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कश्मीर: 1947 के पाकिस्तानी हमले की बरसी आज, मनाया जाएगा ‘ब्लैक डे’

22 अक्टूबर 1947 को, पाकिस्तानी हमलावरों ने जम्मू-कश्मीर पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया. ये अवैध कब्जा ही बड़े सैन्य संघर्ष का कारण बना. उस वक्त तक जम्मू-कश्मीर अलग रियासत थी. कबायली हमलावरों की बर्बरता को देखते हुए रियासत के महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की अपील की थी.

पाक हमले के खिलाफ 22 को कश्मीर में 'ब्लैक डे' मनाया जाएगा पाक हमले के खिलाफ 22 को कश्मीर में 'ब्लैक डे' मनाया जाएगा
अभिषेक भल्ला
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 10:03 AM IST
  • हमलावरों की क्रूरता दिखाने के लिए म्यूजियम बनाने का फैसला
  • श्रीनगर में प्रदर्शनी और 2 दिवसीय संगोष्ठी का भी होगा आयोजन
  • पाक हमले के बाद महाराजा ने की थी भारत सरकार से मदद की अपील
  • 27 अक्टूबर, 1947 को भारतीय सेना को कार्रवाई के लिए भेजा गया था

कश्मीर पर 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कबायलियों को आगे कर हमला किया था. उस हमले की बरसी से एक दिन पहले श्रीनगर में ऐसे होर्डिंग्स लगे दिखे जिन पर 22 अक्टूबर को ‘ब्लैक डे’  बताया गया है. ये उस दिन के खौफ को याद दिलाता है जब पाकिस्तानी सेना के समर्थन के साथ कबायलियों ने हमला किया, जो इस क्षेत्र में संघर्ष और उथल-पुथल की शुरुआत का आधार बना.

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सरकारी सूत्रों ने बताया कि हमले की बरसी को ‘ब्लैक डे के तौर पर मनाने का फैसला किया गया है जिससे कि दुनिया को ये याद दिलाया जा सके कि पाकिस्तान किस तरह से इस क्षेत्र में अशांति, हिंसा और आतंकवाद के लिए जिम्मेदार रहा है.

म्यूजियम बनाने का फैसला
हमले के दौरान किस तरह पाकिस्तानी सेना की ओर से समर्थित कबायलियों ने अत्याचार किए थे, इस पूरे इतिहास को दर्शाने के लिए एक म्यूजियम बनाने का भी फैसला किया गया है. एक अधिकारी ने बताया, "श्रीनगर में एक प्रदर्शनी और दो दिवसीय संगोष्ठी का भी आयोजन किया जा रहा है.” 

22 अक्टूबर 1947 को, पाकिस्तानी हमलावरों ने जम्मू-कश्मीर पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया. ये अवैध कब्जा ही बड़े सैन्य संघर्ष का कारण बना. उस वक्त तक जम्मू-कश्मीर अलग रियासत थी. कबायली हमलावरों की बर्बरता को देखते हुए रियासत के महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की अपील की थी.

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जिसके बाद 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना को कार्रवाई के लिए भेजा गया था. इस दिन भारतीय सैनिक श्रीनगर एयरफील्ड पर उतरे. इसके बाद भारतीय सैनिकों ने पाक समर्थित कबायलियों को खदेड़ने के लिए लड़ाई लड़ी.

तभी से नियंत्रण रेखा (एलओसी) कश्मीर को दो भागों में बांटने वाली वस्तुत: सीमा है, कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में है जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है. 

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एलओसी पर सैन्य झड़पें जारी हैं. पाकिस्तान लगातार एलओसी से आतंकवादियों को कश्मीर की मुख्य जमीन पर भेजने की कोशिशें करता रहता है जिनका भारतीय सुरक्षा बलों की ओर से मुहंतोड़ जवाब दिया जाता रहा है.

पिछले साल 5 अगस्त को, भारत ने संसद में एक कानून के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त कर दिया. इनके तहत जम्मू और कश्मीर के कामकाज के लिए भी विशेष प्रावधान थे. संशोधन के साथ जम्मू और कश्मीर राज्य जिसमें लद्दाख भी शामिल था, दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बदल गया- जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख.

इस कदम का पाकिस्तान ने विरोध किया लेकिन भारत ने इस विरोध को देश का आंतरिक मामला बताते हुए खारिज कर दिया.

क्या हुआ था 22 से 27 अक्टूबर तक उस साल? 
पाकिस्तान सेना के निर्देश पर कबायलियों को भारतीय सेना के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया गया था. पाकिस्तानी सेना ने इन्हें रसद, हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराया. इनकी कमान पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने संभाल रखी थी.

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हमलावरों के समूह अलग-अलग दिशाओं में आगे बढ़े. छह समूह मुजफ्फराबाद से श्रीनगर जाने वाली मुख्य सड़क पर डोमेल, उरी और बारामुला के रास्ते निकले. इनका मंसूबा एयरोड्रम पर कब्जा करने के साथ बनिहाल दर्रे तक आगे बढ़ना था. हमलावरों के दो समूह हाजीपीर दर्रे से सीधे गुलमर्ग की ओर गए.

इसी तरह टिथवाल से नास्ताचुन दर्रे के रास्ते सोपोर, हंदवाड़ा और बांदीपुर पर कब्जा करने के लिए हमलावर आगे बढ़े. पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में पुंछ, भिंबर और रावलकोट क्षेत्र में हमले किए गए, जिनका लक्ष्य जम्मू पर कब्जा करना था.  

26 अक्टूबर को, हमलावर बारामूला शहर तक पहुंच गए. ये स्थानीय लोगों पर अत्याचार करते हुए श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे. आखिर में जब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से अपील की तो जम्मू और कश्मीर का भारत में औपचारिक विलय हुआ. फिर भारतीय सेना ने क्षेत्र को पाकिस्तानी हमलावरों से मुक्त कराने के लिए कार्रवाई शुरू की.

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