपीएससी का पुनर्गठन, दूसरी पेपर लीक पर मुआवजे की मांग है और तीसरा वसुंधरा राजे के कार्यकाल में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच.
राजस्थान में कांग्रेस की ये समस्या नई नहीं है. बीते लगभग तीन सालों में पायलट ऐसे ही गहलोत सरकार पर हमलावर रहे हैं. भले कम या ज़्यादा. सवाल ये है कि चुनावी बरस में अपनी ही सरकार को आंदोलन के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दे कर पायलट किस कोशिश में हैं और पायलट का असल मक़सद क्या है, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.
देश में लगभग सारी बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आ गए हैं. अब पास हुए स्टूडेंट्स आगे की राह तलाशेंगे. इजनीयरिंग, मेडिकल के बाद जो बहुत कॉमन रुझान होता है स्टूडेंट्स का वो होता है, देश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन. केंद्र सरकार ने पिछले साल मार्च में यूनिवर्सिटीज में प्रवेश का नया नियम बनाया था. इसके अनुसार अपने पसंद के कॉलेज में एडमिशन के लिए सभी विद्यार्थियों को CUET यानी कॉमन यूनिवर्सिटी एन्ट्रेंस टेस्ट से गुजरना होगा. 21 मई से CUET की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं.
इस पैटर्न के आने के एक साल बाद भी इसको लेकर स्टूडेंट्स के मन में बहुत सी आशंकाएं बनी हुई है. थोड़ा सा इस पैटर्न को समझें तो CUET 4 पार्ट्स में डिवाइडेड है. पहले दो सेक्शन लैंग्वेज सब्जेक्ट के लिए है. तीसरा सेक्शन डोमेन सब्जेक्ट के लिए और आखिर में एक जनरल टेस्ट है. अलग-अलग कोर्स के हिसाब से सेकंड लैंग्वेज और जनरल टेस्ट का सेक्शन ऑप्शनल में रखा गया है. बारहवीं क्लास में अच्छा परफॉर्म करने के बावजूद अब स्टूडेंट्स को मात्र मेरिट के आधार पर सीधा एडमिशन नहीं मिलेगा. CUET पर सवाल क्यों उठ रहे हैं, क्या कमियां हैं इसमें और इसके फायदे-नुकसान क्या हैं, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.
तुर्किये का अगला राष्ट्रपति कौन होगा - इसका चुनाव करने के लिए तुर्किये की जनता ने कल चुनाव में हिस्सा लिया. और आज इसके नतीजे भी सामने आ गए हैं. क़रीब दो दशक से वहां की सत्ता पर काबिज़ राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन को झटका लगा है. क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में जीतने के लिए किसी एक नेता का 50 फ़ीसदी से अधिक वोट पाना ज़रूरी है और जनता ने किसी भी पार्टी को मैंडेट नहीं दिया है. प्रेसिडेंट अर्दोआन और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू में से किसी को भी पचास फ़ीसदी से अधिक वोट नहीं मिल सके.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, तुर्की के हाई इलेक्शन बोर्ड ने क़रीब 92 फ़ीसदी मतों की गिनती के बाद अर्दोआन के हिस्से में 49.49 फ़ीसदी वोट दिए हैं. वहीं तुर्की का गांधी कहे जाने वाले कलचदारलू को छह विपक्षी पार्टियों ने अपना जॉइंट कैंडिडेट बनाया था और उन्हें 45 फीसदी वोट मिले. फरवरी में आए भीषण भूकंप से 50 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी. इसके 3 महीने बाद तुर्किये में ये चुनाव हुए. साढ़े 8 करोड़ की आबादी वाले इस देश में महंगाई भी चरम पर है. इन सब मुद्दों को लेकर अर्दोआन घिरे हुए थे और इस चुनाव में बहुमत से थोड़ा दूर रह गए. ये रिजल्ट कितना बड़ा झटका है उनके लिए और क्या तुर्किये की राजनीति में उनके डाउनफॉल की शुरुआत है? दूसरे राउंड के इलेक्शन में कौन मजबूत लग रहा है, क्या अर्दोआन की सत्ता में वापसी हो सकती है और भारत इस चुनाव को कैसे देख रहा है, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.