
केरल के वायनाड जिले में भारी बारिश के बीच 30 जुलाई की अल-सुबह चार घंटे के अंतराल में मेप्पादी के पास पहाड़ी इलाकों में तीन भूस्खलन हुए, जिससे मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा गांवों में तबाही मच गई. सैकड़ों लोग चालियार नदी में बह गये. इस विनाशकारी प्राकृतिक आपदा में अब तक कम से कम 158 लोग मारे गए हैं और 200 से अधिक घायल हो गए हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 180 से अधिक लोगों के मलबे में फंसे होने की आशंका है. सेना और एनडीआरएफ समेत राज्य सरकार की एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन चला रही हैं.
वायनाड में 45 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं, जिनमें 3,069 लोगों ने शरण ली हुई है. वायनाड जो अपने मनोरम प्राकृतिक दृश्यों और चाय बागानों के लिए जाना जाता है, वहां आई त्रासदी की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आ रहे हैं, जिनमें जगह-जगह उखड़े हुए पेड़ और क्षतिग्रस्त घर दिखाई दे रहे हैं. वायनाड जिले के अधिकारियों ने लापता लोगों की संख्या निर्धारित करने के लिए डेटा एकत्र करना शुरू कर दिया है. राशन कार्ड विवरण और अन्य सरकारी दस्तावेजों की मदद से लापता लोगों की संख्या पता लगाई जा रही है.
आजतक की टीम भी मेप्पादी में भूस्खलन वाले मुंडक्कई गांव में पहुंची और पीड़ितों, प्रत्यक्षदर्शियों, इस विशानकारी आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों से बात की. कुछ पीड़ितों का अंतिम संस्कार मेप्पादी में सीएसआई चर्च के मैदान के पास किया गया. मुंडक्कई निवासी स्टीफन ने अपना भयावह अनुभव साझा करते हुए कहा, 'आपदा के पिछले दिन बारिश हो रही थी, लेकिन भूस्खलन वाले दिन दोपहर में ज्यादा बारिश नहीं हुई. फिर शाम को तेज बारिश शुरू हो गई और किसी भी अधिकारी ने हमारी गली के लोगों को राहत शिविरों में जाने के लिए नहीं कहा.'
स्टीफन ने कहा- कीचड़ की तेज गंध रही थी, झटके लग रहे थे
स्टीफन ने आगे बताया, 'अन्य क्षेत्रों में कई लोग शिविरों में स्थानांतरित हो गए थे. रात 11.45 बजे हमें कीचड़ की तेज गंध आ रही थी. झटके लग रहे थे जैसे कि कोई हेलीकॉप्टर उतरने वाला हो. मेरे बेटे ने मुझसे कहा कि हमें गांव से बाहर चले जाना चाहिए. हमने 12.30 बजे अपने घर का पिछला दरवाजा खोला और पड़ोसियों को आवाज लगाई. लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतना बड़ा और विनाशकारी होगा. कोई नहीं आया. जब हम गांव छोड़कर जा रहे थे तो हमें भूस्खलन का अनुभव हो रहा था. हम सौभाग्यशाली हैं कि जीवित हैं, लेकिन मेरा परिवार और पड़ोसी सभी मर चुके हैं. मेरे पड़ोस में रहने वाले पति-पत्नी एक-दूसरे का हाथ पकड़े मृत पड़े थे.'
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स्टीफन ने बताया कि उनकी बहन की भी भूस्खलन के मलबे में दबकर मौत हो गई. उन्होंने कहा, 'मैंने 5 साल की एक बच्ची को बचाया. उसकी मां ने मदद मांगते हुए मेरा नाम पुकारा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की लेकिन मैं उसे अकेले नहीं उठा सका. वह गले तक कीचड़ में धंसी थी. हम मुंडक्कई में रहते हैं और नदी का उफान पर आना और वहां तक पहुंचना असंभव है. हमारे क्षेत्र से पाए गए अधिकांश शव नदी से निकाले गए. मैं, मेरी पत्नी, मेरा बेटा और दो अन्य लोग ही अपने क्षेत्र में जीवित बचे हैं. इलाके में अब भी भूस्खलन का मलबा चारों ओर पसरा पड़ा है.'
जयेश बोले- मैंने पानी और पेड़ों को बहते देखा, लोग फंसे हुए थे
एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी जयेश ने आजतक से बातचीत में विनाशकारी आपदा के अपने डराने वाले अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा, 'दो दिन तक भारी बारिश होती रही. भूस्खलन होने से पहले शाम को भी तेज बारिश हो रही थी. सड़कों पर पानी भर गया. चूंकि ऐसा तब होता है जब सामान्य रूप से बारिश होती है, इसलिए हमने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया. रात करीब 10 बजे तक हम सभी सो गये थे. लगभग 1.30 बजे पहला भूस्खलन हुआ. बहुत भयानक आवाज आ रही थी. मैंने तुरंत घर का दरवाजा खोला और यह देखने के लिए टॉर्च की रोशनी डाली कि क्या हो रहा है. मैंने विपरीत दिशा में स्थित घरों के पास पानी और पेड़ों को बहते देखा.'
उन्होंने आगे कहा, 'मेरे अगल-बगल तीन-चार घर हैं. हमने सभी को बुलाया और पानी आने से पहले उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया. उस समय चारों तरफ कीचड़ था और लोग फंसे हुए थे. हम उनमें से कुछ को बचाने में कामयाब रहे. फिर करीब साढ़े तीन बजे दूसरा भूस्खलन हुआ. इस भूस्खलन में हाई स्कूल रोड में लगभग 200 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए. वहां अब भी 4-5 घर ही बचे हैं. मैं यही देख सका. इनमें से अधिकतर घरों में लोग रह रहे थे. मेरी पत्नी के परिवार में उसकी बहन, बहन के पति समेत परिवार के 11 सदस्य लापता हैं. उनमें से दो के शव बरामद कर लिए गए हैं और उनकी पहचान कर ली गई है.'
हमें लगा जैसे पूरा पहाड़ हमारे ऊपर गिरने वाला है: प्रत्यक्षदर्शी
जयेश ने आगे बताया, 'जब पहला भूस्खलन हुआ था, अगर आपने उस वक्त की स्थिति देखी होती तो आपको लगता कि कोई भी इससे नहीं बच पाया होगा. लेकिन ऐसे लोग थे जो जीवित थे और हम उन्हें बचाने में कामयाब रहे. जब हमने भूस्खलन की तेज आवाज सुनी तो हमें लगा कि पूरा पहाड़ हमारे ऊपर गिरने वाला है. हम उस समय मौत से लड़ रहे थे. फिर हम सब जंगल के रास्ते चल दिये. हमने सबको वहीं बैठाया. करीब 5.30 बजे दोबारा भूस्खलन हुआ. तब हमें एहसास हुआ कि बाहर निकल जाना ही बेहतर है. हमारे सारे दस्तावेज खो गए हैं. हम नहीं जानते कि क्या करना है. हम अनजान हैं. कहां जाएं, कहां रहें? हम कितने दिनों के लिए कहीं और जा सकते हैं? ये सभी विचार अब हमारे दिमाग में चल रहे हैं.'