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पिछले किसान आंदोलन के बड़े चेहरों ने बनाई प्रदर्शन से दूरी, 'दिल्ली कूच' में शामिल नहीं हुए कई संगठन

वर्तमान में चल रहे किसानों के इस आंदोलन से 2020-21 में किसान आंदोलन का मोर्चा संभालने वाले बड़े किसान नेता यानी संयुक्त किसान मोर्चा ने 'दिल्ली चलो' मार्च का आह्वान करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) से पल्ला झाड़ लिया है.

राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, गुरुनाम सिंह चढ़ूनी, जोगिंदर सिंह उगराहां (File Photo) राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, गुरुनाम सिंह चढ़ूनी, जोगिंदर सिंह उगराहां (File Photo)
मनजीत सहगल
  • कुरुक्षेत्र,
  • 15 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:19 PM IST

साल 2020-2021 में हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) से अलग हुए किसान संगठन किसान आंदोलन 2.0 का नेतृत्व कर रहे हैं. एसकेएम के कई नेताओं का मानना ​​है कि किसान आंदोलन 2.0 का नेतृत्व कर रहे नेता 'वही हैं जो पिछले किसान आंदोलन में तोड़फोड़ करने के लिए जिम्मेदार थे और इसलिए उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है'. संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है कि वर्तमान आंदोलन में शामिल किसान संगठनों की कुछ नई मांगें उचित नहीं हैं, और इसलिए यह एमएसपी जैसे मुख्य मुद्दों को कमजोर करती है, जिसके लिए एसकेएम ने 2020 में अभियान चलाया था और तब से इसके लिए आंदोलन जारी रखे हुए है.

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दरअसल, पूर्ववर्ती एसकेएम के सदस्यों के बीच वैचारिक मतभेद हैं. इसमें शामिल रहे कुछ किसान संगठनों और उनके नेताओं के एक वर्ग ने पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ा था, उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा विभाजित हो गया था. 2020-21 में किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पंजाब और हरियाणा के बड़े किसान नेताओं की राय है कि वर्तमान आंदोलन में उतनी जान नहीं है, जो तीन साल पहले के आंदोलन में थी. क्योंकि वर्तमान आंदोलन का नेतृत्व केवल कुछ किसान यूनियनों द्वारा किया जा रहा है.

किसान आंदोलन 1.0 में भाग लेने वाले पंजाब के कुल 40 किसान संघों में से केवल दो प्रमुख संघ ही दिल्ली चलो मार्च में शामिल हैं. पूर्ववर्ती संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल रहे कुछ बड़े किसान नेताओं को यह भी संदेह है कि 'दिल्ली चलो मार्च' अप्रत्यक्ष रूप से पंजाब सरकार द्वारा प्रायोजित है, क्योंकि उसे मूंग के लिए एमएसपी जैसे चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रहने के कारण किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि पंजाब ने उन प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका जो बिना किसी बाधा का सामना किए बड़ी संख्या में शंभू और खनौरी सीमाओं तक पहुंचने में कामयाब रहे.

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बीकेयू के राकेश टिकैत जैसे प्रमुख किसान नेताओं का मानना ​​है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन में कुछ कट्टरपंथी तत्व शामिल हो रहे हैं. आज तक के साथ बातचीत में, राकेश टिकैत ने कहा कि वर्तमान आंदोलन में भाग लेने वाले कई नेता सतलज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दों को उठाना चाहते हैं, जो पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं. इसी तरह, कुछ लोग सांप्रदायिक मतभेद भी पैदा करना चाहते हैं. इसलिए, हम उनके आंदोलन में नहीं शामिल हैं, लेकिन हम उन्हें मुद्दा-आधारित समर्थन प्रदान कर रहेंगे. टिकैत ने यह भी कहा कि अगर सरकार उनकी मुख्य चिंता का समाधान करने में विफल रहती है तो एसकेएम मार्च में एक अलग आंदोलन की योजना बना रहा है.
हरियाणा के एक अन्य प्रमुख किसान नेता, बीकेयू चढूनी समूह के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने आज तक को बताया कि उन्हें 'दिल्ली चलो मार्च' और चंडीगढ़ में सरकार के प्रतिनिधियों के साथ होने वाली बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया. उन्होंने कहा, 'एमएसपी पर कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है, केंद्र सरकार का लिखित आश्वासन ही काफी है'. दिलचस्प बात यह है कि कई पूर्व यूनियनें सिर्फ किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भारत बंद का समर्थन कर रही हैं और जहां तक ​​वर्तमान किसान आंदोलन का सवाल है, वे एकमत नहीं हैं. हरियाणा के एक प्रमुख पूर्व नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वह 'दिल्ली चलो मार्च' में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं.

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वर्तमान में चल रहे किसानों के आंदोलन से ये बड़े नाम नदारद हैं

1. योगेंद्र यादव
2. बलबीर सिंह राजेवाल
3. मंजीत राय
4. डॉ दर्शन पाल
5. शिव कुमार कक्का
6. जिगिंदर सिंह उगराहां
7. राकेश टिकैत
8. डॉ. वीएम सिंह
9. गुरनाम सिंह चढूनी

किसानों और सरकार के बीच 2 बार की वार्ता रही बेनतीजा 

केंद्र सरकार किसान संगठनों के साथ बातचीत करना चाहती है, इसलिए अब तक 2 दौर की वार्ता करने की कोशिश की जा चुकी है, लेकिन दोनों बार वार्ता बेनतीजा रही है. आज फिर से इस मोर्चे के साथ बातचीत करने की तीसरी कोशिश की जा रही है. फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, कर्ज माफी, किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने और एमएससी पर कानून बनाने की मांग तर्क संगत हो सकती है, लेकिन किसान नेता अब कई तरह की मांगें कर रहे हैं. मसलन किसान WTO समझौता रद्द करने की मांग, बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द करने की मांग,किसानों को प्रदूषण कानून से मुक्त रखने की मांग और बिजली के इलेक्ट्रॉनिक मीटर न लगाने की मांग खास है.
 
किसान संगठनों ने सरकार के सामने रखी ये मांगें

1. MSP की गारंटी के लिए कानून बनाया जाए और सभी फसलों को एमएसपी की सुविधा मिले.

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2. किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो और उन्हें 10 हजार रुपए मासिक पेंशन दी जाए.

3 .भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 फिर से लागू हो

4. मनरेगा के तहत प्रति वर्ष 200 दिनों के लिए रोजगार उपलब्ध कराया जाए

5. किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए

6. दैनिक मजदूरी 700 रुपये बढ़ाईं जाए 

7. लखीमपुरखीरी कांड में दोषियों को सजा मिले

8. नकली कीटनाशक और खाद बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ा कानून बनाया जाए

9. बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द किया जाए. पंजाब के किसान बिजली के इलेक्ट्रॉनिक मीटर लगवाने की अनिवार्यता भी खत्म करवाना चाहते हैं.

10. मसाले वाली फसलों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए 

11. किसानों को प्रदूषण कानून से मुक्त  रखा जाए 

12. फसलों की कीमत स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार तय की जाए

13. मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगे

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