
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर अपना फैसला सुना दिया. अदालत ने कहा है कि यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की एक समिति गठित की गई है. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है. AMU मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले पर याचिकाकर्ता के वकील शादान फरासत ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की बारीकियां बताई हैं.
'कोर्ट ने तय किए मापदंड'
आजतक से बात करते हुए वकील शादान फरासत ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने 1967 का अजीज बाशा जजमेंट खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता. अब चूंकि वो फैसला ही खारिज हो गया है तो उसे बदलने के लिए जो 1981 का संशोधन आया था वो भी अमान्य हो गया है.'
उन्होंने बताया, 'आज वो मापदंड तय कर दिए गए हैं जिनके आधार पर यह तय किया जाएगा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं. जो मापदंड तय किए गए हैं उन्हें करीब-करीब AMU पूरा करता है लेकिन इसका फैसला एक छोटी बेंच करेगी, जब भी मामला सूचीबद्ध होगा.'
आरक्षण पर क्या तय हुआ?
आरक्षण के सवाल पर उन्होंने कहा, 'अल्पसंख्यक दर्जा अभी कानूनी रूप से नहीं तय हुआ है इसलिए आरक्षण पर भी आज कोई फैसला नहीं हुआ है. लेकिन AMU पर जो गैर-अल्पसंख्यक का सवालिया निशान लगा था उसे 7 जजों की बेंच ने अजीज बाशा जजमेंट को खारिज करते हुए हटा दिया है.'
SC ने खारिज किया अजीज बाशा केस का फैसला
अजीज बाशा केस में SC के फैसले के बारे में वकील ने कहा, 'अजीज बाशा केस में, जब 1920 में कॉलोनियल लेजिस्लेचर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी, चूंकि वो कॉलोनियल गवर्मेंट का एक लेजिस्लेचर था इसलिए उसे मुसलमानों या मुस्लिम अल्पसंख्यक ने स्थापित नहीं किया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस्टैब्लिशमेंट और इनकॉर्पोरेशन अलग चीज होती है.'
क्या है SC का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन जजों की नई बेंच आज के जजमेंट के आधार पर इस बात पर विचार करेगी कि क्या AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं. सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजीज बाशा केस में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती क्योंकि उसका गठन एक कानून के तहत हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका आइडिया था.