
कर्नाटक में शिक्षक संस्थानों में हिजाब बैन पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया. दोनों जजों ने 209 पन्नों का फैसला सुनाया. जिसमें जस्टिस हेमंत गुप्ता ने 136 पन्नों के फैसले में कर्नाटक सरकार द्वारा हिजाब बैन को सही ठहराया तो वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने 73 पन्नों का फैसला लिखते हुए हिजाब पहनने पर लगाई गई पाबंदी को गलत ठहराया है. दो जजों की बेंच से बंटा हुआ फैसला आने के बाद अब इस केस को बड़ी बेंच के पास भेजा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित इस मामले की सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन करेंगे. हालांकि तब तक शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन जारी रहेगा.
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने अपने 73 पन्नों के फैसले में कहा है कि स्कूलों में अनुशासन आवश्यक है. लेकिन स्वतंत्रता और गरिमा की कीमत पर नहीं. स्कूल के दरवाजे पर किसी कॉलेज की छात्रा से हिजाब उतारने की बात कहना उसकी निजता और गरिमा का हनन है. हिजाब पहनना याचिकाकर्ता छात्राओं की आस्था और मान्यता के मुताबिक उनकी धार्मिक और सामाजिक मान्यता और विश्वास का हिस्सा है. हाई कोर्ट ने गलत रास्ता पकड़ा है, यह पसंद का मामला है, आर्टिकल 14 और 19 का मामला है. यह पसंद से जुड़ा मामला है, न इससे कुछ ज्यादा और न ही इससे कुछ कम.
स्कूल की तुलना वॉर रूम से करना उचित नहीं: जस्टिस धूलिया
उन्होंने कहा कि मेरी निगाह में ये मामला बीजो एमैनुअल मामले में दिए गए कोर्ट के फैसले के तहत पूरी तरह आता है. एक स्कूल की तुलना वॉर रूम या सुरक्षा बलों के शिविर से करना उचित नहीं है. स्कूलों को अनुशासन के नाम पर रेजीमेंट या मिलिट्री जैसा नहीं बनाया जा सकता. हमारे संविधान के कई पहलुओं में से एक है विश्वास. हमारा संविधान भी भरोसे का दस्तावेज है. अल्पसंख्यकों ने बहुमत पर भरोसा किया है. जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में लड़कियों की शिक्षा को तरजीह दी. उन्होंने कहा कि इस फैसले पर विचार करते समय मेरे मन जो सबसे पहला सवाल आया था वो लड़कियों की शिक्षा का था. उन्होंने कहा, "क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? यह मेरे दिमाग में एक सवाल था... मैंने 5 फरवरी के सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि बिजॉय इमैनुएल केस में आया फैसला इस मुद्दे को पूरी तरह से कवर करता है."
धर्म का अतिक्रमण स्वीकार्य नहीं: जस्टिस हेमंत गुप्ता
वहीं जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने 136 पन्नों के फैसले में कहा है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश, जिसमें कई धर्म शामिल हैं, क्षेत्र, आस्था, भाषाएं, भोजन और वस्त्र की अवधारणा है. धर्मनिरपेक्षता को अलग तरह से समझना होगा. धर्मनिरपेक्षता को हमारे संविधान के तहत अपनाया गया है. धर्म राज्य की किसी भी धर्मनिरपेक्ष गतिविधि के साथ जुड़ा नहीं हो सकता है. धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण स्वीकार्य नहीं है.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार धर्म निरपेक्षता का अर्थ है कि सभी धर्मों के साथ समान रूप से व्यवहार करना उचित है. सभी धर्मों का सम्मान करना और सभी धर्म प्रथाओं की रक्षा करना. धर्मनिरपेक्षता का सकारात्मक अर्थ धार्मिक आस्था के आधार पर राज्य द्वारा गैर-भेदभाव होगा. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म के प्रति पूरी तरह से तटस्थ या सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर किया जा सकता है. हालांकि राज्य सभी धर्मो का विश्वास और सम्मान करता है, लेकिन किसी के पक्ष में नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इन सवालों के जवाब खोजेगी:
-क्या हिजाब इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा है?
- अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है?
-व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की सीमा क्या है?
कैसे शुरू हुआ विवाद?
पिछले साल कर्नाटक के उडुपी जिले में एक जूनियर कॉलेज ने छात्राओं पर स्कूल में हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी थी. गर्वनमेंट पूयी कॉलेज ने 01 जुलाई 2021 को कॉलेज यूनिफॉर्म लागू किया था और सभी छात्र-छात्राओं को इसे फॉलो करने के लिए कहा था. कोविड-19 में लागू लॉकडाउन के बाद जब फिर से स्कूलों को खोला गया तो सीनियर स्कूल की कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर आने लगी. तब उडुपी जिले के सरकारी जूनियर कॉलेज की छात्राओं ने कॉलेज अथॉरिटी से हिजाब पहनकर स्कूल आने की अनुमति मांगी.
दिसंबर 2021 कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर स्कूल पहुंची तो उन्हें गेट के बाहर ही रोक दिया गया. इसपर छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया और हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ जनवरी 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उडुपी जिले के बाद बाकी जिलों शिवमोगा और बेलगावी के कॉलेजों में भी हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली छात्राओं पर रोक लगा दी गई. दूसरी ओर एक समुदाय के छात्रों ने हिजाब पहने छात्राओं के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. देखते ही देखते मामले ने तूल पकड़ा, दो समुदाय के छात्र आमने-सामने आ गए और एक-दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री का आदेश
राज्य में खराब होते हालात को देखते हुए कर्नाटक के मुख्यंत्री बसावराज बोम्मई ने एक सरकरी आदेश जारी किया जिसमें सभी छात्रों को स्कूल-कॉलेज द्वारा लागू ड्रेस कोड को अनिवार्य कर दिया गया. आदेश में कहा गया कि ड्रेस कोड के अलावा कुछ और पहनने की अनुमित नहीं है. कॉलेज अथॉरिटी के पास ड्रेस कोड तय करने का पूरा अधिकार है. शिक्षा संस्थान तय कर सकते हैं कि छात्रों की यूनिफॉर्म क्या होनी चाहिए और क्या नहीं. उस समय तक कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब बैन पर सुनवाई नहीं हुई थी.
प्रदर्शन, हिंसा और लाठीचार्च
सीएम के आदेश के बाद हिजाब बैन मामला खत्म होने के बजाय बढ़ गया. हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन उग्र हो गए. राज्य में हिंसक घटनाएं हुईं, कई इलाकों में हिंसक झड़प भी हुई. पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस छोड़नी पड़ी. सीएम को एहतियात के तौर पर कई दिनों तक स्कूल-कॉलेज बंद रखने का आदेश जारी करना पड़ा. मामला कर्नाटक हाई कोर्ट में पहुंचा. तीन जजों की बेंच ने 11 दिन तक मामले की सुनवाई की.
हाईकोर्ट का क्या था फैसला?
5 फरवरी को कर्नाटक सरकार ने स्कूल- कॉलेज में यूनिफॉर्म को अनिवार्य करने का फैसला किया था. इसके बाद कुछ छात्राओं ने हाईकोर्ट का रुख किया. छात्राओं ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर हिजाब पर लगे बैन को हटाने की मांग की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 22 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.