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अगर हिजाब 'धार्मिक' हो जाता है तो महिलाएं इसे पहनने के लिए बाध्य होंगी: AG

कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर उबाल बना हुआ है. सोमवार को, मामले की सुनवाई के लिए गठित कर्नाटक उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता न केवल हिजाब पहनने की अनुमति मांग रहे थे, बल्कि एक घोषणा भी चाहते थे कि यह इस्लाम का पालन करने वाले सभी लोगों के लिए धार्मिक स्वीकृति का हिस्सा बन जाए.

हिजाब को लेकर 8वें दिन भी सुनावई जारी रही हिजाब को लेकर 8वें दिन भी सुनावई जारी रही
aajtak.in
  • बेंगलुरू,
  • 22 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST
  • जो वैकल्पिक है, वह अनिवार्य नहीं है; जो अनिवार्य नहीं है वह बाध्य भी नहीं है
  • फ्रांस में सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध है

Karnataka Hijab Row: हिजाब विवाद को लेकर दायर याचिकाओं पर कर्नाटक हाई कोर्ट में मंगलवार को भी सुनवाई हुई. हिजाब मामले में उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रितू राज अवस्थी की अध्यक्षता में जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की बड़ी बेंच सुनवाई कर रही है. इस दौरान तीन जजों की बेंच के सामने कर्नाटक सरकार की तरफ से दलीलें पेश की गईं.  

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कर्नाटक सरकार की तरफ से दलीलें दी गई कि याचिकाकर्ताओं को यह बताना होगा कि उन्हें किसका पालन करना ज़रूरी है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या अनिवार्य है और क्या वैकल्पिक. मैंने इस फैसले (कुरैशी) को यह दिखाने के लिए पढ़ा कि इसमें कहा गया है कि कुरान पढ़ने से पता चला है कि उस दिन गाय की कुर्बानी अनिवार्य नहीं है. यानी जो वैकल्पिक है, वह अनिवार्य नहीं है; जो अनिवार्य नहीं है वह बाध्य भी नहीं है; जो बाध्य नहीं है उसकी ज़रूरत नहीं है.

इस पर जस्टिस दीक्षित ने कहा कि आपके कहने का मतलब यह है कि यह धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होना चाहिए?

न्यायालय ने याचिका के एक तर्क पर ध्यान दिया होगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे ऐसा करके, अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं. मेरे अनुसार इस तर्क से आर्टिकल 25 का हनन होता है. अगर उनका तर्क स्वीकार कर लिया जाता है, तो जो लोग हिजाब नहीं पहनना चाहते हैं, उन्हें भी पहनने का अधिकार नहीं होगा. इसका मतलब होगा कि वहां विकल्प है.

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आर्टिकल19(1)(ए) का अधिकार आर्टिकल 25 का हनन है. आर्टिकल 25, अनिवार्य अभ्यास का अधिकार देता है. लेकिन जब आप आर्टिकल 19(1)(ए) की बात करते हैं, तो वहां च्वाइस होती है. उन्होंने यह भी कहा कि जहां तक हिजाब का संबंध है, आर्टिकल 25 में अनिवार्य तत्व है.

इसपर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मान लीजिए अगर कोई इसे पहनना चाहता है और 19 (1) (ए) का अभ्यास करता है? इस पर एटार्नी जनरल ने कहा कि अनुच्छेद 19 के अधिकार के रूप में हिजाब पहनने के अधिकार को अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है. वर्तमान मामले में, रूल 11 संस्थानों के अंदर एक उचित प्रतिबंध लगाता है. यह संस्थागत अनुशासन के अधीन है.

एजी ने कहा कि हमारे पास कर्नाटक शैक्षिक संस्थान के वर्गीकरण के रूप में एक कानून है. नियम 11 पर सवाल उठाया जा सकता है लेकिन उस पर सवाल नहीं उठाया गया है. यह नियम उन पर हिजाब पहनने पर उचित प्रतिबंध लगाता है.

अनुच्छेद 19 (1) (ए) का स्वतंत्र दावा अनुच्छेद 25 के दावे के साथ नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि स्कूल के अंदर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध नहीं है, यह केवल कक्षा के अंदर, कक्षा के घंटों के दौरान है. इसके नहीं पहनने से क्या इससे धर्म में कोई परिवर्तन होता है.

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एजी ने कहा कि इस मामले में परेशानी यह है कि जैसे ही यह एक धार्मिक स्वीकृति बन जाती है, मुस्लिम महिला हिजाब को पहनने के लिए बाध्य हो जाती है. इससे च्हैवाइस खत्म हो जाती है.

मुझे बताया गया है कि फ्रांस में सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध है. लेकिन ऐसा नहीं है कि फ्रांस में इस्लाम धर्म नहीं है. इसपर जस्टिस दीक्षित ने कहा कि यह देश की संवैधानिक नीति पर निर्भर करता है. यह अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकता है. मुख्यन्याधीश ने कहा कि इस्लाम सभी के लिए समान है, चाहे भारत हो या फ्रांस.

एजी ने इस्माइल फारूकी मामले का ज़िक्र भी किया जो बाबरी मस्जिद संपत्ति के अधिग्रहण से संबंधित है. इसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज अदा करना एक मौलिक सिद्धांत नहीं है.

इस मामले में से एजी ने कुछ मुख्य बातें कहीं- 'संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण धार्मिक अभ्यास के लिए है जो धर्म का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है. एक अभ्यास एक धार्मिक अभ्यास हो सकता है लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है.'

'एक मस्जिद इस्लाम के धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है और मुसलमानों द्वारा नमाज कहीं भी, यहां तक ​​​​कि खुले में भी की जा सकती है. 

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