
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने आज इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका से लेकर कॉलेजियम सिस्टम तक कई मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी. इस दौरान उन्होंने राहुल गांधी पर भी तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि अदालतों की जवाबदेही (Accountability) एक मुद्दा है और लक्ष्मण रेखा दूसरा मुद्दा है. उन्होंने कहा कि जजों की जवाबदेही को लेकर मुझे बड़ी संख्या में सुझाव और फीडबैक मिले हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि जज किसी के प्रति अकाउंटेबल नहीं हैं.
कोर्ट के लिए नहीं हैं रूल्स
रिजिजू ने कहा, 'कई लोगों के साथ नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन ने सुझाव दिया कि इसके लिए नेशनल ज्यूडिशियल कमीशन होना चाहिए, जो यह तय करे कि कोर्ट कैसे मेंटेन होंगे और कैसे जजों की नियुक्ति होगी. हमें कई तरह के सजेशन मिले हैं और मैं किसी एक विशेष सजेशन का जिक्र नहीं करना चाहता हूं. लेकिन यदि मैं बात करूं संसद की तो, यह भी नियमों के प्रति जवाबदेह है. यहां सदन चलाने के अपने नियम हैं. विधानसभाओं के अपने नियम हैं. सरकार के फंक्शन भी रूल के तहत हैं.लेकिन कोर्ट के लिए कोई रूल्स नहीं हैं. वहां कई प्रथाएं हैं जो समय-समय पर बदलती रहती हैं. चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर हैं. छुट्टियों की बात करें जो उनकी अपनी अलग-अलग छुट्टियां हैं. जज छुट्टी पर जाते हैं....इनके लिए संसद द्वारा कोई रूल्स नहीं तय किए गए हैं बल्कि ये सब सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गईं प्रैक्टिस हैं. आपने देखा होगा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियां भी अलग-अलग होती हैं, उनमें एकरूपता नहीं है.'
जजों की छुट्टियों पर कही ये बात
रिजिजू ने कहा, 'जजों की छुट्टियों को लेकर पिछले साल संसद में मुद्दा उठा था. सवाल ये उठा था कि जज लगातार क्यों छुट्टी पर जाते हैं? मैंने तब, एक मंत्री के रूप में जवाब दिया था लेकिन अगले दिन एक न्यूजपेपर में रिपोर्ट आई कि कानून मंत्री कह रहे हैं कि जजों को हॉलीडे पर नहीं जाना चाहिए. ये बहस ज्यूडिशरी तक पहुंच गई हैं और कहा गया कि कानून मंत्री जजों को छुट्टी नहीं मनाने देना चाहते हैं. मैंने कुछ भी नहीं कहा. कोर्ट को बिल्कुल छुट्टी मनानी चाहिए लेकिन यह फैक्ट है कि इससे कोर्ट के मामले लंबित होंगे. निश्चित तौर पर इसे लेकर कुछ रेगुलेशन हो सकते हैं. मेरा मानना है कि जजों को बिल्कुल छुट्टी की आवश्यकता होती है. सुबह से लेकर शाम तक वो 50-60 मामलों की सुनवाई करते हैं. ये हर रोज की बात है. इसके अलावा वो कई प्रशासनिक काम भी करते हैं. न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों की वजह से उन पर काफी मानसिक दवाब होता है और इसके लिए छुट्टी की जरूरी है तांकि वो परिवार के साथ छुट्टी मना सकें. कई मामलों में जज 100 मामलों की एक दिन में सुनवाई करते हैं.'
कॉलेजियम सिस्टम पर सरकार का स्टैंड
कॉलेजियम सिस्टम को लेकर उन्होंने कहा कि इसे लेकर सरकार का क्या स्टैंड है, ये कॉलेजियम के लोगों को अच्छी तरह पता है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति का प्रोसेस जो है, उससे मेरी असहमति है. सुप्रीम कोर्ट हो या हाईकोर्ट, हर किसी की अपनी सीमा है न्याय देने कि लिए. वो कोई सरकार नहीं हैं. यदि सरकार कोई फैसला लेती है तो उसके लिए पहले कई तरह की जानकारियां या इनपुट मिले हुए होते हैं...सुप्रीम कोर्ट हों या हाईकोर्ट या फिर निचली अदालत,बार, हर कहीं से जजों को लेकर कई तरह की शिकायतें मेरे पास आती हैं लेकिन हम उनका नाम सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं. यदि कोई जज अपने अन्य जज को लेकर टिप्पणी करता है तो उसका नाम तो सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं ना? इससे मुद्दे का हल नहीं होगा.