
गुजरात चुनाव में ज़बरदस्त जीत हासिल करने के बाद बीजेपी अब दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गई है. दक्षिण भारत की राजनीति का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में फ़िलहाल बीजेपी की सरकार है और सीएम बसवराज बोम्मई के सामने सत्ता बरकरार रखने का चैलेंज है. कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है. अप्रैल-मई में चुनाव के आसार हैं और इससे पहले सूबे में आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है. लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय ख़ुद के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहा है. कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोग आरक्षण को बढ़ाकर 15% करने की मांग कर रहे हैं. फिलहाल उन्हें 5 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है. वोक्कालिगा को 4 फीसदी आरक्षण है और वो इसे बढ़ाकर 12 फीसदी करवाना चाहते हैं. कल सीएम बोम्मई और कर्नाटक बीजेपी प्रेसिडेंट नलिन कटील ने दिल्ली में अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ लंबी बैठक की. सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में कैबिनेट विस्तार और आरक्षण के मुद्दे पर बात हुई हैं.
इससे पहले कल ही कर्नाटक विधानसभा में एक बिल पास हुआ जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत करने का प्रावधान था. विपक्ष ने भी इस बिल को अपना समर्थन दिया. इसके बाद सूबे में रिजर्वेशन का क्वोटा सुप्रीम कोर्ट की तय की गई 50 फीसदी की सीमा को भी लांघ गया है. तो सवाल ये उठता है कि अगर कोर्ट में इसे चुनौती दी गई तो क्या ये टिकेगा? क्या SC/ST का कोटा बढ़ाकर क्या कर्नाटक सरकार एक तरीक़े से वाटर टेस्ट कर रही है, एक ग्राउंड बना रही है लिंगायत और बाक़ी ओबीसी कम्युनिटीज की मांगें पूरी करने के लिए? कर्नाटक की पॉलिटिक्स में लिंगायत कम्युनिटी कितनी इम्पोर्टेन्ट है, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.
नेपाल में चुनाव के बाद लंबा सियासी खींचतान चला और पुष्प कमल दहल प्रचंड के रूप में नेपाल को नया प्रधानमंत्री मिल गया. प्रचंड तीसरी बार नेपाल के पीएम बने हैं. उन्होंने नेपाल में माओवादी विद्रोह का नेतृत्व किया था और उनकी पहचान विद्रोही नेता की रही है. नेपाल में राजशाही के खात्मे के बाद जब लोकतंत्र की शुरुआत हुई तो पहले प्रधानमंत्री बनने का मौक़ा प्रचंड को ही मिला था. वह 2008-09 और फिर 2016-17 में दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे. हालांकि इस बार उनकी सरकार को केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल और अन्य छोटे दलों का समर्थन हासिल है. शेर बहादुर देउबा को सत्ता से बाहर रखने के लिए ओली ने प्रचंड के साथ डील की है और ढाई-ढाई साल प्रधानमंत्री बनने के फॉर्मूले पर नई सरकार का गठन हुआ है.
काठमांडू के आसमान में उड़ने वाले पंछी बताते हैं कि ओली और प्रचंड के बीच एक बार फिर से दोस्ती कराने में चीन ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है. बताया जा रहा है कि प्रचंड की पार्टी के महासचिव बर्शमान पुन सरकार बनने से ठीक पहले चीन पहुंचे थे और करीब 2 हफ्ते तक वहां रहने के बाद लौटे. इसके बाद ही प्रचंड का रुख बदला और ओली के साथ गठबंधन की राह आसान हो गई. लेकिन क्या इंडिया से यहाँ चूक हो गई और चीन ने सही टाइम पर अपने डिप्लोमेटिक चैनल्स एक्टिवेट कर दिए और एक प्रो-इंडियन शेर बहादुर देउबा, जिन्हें सबसे ज़्यादा सीटें आईं...वो प्रधानमंत्री नहीं बन पाए? नई सरकार बनने के बाद भारत के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ सकता है और वहां की जनता के क्या सेंटीमेन्टस रहे हैं हाल के वर्षों में इंडिया को लेकर, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.
इलाहबाद हाइकोर्ट का एक बड़ा फैसला यूपी के नगर निकाय चुनाव के लिए बहुत अहम हैं. हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने एक फैसले में कहा कि जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो तब तक ओबीसी रिज़र्वेशन नहीं होगा. अपने सत्तर पेज के फैसले में न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की लखनऊ बेंच ने कहा कि ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटों को अब जनरल माना जाएगा. ओबीसी आरक्षण सूची को रद्द करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ओबीसी आरक्षण देने के लिए एक कमीशन बनाया जाए, तभी ओबीसी आरक्षण दिया जाए, सरकार ट्रिपल टी फॉर्मूला अपनाए, इसमें समय लग सकता है, ऐसे में अगर सरकार और निर्वाचन आयोग चाहे तो बिना ओबीसी आरक्षण ही तुरंत चुनाव करा सकता है. आप को याद होगा कि इस मामले में पिछली सुनवाई 24 दिसंबर को हुई थी, जिसमें यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में अपने एक्शन को ये कहते हुए डिफेंड किया कि जो नोटिफिकेशन उन्होंने जारी किया वो बिल्कुल सही तरीके से जारी किया है लेकिन कोर्ट उनसे बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं था. तो अब आगे का रास्ता क्या है सरकार के लिए और सियासी तौर पर क्यों ये बीजेपी के लिए एक झटका है जो वो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रही है और कोर्ट ने फैसले में जिस ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला का ज़िक्र किया है, वो क्या होता है, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.
2022 में अब गिनती के दिन बचे हैं. देखा जाए तो यह साल भारतीय सिनेमा के लिए काफ़ी अहम रहा. क्योंकि कोविड के बाद पहली बार सिनेमा हॉल और थिएटर गुलज़ार हुए. एक तरफ दक्षिण भारत की फिल्मों ने पूरे देश में अपना सिक्का जमाया तो दूसरी तरफ बड़े सितारों की फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर पिट गईं. OTT प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज फिल्मों ने खूब तारीफें बटोरीं. आर.आर.आर, विक्रम और के.जी.एफ जैसी फिल्मों के larger than life पात्रों को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. OTT पर रिलीज़ होने वाली क़ला और मोनिका ओ माय डार्लिंग जैसी फिल्मों को सराहा गया. तो क्या रहे इस साल सिनेमा के बड़े मोमेंट्स और कैसे ट्रेंड्स इस वक़्त सिनेमा में चल रहे हैं, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.